
हिंदू धर्म में काल भैरव जयंती का बहुत गहरा महत्व है। यह भगवान शिव के सबसे भयंकर और शक्तिशाली स्वरूप काल भैरव के अवतरण का दिन है। 'काल' का अर्थ है समय या मृत्यु और 'भैरव' का अर्थ है भय को हरने वाला। इस रूप में भगवान शिव ने स्वयं काल को भी नियंत्रित करने की शक्ति दिखाई है। काल भैरव को काशी का कोतवाल भी कहा जाता है और इनकी पूजा करने से भक्तों को सभी भय, मृत्यु का डर, नकारात्मक ऊर्जा और शनि तथा राहु के बुरे प्रभाव से मुक्ति मिलती है। हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है और इस दिन भगवान काल भैरव की पूजा का विधान है। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं आज भगवान काल भैरव से जुड़ी एक रहस्यमयी कथा के बारे में जिसके तहत मार्कंडेय ऋषि ने काल तक को अपने आधीन कर लिया था।
एक समय मृकण्डु ऋषि और उनकी पत्नी मरुद्मती ने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया। शिव जी ने उन्हें संतान का वरदान दिया, लेकिन एक शर्त रखी या तो उन्हें गुणवान लेकिन अल्पायु पुत्र मिलेगा या मूर्ख और दीर्घायु पुत्र। ऋषि दंपति ने अल्पायु लेकिन गुणवान पुत्र को चुना और उसका नाम मार्कण्डेय रखा।

जैसे-जैसे मार्कण्डेय बड़े हुए उन्हें अपने पिता से अपनी अल्पायु का सत्य पता चला। जब उनकी आयु 16 वर्ष पूरी होने वाली थी तब उनके माता-पिता बहुत दुखी हुए। मार्कण्डेय ने अपने माता-पिता को दिलासा दिया और कहा कि जब उनके रक्षक स्वयं महादेव हैं तो उन्हें डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। निश्चित तिथि पर यमराज भैंसे पर सवार होकर अपने दूतों के साथ मार्कण्डेय को लेने आए।
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जब यमराज वहां पहुंचे तो मार्कण्डेय भगवान शिव की भक्ति में पूरी तरह लीन थे और वे एक शिवलिंग को कसकर पकड़े हुए थे। यमराज ने मार्कण्डेय को खींचने के लिए अपना पाश उनकी ओर फेंका। लेकिन अनजाने में वह पाश मार्कण्डेय के साथ-साथ शिवलिंग पर भी जा पड़ा। शिवलिंग पर पाश पड़ते ही भगवान शिव अत्यधिक क्रोधित हो उठे।

उसी क्षण, शिवलिंग से एक भयंकर, रौद्र रूप प्रकट हुआ जो काल भैरव कहलाया। भगवान काल भैरव का रूप अत्यंत डरावना था, उनके हाथ में त्रिशूल था और उनका क्रोध संसार को जलाने वाला था। क्रोध में काल भैरव ने यमराज को चेतावनी दी और उनके अहंकार को चूर करने के लिए उन्हें त्रिशूल से प्रहार करके बांध दिया। यमराज को बांध दिए जाने से संसार में मृत्यु का चक्र रुक गया।
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न कोई मर रहा था और न कोई नया जन्म ले रहा था जिससे सृष्टि में हाहाकार मच गया। देवताओं ने शिव जी से प्रार्थना की कि वे काल को मुक्त करें, अन्यथा संसार का संतुलन बिगड़ जाएगा। देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने शांत होकर यमराज को मुक्त कर दिया। उन्होंने यह घोषणा की कि सच्चे और निस्वार्थ भक्त को कभी भी काल से डरने की आवश्यकता नहीं है और जो उनकी शरण में है, काल भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
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