अगर आपने फोन, टीवी, लैपटॉप या न्यूजपेपर को देखा है, तो उम्मीद है कि आपको बांग्लादेश में हो रहे सत्ता परिवर्तन की जानकारी होगी। बांग्लादेश में सबसे लंबे कार्यकाल वाली पीएम शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया और अब वो देश छोड़कर भाग चुकी हैं। पहले वो भारत आई थीं और उसके बाद अब लंदन के लिए रवाना हो गई हैं। शेख हसीना के खिलाफ हफ्तों से सत्ता परिवर्तन के लिए हिंसक प्रदर्शन चल रहे थे। अब उनके जाने पर बांग्लादेश में अंतरिम सरकार बनाई जाएगी, जिसका नेतृत्व आर्मी चीफ वाकर उज जमान करेंगे।
आपको याद हो तो इसी तरह से पाकिस्तान और अफगानिस्तान में भी सत्ता परिवर्तन हुआ था। अफगानिस्तान में जहां तालिबान ने अपना रूल स्थापित किया था, वहीं पाकिस्तान में मिलिट्री रूल आया था।
यह आंदोलन असल में स्टूडेंट यूनियन से शुरू हुआ। छात्र सड़कों पर थे, क्योंकि बांग्लादेश में लंबे समय से बेरोजगारी और मंदी के हालात बने हुए हैं।
बचपन से ही राजनीति से जुड़ी हुई थीं शेख हसीना
76 साल की शेख हसीना 5 अगस्त को हेलीकॉप्टर से अपनी जान बचाते हुए बांग्लादेश से बाहर निकलीं। इस साल की शुरुआत में ही वो चौथी बार बांग्लादेश की पीएम बनी थीं। सबसे पहले 1996 से 2001 तक उन्होंने ये पद संभाला था। फिर 2009 से 2024 तक शेख हसीना ही बांग्लादेश की पीएम रही थीं।
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बचपन से ही शेख हसीना ने अपने इर्द-गिर्द बांग्लादेश की सत्ता को बदलते हुए देखा था। उनके पिता थे शेख मुजीबुर रहमान, जिन्हें बांग्लादेश का राष्ट्रपिता कहा जाता है। बचपन से ही उन्होंने पिता को बांग्लादेश के लिए लड़ाई लड़ते, जेल जाते और राजनीति का हिस्सा बनते देखा था।
हसीना के पिता को पाकिस्तान ने भी राजनीतिक कैदी बनाया था और इस सबके कारण शेख हसीना राजनीति में शुरुआत से ही एक्टिव हो गईं।
साल 1975 में शेख हसीना, उनकी बहन, पति और बच्चे यूरोप गए थे तभी उनके पिता और बाकी परिवार वालों को 15 अगस्त के दिन मिलिट्री तख्तापलट में मार दिया गया था। इस दौरान शेख हसीना और बचे हुए परिवार वालों को 6 साल तक नई दिल्ली में इंदिरा गांधी ने पनाह दी थी। उस दौरान शेख हसीना को बांग्लादेश में जाने की इजाजत नहीं थी।
बांग्लादेश का तख्तापलट और शेख हसीना की ताकत
इसके बाद आया साल 1981 जिसमें शेख हसीना को अवामी लीग का प्रेसिडेंट बना दिया गया। 17 मई 1981 को शेख हसीना वहां वापस गईं। 10 सालों तक हसीना ने मिलिट्री रूल के खिलाफ मुहिम चलाई। इस बीच उन्हें कई बार डिटेंशन और हाउस अरेस्ट का सामना करना पड़ा। उस दौरान शेख हसीना की छवि तेजी से डेमोक्रेटिक लीडर की बन गई। 1986 के इलेक्शन में उन्हें अपोजिशन का लीडर बना दिया गया था। धीरे-धीरे शेख हसीना ने अपना आंदोलन आगे बढ़ाया। शेख हसीना के सपोर्टर्स और उनकी ताकत दोनों ही बढ़ने लगी।
साल 1991 आते-आते शेख हसीना और खालिदा जिया सबसे ताकतवर नामों में से एक बन गए।
लंबे समय के बाद शेख हसीना और खालिदा जिया ने मिलिट्री रूल को खत्म करने की कोशिश की थी और उसमें सफल भी हुए थे। बांग्लादेश में लगातार दंगे हो रहे थे, लोग सड़कों पर थे, आर्मी ने आंदोलन कर रहे लोगों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया था, सरकार में इस्तीफे हो रहे थे। उस दौरान खालिदा जिया की पार्टी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) और शेख हसीना की पार्टी (बांग्लादेश अवामी लीग) ने मिलकर तख्तापलट किया। इलेक्शन हुए और खालिदा जिया बन गईं बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री।
साल 1996 में फिर से की तख्तापलट की तैयारी
खालिदा जिया की पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने निष्पक्ष इलेक्शन करवाने से मना कर दिया। 1996 के फरवरी महीने में जनरल इलेक्शन हुए और बीएनपी के अलावा सभी पार्टियों ने इस इलेक्शन को मानने से इंकार कर दिया।
19 फरवरी को खालिदा जिया ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी और उनके खिलाफ इतने प्रदर्शन हुए कि 31 मार्च को ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद, मोहम्मद हबीबुर्रहमान अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त हुए और आखिरकार शेख हसीना 1996 में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बन ही गईं।
साल 2009 से 2024 तक संभाली सत्ता
पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बनने के बाद शेख हसीना 2001 में सत्ता से बाहर हो गई थीं, लेकिन 2009 में एक बार फिर से इलेक्शन में वह विजयी रहीं और लगातार 15 सालों तक वह प्रधानमंत्री रहीं। उन्होंने लगातार चौथी बार इलेक्शन 2023 जनवरी में जीता। हालांकि, शेख हसीना पांचवी बार पीएम बनने जा रही थीं, लेकिन लगातार चार इलेक्शन जीतकर शेख हसीना ने इतिहास बना दिया।
शेख हसीना ने इस दौरान कई फैसले लिए जिसकी वजह से बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को फायदा भी हुआ और नुकसान भी।
साल 2007 में शेख हसीना को कुछ आरोपों के चलते जेल भी हुई थी, लेकिन 2008 में उन्होंने बाहर आकर 2009 में चुनावी जीत दर्ज की। यही दौर था जब बांग्लादेश की आयरन लेडी ने अपनी ताकत दिखानी शुरू की।
अब तक शेख हसीना 2021 तक 'डिजिटल बांग्लादेश' बनाने की घोषणा कर चुकी थीं। शेख हसीना ने अपनी दूसरी टर्म में इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल स्थापित किया। उन्होंने बांग्लादेश में लगातार हो रहे दंगों और आंदोलनों को रोका।
तीसरी टर्म में हसीना पर फिर से बांग्लादेश के इलेक्शन में धांधली करने का आरोप लगा, लेकिन 2016 में हुए ढाका अटैक ने सब कुछ बदल दिया। यह बांग्लादेश में हुए अब तक के सबसे खराब आतंकी हमले थे। इस मामले में भी शेख हसीना सरकार पर आरोप लगे कि उनकी नाकामी और राजनीतिक नीतियों के कारण एक्सट्रीमिस्ट इस्लामिक ग्रुप्स बढ़ पाए।
इसके बाद साल 2017 में रोहिंग्या रिफ्यूजियों को शरण देने को लेकर बांग्लादेश के लोगों के बीच एक बार फिर शेख हसीना की छवि अच्छी हो गई। चौथी बार जीतने के बाद से बी शेख हसीना पर इकोनॉमी को लेकर प्रेशर बढ़ने लगा।
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साल 2024 और शेख हसीना का सत्ता परिवर्तन
5 अगस्त 2024 को बांग्लादेशी मिलिट्री ने शेख हसीना को सिर्फ 45 मिनट दिए थे रिजाइन करने के लिए। शेख हसीना ने रिजाइन किया और तुरंत ही देश छोड़ दिया। अगर ऐसा नहीं करतीं, तो उन्हें जान का खतरा था।
जिस तरह के हालात 5 अगस्त को बने, शेख हसीना की 15 साल की सत्ता और पांचवी इलेक्शन जीत सिर्फ 45 मिनट की मोहताज रह गई। जनवरी 2024 में जब शेख हसीना जीती थीं तब लगा ही नहीं था कि साल के मध्य तक ऐसे हालात हो जाएंगे। ये हुआ पिछले कुछ हफ्तों में जब शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन बढ़ने लगे।
बेरोजगारी, महंगाई और इलेक्शन में धांधली जैसे मुद्दे बढ़ते चले गए। स्टूडेंट्स सड़कों पर उतर कर बांग्लादेशी कोटा सिस्टम को हटाने की मांग कर रहे थे। इस कोटा सिस्टम के अनुसार 30% सरकारी नौकरियां बांग्लादेश 1971 के फ्रीडम फाइटर्स के परिवारों को मिलनी थी। उस वक्त शेख हसीना ने अपने विवादित बयान में कहा, "अगर फ्रीडम फाइटर्स के नाती-पोतों को कोटा नहीं दिया जाएगा, तो क्या राजाकारों (ईस्ट पाकिस्तान में बनी सेना जिसने कई अत्याचार किए थे।) को दिया जाएगा?"
इस बयान पर आंदोलन करने वालों को लगा कि उन्हें राजाकार कहा जा रहा है। इस बयान के बाद आंदोलन हिंसक हो गए। इसमें पुलिस और सेना भी शामिल करनी पड़ी। बांग्लादेश में आए दिन दंगे हुए और जुलाई से अगस्त के बीच में ही 200 से ऊपर लोगों की हत्या हो गई।
सरकार ने इंटरनेट बंद कर दिया, पुलिस और मिलिट्री को आदेश दिए और कर्फ्यू लगा दिया। आखिरकार 3 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कोटा सिस्टम को बदलने की मांग को मान लिया, लेकिन अब तक आंदोलन कर्ताओं की मांगों में शेख हसीना का इस्तीफा और माफीनामा शामिल हो चुका था। आंदोलन के दौरान मारे गए लोगों के लिए प्रदर्शन होने लगे।
आर्मी चीफ जनरल वाकर उज जमान भी इस आंदोलन में शेख हसीना के खिलाफ हो गए। 5 अगस्त को आर्मी ने आंदोलन कर्ताओं को खुली छूट दे दी और शेख हसीना इस्तीफा देकर भाग निकलीं।
अब सोशल मीडिया में आने वाले वीडियोज में दिख रहा है कि लोग शेख हसीना के घर से उनका सामान चुरा रहे हैं। साड़ियां, महंगे बैग्स और जरूरी सामान निकाला जा रहा है।
बांग्लादेश के ऐसे हालात के बाद भारत और बांग्लादेश के रिश्तों पर भी असर पड़ेगा। बांग्लादेश में अब क्या होगा यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन यह सही है कि अब शेख हसीना का दोबारा सत्ता में आना लगभग नामुमकिन लग रहा है।
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