कांवड़ यात्रा के बारे में आप सभी ने कभी न कभी सुना होगा। यह यात्रा श्रावण के महीने के दौरान होती है जो अंग्रेजी कैलेंडर में जुलाई से अगस्त के महीने में होती है। कांवड़ यात्रा हिंदू कैलेंडर के अनुसार श्रावण मास की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर सावन की चतुर्दशी यानी कि सावन शिवरात्रि तक होती है।
कावड़ यात्रा भगवान शिव के भक्तों द्वारा प्रतिवर्ष मनाई जाती है। इस यात्रा को जल यात्रा भी कहा जाता है क्योंकि इस प्रथा में यात्रियों को कांवड़िया कहा जाता है और कांवड़ हिंदू तीर्थ स्थानों से गंगा जल लाने के लिए हरिद्वार जाते हैं और फिर प्रसाद चढ़ाते हैं।
लेकिन इन सभी कावड़ियों में से एक प्रमुख हैं डाक कांवड़। ऐसा माना जाता है कि डाक कांवड़ यात्रा सबसे ज्यादा कठिन होती है। ऐसा माना जाता है कि यह सबसे ज्यादा कठिन यात्रा होती है। आइए ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु विशेषज्ञ डॉ आरती दहिया जी से जानें डाक कांवड़ से जुड़ी कुछ बातों के बारे में।
क्या होते हैं डाक कावंड़
ऐसा माना जाता है कि कांवड़िए कांवड़ लेकर लंबी यात्राएं करते हैं लेकिन बीच में विश्राम भी लेते हैं। लेकिन जब बात डाक कांवड़ की आती है तब उन्हें बीच में विश्राम करने की अनुमति नहीं होती है। डाक कांवड़ में जब एक बार कांवड़ उठा लेते हैं तब बिना गंतव्य तक पहुंचे हुए वो रुकते नहीं हैं। डाक कांवड़ियों को एक निश्चित समय सीमा के अंदर ही शिवालय में जलाभिषेक करना होता है। ऐसा माना जाता है यात्रा के दौरान कांवड़िये मूत्र- मल भी नहीं त्यागते हैं। अगर नियमों को कोई तोड़ता है तो यात्रा खंडित हो जाती है। आमतौर पर डाक कावंडि़ए समूह में चलते हैं लेकिन कभी -कभी ये किसी वाहन का इस्तेमाल भी करते हैं।
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डाक कांवड़ यात्रा के नियम
- डाक कांवड़ियों के लिए तामसिक भोजन करने की मनाही होती है और उन्हें सात्विक रहने की सलाह दी जाती है।
- सिर्फ भोजन ही सात्विक नहीं बल्कि उन्हें किसी भी नशे का सेवन करने की भी मनाही होती है।
- डाक कांवड़ों के नियम के अनुसार पैदल यात्रा की सलाह दी जाती है।
- यात्रा को बहुत ही पवित्र माना जाता है और मन के साथ शरीर की शुद्धि भी जरूरी होती है।
- डाक कांवड़िए अपने गंगाजल भरे कांवड़ को जमीन पर नहीं रख सकते हैं और कहीं रुक भी नहीं सकते हैं।
- डाक कांवड़ यात्रा शुरू होने के बाअद शिव जी के जलाभिषेक तक बिना रुके लगातार चलती है।
कांवड़ यात्रा के प्रकार
कांवड़ यात्रा मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है पहली डाक कांवड़ और दूसरी खड़ी कांवड़ यात्रा। डाक कांवड़ यात्रा में कांवड़िए बिना रुके हुए यात्रा पूरी करते हैं और खड़ी कांवड़ यात्रा में मुख्य कांवड़ियों के साथ उनके सहयोगी अपने कंधे पर उनकी कांवड़ ले लेते हैं और कांवड़ को लेकर वह एक ही जगह पर खड़े रहते हैं।
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डाक कांवड़ यात्रा भले की कठिन क्यों न हो लेकर शिव भक्त भोले की भक्ति में लीन होकर इस यात्रा को पूरा जरूर करते हैं। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
Image Credit: freepik
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