हिन्दू धर्म के मुख्य त्यौहारों में से एक है होली जो इस साल 14 मार्च, दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। जहां एक ओर होली से एक दिन पहले यानी कि छोटी होली पर होलिका दहन किया जाता है तो वहीं, दूसरी ओर होली वाले दिन धुलेंडी खेली जाती है यानी कि एक दूसरे को लोग गुलाल और रंग लगाते हैं। हर राज्य और क्षेत्र में अलग-अलग तरह से होली खेली जाती है।
इसके साथ ही, अलग-अलग समाज या प्रांतों के लोग भी भिन्न-भिन्न प्रकार से होली खेलते हैं। ठीक ऐसे ही किन्नारों की होली भी बहुत ख़ास होती है। होली के दिन किन्नर समाज में कई रोचक रीतियां निभाई जाती हैं जिनके बारे में जानना जितना दिलचस्प हो सकता है उससे कही ज्यादा अगर इन रीतियों का पालन करते हुए उन्हें देख लिया जाए तो बहुत ही शुभ माना जाता है।
किन्नरों की होली बहुत ही सुंदर और दिव्य होती है। होली का पर्व आते ही देशभर के किन्नर ब्रज की ओर चल पड़ते हैं। अभी इस समय यानी कि होली से दो-चार दिन पहले ब्रज में किन्नर समाज के दर्शन भी जरूर हो रहे होंगे।
हर जगह के किन्नर मथुरा, वृंदावन, बरसाना, गोकुल, नंदगांव आदि स्थानों पर पहुंचते हैं और फिर गोपीवेश धारण कर राधा कृष्ण के प्रेम गीत गाते हुए होली का आनंद उठाते हैं, अबीर और गुलाल से होली खेलते हुए नजर आते हैं।
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ऐसा माना जाता है कि जब श्री कृष्ण और उनके साथ के सभी ग्वाले राधा रानी और गोपियों के साथ होली खेलते थे तब एक बार किन्नर भी वहां होली खेलने पहुंचे लेकिन गोप-गोपियों की होली में किन्नरों को राधा कृष्ण का सानिध्य नहीं मिला।
जब दुखी होकर किन्नर लौटने लगे तब श्री राधा रानी और श्री कृष्ण ने अपने अंश से ही अपने प्रतिरूप को उत्पन्न किया और उन्हीं प्रतिरूपों ने किन्नरों के साथ जमकर होली खेली थी। तभी से किन्नरों का होली पर ब्रज में जमावड़ा लगता है।
किन्नरों की होली इसलिए भी ख़ास मानी जाती है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि करोड़ों की संख्या में भी राधा रानी और श्री कृष्ण ब्रज में उस स्थान पर उपस्थित होकर किन्नरों को अपना आभास करा ही देते हैं जहां किन्नर होली खेल रहे हों।
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होली के दिन किन्नर सबसे पहले राधा कृष्ण का ध्यान करते हुए गोपियों की तरह तैयार होते हैं और श्रृंगार करते हैं। फिर इसके बाद श्री राधा कृष्ण को गुलाल अर्पित करते हुए ब्रज के मंदिरों में प्रवेश करते हैं और होली के गीतों पर नृत्य करते हैं।
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