Maternity Leave in India: मां बनना हर महिला के जीवन का बेहद खास और खूबसूरत पल होता है। यह वह समय होता है, जब ना सिर्फ उसका शरीर बल्कि उसकी सोच और जिंदगी के नए अध्याय में कदम रखती है। ऐसे में कामकाजी महिलाओं के लिए प्रेगनेंसी के दौरान मानसिक और शारीरिक आराम बेहद ही जरूरी होता है। अगर कोई महिला ऑफिस में करती है, तो कंपनी की तरफ से प्रेगनेंसी के दौरान मैटरनिटी लीव दी जाती है, ताकि वह अपने मां बनने के समय को जी सके। लेकिन अक्सर महिलाओं के मन में यह सवाल आता है कि आखिर उन्हें कॉर्पोरेट सेक्टर में कितनी बार मैटरनिटी लीव मिल सकती है।
क्या हर बार नौकरी बदलने पर मैटरनिटी लीव मिलती है। बता दें कि मैटरनिटी लीव सिर्फ एक सुविधा नहीं बल्कि महिलाओं का कानूनी हक है। अब ऐसे में इन नियमों के बारे में पता होना बेहद जरूरी है। इस लेख में जानते हैं महिलाओं को बेबी प्लानिंग के दौरान मैटरनिटी लीव कितनी बार और किस तरह मिल सकती है और इसे लेकर क्या नियम हैं।
मैटरनिटी को लेकर क्या हैं नियम?
आज के समय में जब महिलाएं करियर और फैमिली दोनों के बीच बेहतरीन बैलेंस बनाने की कोशिश कर रही हैं, ऐसे में बेबी प्लानिंग के साथ मैटरनिटी लीव का सही ज्ञान होना बहुत जरूरी है। यही वजह है कि भारत सरकार ने इस पर बेहद स्पष्ट और सहायक नियम बनाए हैं। भारत में मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट, 1961 के अनुसार, महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान नौकरी से छुट्टी और सैलरी दोनों मिलते हैं। वहीं साल 2017 में इस एक्ट में संशोधन हुआ था, उसके बाद कुछ और महत्वपूर्ण नियम बनाए गए। नीचे देखिए उन नियमों के बारे में-
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मैटरनिटी लीव की अवधि
किसी महिला कर्मचारी को पहले और दूसरे बच्चे के लिए 26 हफ्ते यानी 6 महीने तक की पेड लीव मिलती है। अगर तीसरा बच्चा है या उससे ज़्यादा, तो लीव 12 हफ्ते ही दी जाती है।
लीव शुरू होने का समय
महिला डिलीवरी से पहले अधिकतम 8 हफ्ते की छुट्टी ले सकती है, बाकी की छुट्टी डिलीवरी के बाद मिलेगी।
एडॉप्शन और सरोगेसी पर भी लाभ
अगर कोई महिला किसी बच्चे को गोद लेती है, जो 3 महीने से छोटा है, तो स्थिति में 12 हफ्ते की मैटरनिटी लीव मिलती है। मैटरनिटी लीव के बाद, अगर महिला चाहें , तो कंपनी उसे वर्क फ्रॉम होम का विकल्प भी दे सकती है। ऐसे में कुल मिलाकर, पहले दो बच्चों के लिए 26 हफ्ते और तीसरे बच्चे से आगे 12 हफ्ते की छुट्टी का प्रावधान है।
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