हिंदू धर्म के अनुसार पितृ पक्ष का विशेष महत्त्व है। पितृ 16 दिन हमारे मृत पूर्वजों को समर्पित होते हैं और इस दौरान उन्हें जल और भोजन अर्पित करने की प्रथा है। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान यदि मृत पूर्वज प्रसन्न हो जाते हैं तो सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं और यदि वो किसी वजह से अप्रसन्न होते हैं तो पितृ दोष हो जाता है जिससे बनते हुए कार्य भी बिगड़ने लगते हैं। इसलिए लोग पितृ दोष से बचने के लिए कई प्रयासों से पूर्वजों को प्रसन्न करते हैं।
लेकिन ऐसी मान्यता है कि यदि किसी वजह से आपसे कोई भूल चूक हो जाती है तो इससे बचने के लिए सर्व पितृ अमावस्या के दिन एक साथ पूर्वजों को तर्पण किया जाता है। पितृ पक्ष का समापन अश्विन मास की अमावस्या तिथि को होता है। इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या या महालय अमावस्या भी कहा जाता है। मान्यतानुसार इस दिन पितरों के श्राद्ध का अंतिम दिन होता है। आइए नई दिल्ली के जाने माने पंडित, एस्ट्रोलॉजी, कर्मकांड,पितृदोष और वास्तु विशेषज्ञ प्रशांत मिश्रा जी से जानें कि इस साल पितृ पक्ष की अमावस्या यानी कि सर्वपितृ अमावस्या कब पड़ रही है और किस मुहूर्त में तर्पण या श्राद्ध करना शुभ होगा।
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पितृ पक्ष की प्रत्येक तिथि में विधि विधान से श्राद्ध किया जाता है। लेकिन अमावस्या तिथि का विशेष महत्त्व है क्योंकि इस दिन श्राद्ध करने से पूरे 16 दिनों के श्राद्ध का फल एक साथ मिलता है। यदि किसी वजह से मृत पूर्वजों की देहांत की तिथि न तो इस दिन श्राद्ध करने से उन्हें मुक्ति मिलती है। मान्यतानुसार इस दिन ज्ञात, अज्ञात सभी पितरों के निमित्त श्राद्ध करने का विधान है। कहा जाता है कि इस दिन सही विधि से किए गए श्राद्ध से पितरों की आत्मा को मुक्ति मिलती है और वो अपने परिजनों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। कहा जाता है कि इस दिन जो जल पितरों को तर्पण किया जाता है वो सीधा पितरों को मिलता है।
वैसे तो सभी पितरों की श्राद्ध एक साथ सर्व पितृ अमावस्या के दिन किया जा सकता है लेकिन इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने का विशेष महत्त्व है। श्राद्ध करते समय घर की दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके पितरों को तर्पण करें और इसके बाद ब्राह्मणों के लिए जो भोजन बनाएं उसमें से 5 हिस्से निकालें जिसे देवताओं, गाय, कुत्ते, कौए और चींटियों के लिए निकालें। इसके बाद ब्राह्मणों को खीर,पूड़ी और पितरों की पसंद की अन्य चीजें श्रद्धा पूर्वक खिलाएं। इसके बाद ब्राह्मणों को वस्त्र-दक्षिणा देकर विदा करें और पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें। इस प्रकार मृत पूर्वजों को याद करते हुए तर्पण करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
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मान्यता है कि सर्व पितृ अमावस्या के दिन हवन करके पितरों को विदाई दी जाती है और इस दिन दीप प्रज्जवलित करने का अलग महत्त्व है। कहा जाता है कि इस दिन पितरों के नाम का दीपकजलाने से उन्हें मुक्ति मिलती है और वो प्रसन्न होकर अपने लोक वापस चले जाते हैं। दीप प्रज्ज्वलित करने के लिए सूर्यास्त के बाद घर की दक्षिण दिशा में तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए।
इस प्रकार सर्व पितृ अमावस्या में श्राद्ध और तर्पण करना विशेष रूप से फलदायी होगा और इस तरह पितरों का पूजन करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होगी।
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Image Credit: freepik and shutterstock
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