Shri Krishna Aur Bhagwan Shiv: संसार का अहित होता देख भी जब श्री कृष्ण ने ठुकराई महादेव की ये विनती

आज हम आपको एक ऐसा किस्सा बताने जा रहे हैं जब श्री कृष्ण ने महादेव की संसार हित के लिए की गई एक विनती को ठुकरा दिया था। 

Shri Krishna Aur Mahadev Ki Baat

Shri Krishna Aur Bhagwan Shiv: भगवान शिव और श्री कृष्ण एक दूसरे के आराध्य हैं और एक दूसरे के हृदय में वास करते हैं। जिस प्रकार महादेव हर क्षण श्री कृष्ण की छवि को स्मरण कर अंतर्ध्यान रहते हैं ठीक उसी तरह श्री कृष्ण भी महादेव के ध्यान में मग्न हो जाते हैं। धार्मिक और पौराणिक कथाओं में इस बात का उल्लेख भी मिलता है कि किस प्रकार से दोनों ने सदैव संसार हित के लिए एक दूसरे की सहायता की है और अनूठी एवं अद्भुत लीलाएं रची हैं। लेकिन एक समय ऐसा भी आया था जब महादेव के आग्रह को श्री कृष्ण ने ठुकरा दिया था। हमारे एक्सपर्ट ज्योतिषाचार्य डॉ राधाकांत वत्स ने हमें इस रोचक कथा के बारे में बताया तो हमने सोचा कि आपको क्यों इस दिलचस्प कहानी से दूर रखा जाए। तो चलिए जानते हैं इस कथा के बारे में।

महाभारत के युद्ध ने फैलाई अशांति

shri krishna bhagwan shiv'

द्वापरक युग के अंत में कुछ ही समय शेष रह गया था जब महाभारत का युद्ध हुआ। महाभारत ग्रंथ में इस बात की जानकारी मिलती है कि यह युद्ध कितना भयंकर और विध्वंसक था। इस युद्ध के बाद कुरुक्षेत्र की वह धरती पूर्ण रूप से लाल रंग की हो गई थी। यहां तक कि युद्ध क्षेत्र का वह हिस्सा इतने युगों पश्चात भी लाल ही है। युद्ध समाप्त तो हुआ और अधर्म पर धर्म की विजय भी हुई लेकिन पूरे संसार में इस युद्ध का ऐसा प्रभाव पड़ा की पृथ्वी से लेकर अम्बर तक चारों ओर नकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ गया और अपने हिस्से की भूमि या कोई भी वस्तु पाने के लिए लोग युद्ध का सहारा लेने लगे।

श्री कृष्ण हुए भावुक

पृथ्वी पर ऐसा दृश्य देख भगवान शिव को अत्यंत दुख हुआ। समस्त देवी देवता भी महादेव के पास पहुंचे कि वह श्री कृष्ण से इस विषय में बात करें। तब महादेव ने पृथ्वी पर स्थित इन्द्रप्रस्थ की ओर प्रस्थान किया। महादेव श्री कृष्ण के समक्ष पहुंचे। अपने आराध्य को देख श्री कृष्ण भी अत्यंत भावुक हो उठे और श्री कृष्ण की इसी भावुकता का लाभ उठाने का भगवान शिव ने प्रयास किया।

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महादेव को सूझा उपाय

lord shiva and krishna

दरअसल भगवान शिव (भगवान शिव की तीन आंखों का रहस्य) को पता था कि अश्वमेध यज्ञ ही एकमात्र वो उपाय है जिससे संसार की नकारात्मकता को खंडित किया जा सकता है। लेकिन वो ये भी जानते थे कि श्री कृष्ण अश्वमेध यज्ञ के लिए कदापि नहीं मानेंगे। इसके पीछे का कारण यह था कि अश्वमेध यज्ञ के दौरान यज्ञ के घोड़े को पृथ्वी पर भ्रमण करने के लिए छोड़ा जाता है। वो घोड़ा जिस जिस स्थान से गुजरता है वह स्थान अश्वमेध यज्ञ करने वाले राजा के आधीन हो जाता है और जब घोड़ा पुनः लौट कर आता है तो उस अश्व की बलि दी जाती है। भगवान विष्णु के राम अवतार ने अश्व की बलि दी थी किन्तु श्री कृष्ण को यह कभी भी मंजूर नहीं होता।

श्री कृष्ण ने महादेव की विनती को स्वीकारा

यही कारण था कि महादेव को समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे श्री कृष्ण को अश्वमेध यज्ञ के लिए मनाएं। महादेव ने श्री कृष्ण को भावुक देखा तो वह प्रयास करने लगे लेकिन श्री कृष्ण उनकी मंशा समझ गए। इसके बाद श्री कृष्ण के स्पष्ट पूछने पर महादेव ने उनसे अश्वमेध यज्ञ करने का आग्रह किया जिसे श्री कृष्ण ने अस्वीकार कर दिया।

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महादेव और बलदाऊ ने लगाई युक्ति

hari har

महादेव निराश हो गए और बलदाऊ के पास कान्हा को मनाने की विनती लिए पहुंच गए। बलदाऊ के भी लाख कहने पर जब श्री कृष्ण नहीं मानें तब महादेव और बलदाऊ ने अन्य उपाय सोचने का निर्णय लिया। अथक प्रयासों के बाद बलदाऊ और महादेव इस अंतिम निर्णय पर पहुंचे कि श्री कृष्ण (श्री कृष्ण की मृत्यु का रहस्य) खुद अश्वमेध यज्ञ न करके किसी और से करवा लें परन्तु उस यज्ञ में वह सम्मिलित हो जाएं। चूंकि श्री कृष्ण दैवीय अवतार हैं ऐसे में उनका होना भी इस यज्ञ को उतना ही प्रभावशाली बनाता जितना उनका इस यज्ञ को करना।

श्री कृष्ण ने कराया युधिष्ठिर से यज्ञ

महादेव ने श्री कृष्ण से यही बात बोली और श्री कृष्ण मान गए। श्री कृष्ण ने इस यज्ञ के लिए पांडवों को चुना और उन्होंने इस यज्ञ में मुखिया के रूप में बैठने के लिए युधिष्ठर को आदेश दिया। इसके बाद युधिष्ठिर यज्ञ में बैठे और यज्ञ संपन्न हुआ। यज्ञ के संपन्न होने के बाद संसार में पुनः शांति स्थापित हुई।

तो ये थी श्री कृष्ण के महादेव की बात न मानने की वजह। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर जरूर शेयर करें और इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ। आपका इस बारे में क्या ख्याल है? हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

Image Credit: Freepik

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