हिंदू पंचांग के अनुसार किसी भी महीने का विशेष महत्व है। इनमें से सावन का महीना शिव पूजन के लिए विशेष माना जाता है। यह महीना भगवान शिव की भक्ति के लिए शुभ होता है और इन दिनों में कांवड़ यात्रा को विशेष माना जाता है।
सावन के महीने में भक्त कावड़ यात्रा करते हैं और महादेव को गंगाजल अर्पित करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इससे भक्तों को शिव जी का आशीर्वाद मिलता है। इस साल सावन का महीना 4 जुलाई से शुरू हो रहा है और इसी बीच कांवड़ यात्रा भी आरंभ होगी। इस साल अधिक मास की वजह से सावन एक नहीं बल्कि 2 महीने तक चलेगा और भक्तों की शिव जी की कृपा का आशीष दो महीनों तक मिलेगा। आइए ज्योतिषाचार्य डॉ आरती दहिया जी से जानें इस साल कांवड़ यात्रा की तिथि के बारे में।
अगर हम कांवड़ यात्रा के इतिहास के बारे में बात करें तो ये सदियों से चला आ रहा एक ऐसा अनुष्ठान है जो भक्तों की भक्ति का प्रमाण प्रस्तुत करता है। कांवड़ यात्रा में भक्त विभिन्न पवित्र स्थानों से गंगा जल लेने जाते हैं और फिर सावन की त्रयोदशी तिथि यानी कि सावन की शिवरात्रि के दिन गंगा जल को पवित्र स्थानों से वापस लाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं।
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इस साल कांवड़ यात्रा का शुभारंभ सावन की शुरुआत के साथ 4 जुलाई, मंगलवार को होगा। इस यात्रा में शिव भक्त दूर-दूर से कांवड़ लेकर महादेव की नगरी में पहुंचेंगे और बोल बम के जयकारे लगाते हुए आगे बढ़ेंगे।
इस साल यह यात्रा 4 जुलाई से शुरू होकर 31 अगस्त को समाप्त होगी और इस दौरान भक्त जल (शिवलिंग पर जल चढ़ाने का सही तरीका) लेकर शिव मंदिरों में भोलेनाथ को अर्पित करेंगे। झारखंड के बैद्यनाथ धाम समेत अन्य प्रसिद्ध शिव मंदिर में पूरे सावन कांवड़ियों का जमावड़ा देखने को मिलता है।
सावन के महीने में कांवड़ यात्रा एक प्रमुख अनुष्ठान माना जाता है और यह इसमें हर साल लाखों लोग तीर्थ यात्री हिस्सा लेते हैं। यह यात्रा अक्सर लंबी और कठिन होती है, लेकिन इसे शिव की भक्ति दिखाने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए सबसे अच्छे तरीके के रूप में देखा जाता है।
यह यात्रा कई कारणों से महत्वपूर्ण है। पहला, यह भक्तों के लिए शिव के प्रति अपनी भक्ति दिखाने का एक तरीका है। दूसरा, यह लोगों के एक साथ आने और उनके विश्वास का जश्न मनाने का एक तरीका है। तीसरा, यह लोगों के लिए प्रकृति से जुड़ने और गंगा नदी की सुंदरता का अनुभव करने का एक तरीका है।
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सावन में कांवड़ (डाक कांवड़ यात्रा क्या होती है)का जल चढ़ाने के कुछ विशेष दिन होते हैं। इनमें जल चढ़ाने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। अगर आप सावन शिवरात्रि के दिन जल चढ़ाते हैं तो सबसे ज्यादा शुभ माना जाता है।
कांवड़ यात्रा के दौरान जिस कांवड़ का इस्तेमाल किया जाता है वो बांस से बानी एक आकृति होती है जिसके दूसरे छोर पर दो घड़े बंधे होते हैं। भक्त उन घड़ों में गंगाजल भरकर उस स्थान तक की पैदल यात्रा करते हैं जहां उन्हें जल चढ़ाना होता है। ऐसी मान्यता है कि कांवड़ को कभी भी जमीन में नहीं रखना चाहिए अन्यथा इसका जल शिव जी को अर्पित नहीं होता है।
सावन के महीने में कांवड़ यात्रा को भगवान शिव को प्रसन्न करने का एक अच्छा तरीका माना जाता है। इस दौरान यात्री पवित्र गंगा जल घड़ों में भरकर भगवान शिव को अर्पित करते हैं।
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