12 साल पहले की वो खौफनाक रात, Nirbhaya Case के बाद बदले कई कानून...लेकिन नहीं थमे महिलाओं के खिलाफ अपराध

निर्भया रेप मामले को 12 साल बीत चुके हैं। लेकिन, क्या उस खौफनाक रात के बाद हमारे देश में कुछ बदला है? क्या कानूनों में बदलाव के बाद महिलाओं के खिलाफ अपराध थम गए हैं? आइए, इस बारे में यहां डिटेल से जानने की कोशिश करते हैं। 
Nirbhaya Case 12 years complete

देश की राजधानी दिल्ली में 12 साल पहले यानी 16 दिसंबर 2012 को ऐसी घटना हुई थी, जिसे याद करके आज भी रौंगटे खड़े हो जाते हैं। 12 साल पहले निर्भया की चीखों ने देशभर के लोगों की आत्मा का झंकझोर दिया था। निर्भया बलात्कार की घटना ने महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों पर गहरी चिंता और विरोध को भी जन्म दे दिया था। लेकिन, 12 साल बीतने के बाद क्या हमारे समाज में महिलाओं की सुरक्षा के लिए वही गहरी चिंता और विरोध जिंदा है? क्या 12 सालों में बदले कानूनों के बाद देश में महिलाएं सुरक्षित हैं और क्या महिलाओं के खिलाफ अपराध थम गए हैं? आज हम इन्हीं सवालों का जवाब कुछ आंकड़ों के साथ लेकर आए हैं।

निर्भया केस को 12 साल पूरे हो गए हैं। हम साइंस और टैक्नोलॉजी के युग में जी रहे हैं, जहां महिलाएं अपना दम-खम दिखा रही हैं। लेकिन, जब भी महिलाओं की सुरक्षा और उनके खिलाफ हो रहे अपराधों की बात आती है तो शर्मिंदगी क्यों महसूस होने लगती है। इस शर्मिंदगी के पीछे की वजह है देशभर में हो रहे महिलाओं के खिलाफ अपराध के आंकड़ें।

कितनी बदली 12 साल में महिलाओं की स्थिति?

crime against women

केंद्र सरकार की एजेंसी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में एक साल में महिलाओं के खिलाफ चार लाख से आपराधिक मामले दर्ज किए जाते हैं। अब आप सोचिए कि चार लाख मामले दर्ज किए जाते हैं, तो कितने ऐसे मामले होंगे जो समाज, चार लोग क्या कहेंगे और परिवार की इज्जत के नाम पर दबा दिए जाते होंगे।

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हम ज्यादा पीछे नहीं जाते हैं, बल्कि इस साल के सबसे बड़े उस मामले पर रौशनी डालने की कोशिश करते हैं जिसने 2024 में निर्भया मामले की याद दिला दी थी और एक बार फिर देश भर में आक्रोश की लहर पैदा कर दी थी। आपको याद ही होगा साल 2024 के अगस्त महीने में कोलकाता में एक जूनियर डॉक्टर के साथ बेरहमी से रेप और मर्डर कर दिया गया था।

  • कोलकाता रेप और मर्डर केस का मामला 9 अगस्त 2024 को सामने आया था। इस केस के बाद 10 दिनों के भीतर ऐसे मामले सामने आए, जिन्होंने देशभर में महिलाओं की स्थिति पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया था। जिनमें से एक 9 अगस्त को उत्तराखंड में नर्स के साथ रेप और हत्या का मामला था।

  • 8-9 अगस्त को एक 13 साल की बच्ची के साथ कुकर्म की खबर भी सामने आई थी। जिसमें बच्ची के साथ रेप उसके पिता ने ही किया था। अब इस खबर से आप सोच सकते हैं कि हम और हमारा समाज किस स्थिति में है और कहां जा रहा है।

  • 13 साल की बच्ची के बाद 12 अगस्त को 6 साल की एक बच्ची के साथ रेप का मामला सामने आया था। 12 अगस्त को ही एक 16 साल की लड़की के साथ बस ड्राइवर और कंडक्टर समेत कई ने गैंगरेप किया था।

  • 14 अगस्त को मुंबई में 3 साल की मासूम का 9वीं क्लास में पढ़ने वाले एक स्टूडेंट ने रेप किया था।

12 साल में इन मामलों ने सोचने पर किया मजबूर

crime cases in last 12 years

कठुआ रेप केस: निर्भया गैंगरेप केस के बाद कठुआ गैंगरेप मामले पर भी सड़क से लेकर संसद तक, चर्चा हुई थी। इस मामले में एक 8 साल की मुस्लिम बच्ची को किडनैप करके मंदिर जैसी पवित्र जगह पर कुकर्म हुआ था।

हैदराबाद रेप केस: इस मामले में 26 साल की वेटनरी डॉक्टर को पहले किडनैप किया गया था और फिर रेप के बाद उसे जलाकर मार दिया गया था। हैदराबाद रेप केस ने लोगों में इतना आक्रोश भर दिया था कि आरोपियों का एनकाउंटर किया गया था।

हाथरस रेप केस: 19 साल की दलित लड़की के रेप की इस घटना को कई तरह के एंगल देने की कोशिश की गई थी। इस मामले में लड़की की मृत्यु अस्पताल में हुई थी और बिना परिवार की इजाजत और उन्हें बताए शव को जला भी दिया गया था। हाथरस रेप केस में राजनेताओं और राजनीतिक पार्टियों ने भी कई तरह के बयान दिए थे।

महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों की लिस्ट यहां नहीं खत्म होती है। यह लिस्ट इतनी लंबी है कि इस पर लिखते और आपके पढ़ते पूरा दिन बीत जाएगा।

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कितने आपराधिक मामलों में मिलती है सजा?

NCRB के आंकड़ों पर नजर डालें तो रेप के 100 मामलों में से एक 27 या 28 मामलों में ही सजा मिल पाती है। अन्य मामलों में आरोपी पर आरोप साबित नहीं हो पाता है और वह बरी हो जाता है।

निर्भया मामले के 12 साल बाद कितने कानून बदल चुके हैं, लेकिन महिलाओं के खिलाफ आपराधिक मामलों में किसी तरह की कमी नहीं देखने को मिल रही है। यह तो आंकड़ों को देखकर साफ-साफ समझा जा सकता है। कई मामले तो शायद आंकड़ों में भी शामिल नहीं हो पाते हैं और कई न्याय की राह ताकते-ताकते आंकड़े ही बनकर रह जाते हैं।

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Image Credit: Freepik

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