हिन्दू धर्म में हर एक ईश्वर की पूजा का अलग ही महत्त्व है और किसी विशेष दिन पूजा करना अत्यंत फलदायी होता है। जिस तरह से विष्णु जी के साथ माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है उसी ग्तरह प्रभु श्री राम के साथ माता सीता की पूजा करने का विधान है। माता सीता को लक्ष्मी जी का अवतार माना जाता है और राम जी को विष्णु जी का ही रूप माना जाता है। श्री राम जी का जन्म दिवस राम नवमी को मनाया जाता है। उसी तरह माता सीता का जन्म दिवस भी धूम-धाम से मनाने की प्रथा है।
हर साल माता सीता का जन्म फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। मान्यतानुसार इस दिन मिथिला के राजा जनक और रानी सुनयना की गोद में माता सीता आईं थीं। आइए जानें इस साल कब है जानकी जयंती और क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।
जानकी जयंती की तिथि
इस साल यानी वर्ष 2021 को जानकी जयंती 6 मार्च, शनिवार के दिन पड़ रही है। इस दिन पूरे हर्षोल्लास से माता सीता का जन्म (माता सीता का जन्म स्थान) दिवस मनाया जाएगा। इस दिन पूरे श्रद्धा भाव से पूजा करने का और व्रत रहने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने वाली सुहागिन स्त्रियों का सुहाग लंबे समय तक बना रहता है और कुंवारी कन्याओं को अच्छे वर की प्राप्ति होती है।
जानकी नवमी का शुभ मुहूर्त
अयोध्या के जाने माने पंडित श्री राधे शरण शास्त्री जी के अनुसार
- अष्टमी तिथि का प्रारंभ- 05 मार्च को शाम 07 बजकर 54 मिनट पर होगा।
- अष्टमी तिथि का समापन- 06 मार्च शनिवार को शाम 06 बजकर 10 मिनट पर।
- उदया तिथि के अनुसार अष्टमी तिथि - 06 मार्च 2021 को है। इसलिए जन्मोत्सव इसी दिन मनाना शुभ होगा।
माता सीता के जन्म कथा
रामायण की कथा के अनुसार, एक बार मिथिला राज्य में भयंकर सूखा पड़ा और राजा जनक परेशान हो गए। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्हें एक ऋषि ने यज्ञ करने और धरती पर हल चलाने का सुझाव दिया। ऋषि के सुझाव पर राजा जनक ने यज्ञ करवाया और उसके बाद राजा जनक धरती में हल चलाने लगे। हल से जुताई करते समय उन्हें एक बड़े कलश में माता सीता बाल रूप मने मिलीं। राजा जनक की कोई संतान नहीं थी और उस कन्या को गोद में लेते ही राजा जनक को पिता होने की अनुभूति मिली। तब राजा जनक ने उस कन्या को स्वीकार करके सीता का नाम दिया। आगे चलकर माता सीता का विवाह भगवान श्रीराम (राम मंदिर से जुड़ी कुछ ख़ास बातें) के साथ हुआ और उन्हें श्री राम के साथ 14 वर्ष का वनवास भी बिताना पड़ा। माता सीता के प्राकट्य की तिथि को ही उनके जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है।
जानकी जयंती का महत्व
इस दिन को माता सीता के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। सुहागिन स्त्रियां अपने घर की सुख शांति और अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। जानकी जयंती पर मंदिरों में भगवान श्री राम और माता सीता की पूजा बड़े भक्ति भाव से की जाती है और भक्तों का तांता मंदिरों में लग जाता है। मान्यता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति भगवान श्री राम और माता सीता की पूजा करता है उसे विशेष फल की प्राप्ति होती है। जानकी जंयती का व्रत सौभाग्यशाली स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं हुए कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए।
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कैसे होता है पूजन
- जानकी जयंती या सीता अष्टमी के दिन माता सीता की पूजा की जाती है, लेकिन पूजा की शुरुआत गणेश जी और अंबिका जी से होती है। इसके बाद माता सीता को पीले फूल, कपड़े और सुहागिन के श्रृंगार का सामान चढ़ाया जाता है।
- इस दिन सुहागिन स्त्रियां सुबह उठकर सर्वप्रथम स्नान करें और घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। दीप प्रज्वलित करने के बाद व्रत का संकल्प लें।
- घर के मंदिर में सभी देवी देवताओं को जल से स्नान करवाएं।
- यदि संभव हो तो देवताओं को स्नान वाले जल में गंगा जल मिलाएं। भगवान राम और माता सीता का ध्यान करें। शाम को माता सीता की आरती के साथ व्रत खोलें।
- माता सीता को भोग अर्पित करें और प्रियजनों को बातें और स्वयं भी खाएं।
इस प्रकार सीता अष्टमी के दिन पूरे श्रद्धा भाव से पूजन करने से कई पापों से मुक्ति मिलने के साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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