प्रयागराज में 2025 में होने वाला महाकुंभ एक अद्भुत धार्मिक आयोजन है। यह विश्व का सबसे बड़ा मेला माना जाता है, जिसमें न केवल भारत से बल्कि पूरी दुनिया से हिंदू श्रद्धालु आते हैं। इसके साथ ही, अन्य धर्मों के लोग भी इस मेले की भव्यता देखने के लिए आते हैं। वहीं महाकुंभ का अंतिम शाही स्नान 26 फरवरी को होगा। क्या आप जानते हैं कि अमृत स्नान के बाद अखाड़ों में पुकार क्यों होती है? यह एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जिसमें अखाड़े के साधु-संत अपने गुरुओं को भेंट अर्पित करते हैं। यह परंपरा महाकुंभ के दौरान तीन बार होती है और इसे बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। अब ऐसे में महांकुंभ में कई लोगों ने गुरु दक्षिणा ली है। आखिर यह दक्षिणा इतना महत्वपूर्ण क्यों मना जाता है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से गुरु दक्षिणा की परंपरा है और साधुओं द्वारा लाखों के दान के कारण के बारे में जानते हैं।
शाही स्नान के बाद अखाड़ों में इस परंपरा के बारे में जाने
महाकुंभ मेला एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जो हर 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है। इस मेले में त्रिवेणी संगम में स्नान का विशेष महत्व है। त्रिवेणी संगम वह स्थान है जहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का मिलन होता है। इस संगम में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। शाही स्नान महाकुंभ मेले का एक प्रमुख अनुष्ठान है। इस दिन विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत त्रिवेणी संगम में स्नान करते हैं। शाही स्नान के बाद अखाड़ों में पुकार की परंपरा भी पूरी की जाती है। इस परंपरा के तहत अखाड़े के साधु-संत अपने गुरु को भेंट देते हैं। यह भेंट गुरु के प्रति सम्मान और समर्पण का प्रतीक है।
महाकुंभ मेला एक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का त्योहार है। यह त्योहार हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस मेले में भाग लेने से मनुष्य को धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं।
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यह अनोखी परंपरा कब होती है?
महाकुंभ मेले में अमृत स्नान के बाद पुकार परंपरा को पूरा किया जाता है। इस परंपरा के अनुसार, सभी अखाड़े दशनामी गुरुओं के नाम पर भेंट देते हैं। जब सभी अखाड़े शाही स्नान करके अपने शिविरों में लौटते हैं, तो सभी साधु-संत सबसे पहले दशनामी गुरुओं के नाम पर दक्षिणा भेंट करते हैं। इस भेंट में लाखों रुपयों से लेकर 50 रुपये तक की राशि शामिल होती है।
परंपरा का स्थान अखाड़े की धर्म ध्वजा के नीचे ईष्टदेव की जहां पर मूर्ति स्थापित की जाती है, वहीं पर बैठकर अखाड़े के महंत या प्रमुख पदाधिकारी पुकार की परंपरा को पूरा किया जाता है। सभी अखाड़े इस परंपरा को निभाते हैं।
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Image Credit- HerZindagi
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