मस्जिद में नमाज अदा कर सकती हैं मुस्लिम महिलाएं- AIMPLB ने सुप्रीम कोर्ट से कहा

मुस्लिम महिलाएं मस्जिद में नमाज अदा कर सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट को दिए अपने हलफनामे में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ये बात कही है।  

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पुरुष प्रधान समाज में मुस्लिम महिलाओं को अपना हक पाने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा है, लेकिन समय के साथ हालात बदल रहे हैं। मुस्लिम महिलाएं स्वयं भी अपने अधिकारों के लिए बहुत सजग हैं। हाल ही में मुस्लिम महिलाओं की मांग पर ट्रिपल तलाक पर बैन लगा दिया गया था और अब ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से सुप्रीम कोर्ट को बताया गया है कि महिलाएं मस्जिद में जाकर नमाज अदा कर सकती हैं। मुस्लिम संप्रदाय की महिलाओं के लिए यह एक बड़ी खुशखबरी है।

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ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपने हलफनामे में ये कहा

मस्जिद में पुरुषों की तरह नमाज अदा करने का हक पाने के लिए पिछले कुछ समय में महिला संगठनों की तरफ से आवाज उठाई रही थी और आखिरकार उनकी यह बात ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मान ली। यासमीन जुबेर अहमद पीरजादे की पीआईएल पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के जवाब में यह बात सामने आई। यासमीन जुबेर अहमद पीरजादे ने मुस्लिम महिलाओं को मस्जिद में जाने का हक दिलाने के लिए अदालती कार्रवाई की मांग की थी।

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इस पर 9 सदस्य कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच का जवाब आना है, जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे करेंगे। यह बेंच महिलाओं के खिलाफ होने वाले भेदभाव से जुड़े मामलों के कानूनी और संवैधानिक पक्ष पर विचार करेगी। यह पीठ सिर्फ मुस्लिम ही नहीं बल्कि कई अन्य धर्मों में महिलाओं के साथ होने वाले अलग व्यवहार पर विचार करेगी। केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का मामला भी इसमें शामिल है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सेक्रेटरी मोहम्मद फजलुर रहीम ने अपने वकील शमशेर के जरिए दायर किए हलफनामे में कहा,

'धार्मिक लेखों और धार्मिक विश्वासों के अनुसार महिलाएं मस्जिद में नमाज अदा कर सकती हैं और मस्जिद में उनका प्रवेश स्वीकार्य है, उन पर किसी तरह की पाबंदी नहीं है। यह पूरी तरह उनका अधिकार है कि वे मस्जिद में आकर नमाज अदा करें। इस बारे में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड नहीं किसी और तरह का धार्मिक विचार व्यक्त नहीं करना चाहता।'

इस हलफनामे के अनुसार इस्लाम में महिलाओं के लिए इकट्ठे होकर नमाज अदाज करना अनिवार्य नहीं है, ना ही जुम्मे की नमाज अदा करने के लिए कोई अनिवार्यता है, हालांकि पुरुषों के लिए यह अनिवार्य है।

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सुप्रीम कोर्ट ने 7 सदस्यीय बैंच काकिया था गठन

कई धर्मों में धार्मिक स्थानों पर महिलाओं को पुरुषों की तरह जाने का अधिकार नहीं हैं और इस पर व्यापक रूप से चर्चा के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 7 सदस्यीय बैंच बनाए जाने की घोषणा की थी। यह पीठ महिलाओं के धार्मिक स्थानों पर प्रवेश वर्जित होने से जुड़े सभी मामलों पर व्यापक चर्चा करेगी।

सबरीमाला मंदिर में प्रवेश के अधिकार पर भी आना है फैसला

केरल स्थित सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले आदेश में इजाजत दे दी थी। लेकिन शीर्ष अदालत का यह फैसले आने के बाद कई पुनर्विचार याचिकाएं दायर हुईं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए बताया था कि यह मामला अब 7 जजों की बैंच को सौंप दिया है। सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा था, 'महिलाओं का मंदिर में प्रवेश एक बड़ी चर्चा का विषय है, जिसमें मुस्लिम और पारसी महिलाओं को धार्मिक स्थानों पर जाने की स्वीकृति और दाऊदी बोहरा समुदाय में महिलाओं के फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन जैसे विषय भी शामिल होने चाहिए। इसमें सभी पक्षों को अपनी बात रखने का मौका मिलना चाहिए।' इस मामले पर सर्वोच्च अदालत ने कहा था, 'महिलाओं के धार्मिक स्थानों में प्रवेश वर्जित होने का मामला सिर्फ सबरीमाला तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह दूसरे समुदायों में भी प्रचलित है।' अगर महिलाओं को पुरुषों के समान धार्मिक स्थानों पर प्रवेश करने का अधिकार मिलता है तो निश्चित रूप से इससे महिलाओं का हौसला बढ़ेगा और महिला सशक्तीकरण की मुहिम को इससे बढ़ावा मिलेगा।

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