देश में भले ही आधी आबादी महिलाओं की है फिर भी कानून और न्यायपालिका के क्षेत्र में उन्हें मुख्य पदों पर पहुंचने में कई साल लग गए हैं। आज भी उन्हें बराबरी का हक पाने के लिए कड़े संघर्षों का सामना करना पड़ रहा है। महिलाओं को संविधान से लिखित अधिकार तो मिले हुए हैं पर हकीकत में आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। लेकिन, आज की महिलाएं भी किसी पुरुष से कम नहीं हैं। वह अपनी काबिलियत कई क्षेत्रों में साबित करके एक लंबी रेस का घोड़ा साबित हो रही हैं।
आज इस लेख के जरिए हम आपको एक ऐसी महिला की कहानी बताने वाले हैं जिसने समाज की रूढ़िवादी सोच को गलत साबित करते हुए सफलता की बेमिसाल कहानी पेश की। जस्टिस लीला सेठ उन गिनी-चुनी महिलाओं में से एक हैं जो न्यायपालिका के क्षेत्र में बड़ी सफलता हासिल कर सकी हैं।
लीला सेठ पहली ऐसी महिला हैं जो हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस बनीं
देश की आजादी के साथ भारतीय सुप्रीम कोर्ट 1950 में अस्तित्व आया। साल 1989 तक देश की सर्वोच्च अदालत में जस्टिस फातिमा बीबी ही एक मात्र महिला जज थीं। आपको बता दें कि देश की आजादी से लेकर आज तक सिर्फ 7 महिलाएं ऐसा करने में कामयाब रही हैं। जस्टिस लीला सेठ देश के हाई कोर्ट की पहली महिला चीफ जस्टिस रही हैं। सबसे पहले वह दिल्ली हाई कोर्ट की पहली महिला जज बनीं। वह 'मदर इन लॉ' के नाम से फेमस थीं। 5 अगस्त 1991 को उन्होंने इतिहास रच दिया। दिल्ली हाई कोर्ट में पहली महिला जज के साथ-साथ उन्हें हिमाचल प्रदेश के हाई कोर्ट की पहली महिला चीफ़ जस्टिस बना दिया गया।
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लंदन बार एग्जाम में किया था टॉप
जस्टिस लीला का जन्म साल 1930 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुआ था। उनके पिता रेलवे सर्विस में काम करते थे। मात्र 11 साल की उम्र में उनके पिता की मृत्यु हो गई। पिता के जाने के बाद भी लीला की मां ने उनकी पढ़ाई में कोई कमी नहीं की। उन्होंने दार्जिलिंग के लॉरेटो कॉन्वेंट स्कूल से पढ़ाई की और अपने करियर की शुरुआत स्टेनोग्राफर के रूप में की। काम के दौरान ही वह प्रेम सेठ से मिली जिनसे आगे चलकर उन्होंने शादी की। शादी के बाद वह अपने पति के साथ लंदन चली गईं और वहां रहते हुए अपनी पढ़ाई एक बार फिर शुरू की। उन्होंने 27 साल की उम्र में लंदन बार परीक्षा में टॉप किया। उस समय तक वह एक बच्चे की मां भी बन चुकी थीं। भारत वापस आकर उन्होंने पटना में प्रैक्टिस शुरू की। जब वह कोर्ट रूम जाया करती थीं तब उन्हें देखकर लोग आश्चर्यचकित हो जाते थे।
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महिलाओं के हक लिए हमेशा उठाई आवाज़
जस्टिस लीला भारत में महिलाओं के अधिकारों को लेकर बनी मुख्य कमिटियों का हिस्सा भी रहीं हैं। वह 15वीं लॉ कमिशन का भी हिस्सा थीं, जिसमें हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में बड़े बदलावों की सिफारिश की थी। इस सिफारिश के बाद ही महिलाओं को पारिवारिक धन-संपत्ति में बराबरी का हक मिलने का फैसला लिया गया। वह जस्टिस वर्मा कमेटी का भी हिस्सा रही थीं, जो निर्भया गैंगरेप के बाद गठित की गई थी। उन्होंने महिलाओं के साथ-साथ समलैंगिकों के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई। साल 2017 में जस्टिस लीला सेठ की मृत्यु 83 साल की उम्र में हो गई।
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(Image Credit: Instagram)
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