हमारे देश में कई सारे बच्चे बड़े होकर आईएएस या पीसीएस अफसर बनने का सपना देखते हैं लेकिन कुछ का ही यह सपना पूरा हो पाता है क्योंकि आईएएस अफसर बनने के लिए सिर्फ सपने देखने से कुछ नहीं होता है बल्कि उन्हें पूरा करने के लिए लगन और मेहनत की जरूरत होती है।
घर के बच्चे जब बड़े होकर अफसर बनते हैं तो घर का माहौल बदल जाता है लेकिन अगर कई लोग ऐसे भी होते हैं जिनके घर में बहुत सारी सुविधाएं नहीं होती हैं फिर भी उनके बच्चे यूपीएससी परीक्षा को क्लीयर करके दिखाते हैं और समाज की सेवा करने की शिक्षा देते हैं।
आज हम आपको आईएएस अफसर श्वेता अग्रवाल की आईएएस बनने की कहानी बताएंगे क्योंकि जब वह इस यूपीएससी परीक्षा की तैयारी कर रही थी तो उनके पिता ग्रोसरी की दुकान संभालते थे और वह यह चाहते थे कि उनकी बेटी अफसर बनें। आइए जानते हैं उनकी इंस्पिरेशनल स्टोरी के बारे में।
आपको बता दें कि श्वेता अग्रवाल ने स्कूली शिक्षा सेंट जोसेफ कॉन्वेंट बैंडल स्कूल से पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने कोलकाता स्थित सेंट जेवियर्स कॉलेज से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की थी। वह कॉलेज की पढ़ाई के साथ-साथ ही यूपीएससी की तैयारी भी करती थी।(22 साल की अनन्या सिंह ने पहले प्रयास में ही ऐसे क्लियर किया यूपीएससी एग्जाम, आप भी लें इंस्पिरेशन) अपनी मेहनत से श्वेता अग्रवाल ने दो बार यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा को क्रैक किया।
पहली बार जब श्वेता अग्रवाल ने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा दी तो उनकी रैंक 497 थी। इसके बाद साल 2015 में उनकी यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में रैंक 141 आई थी। जिसके बाद उन्हें आईएएस पद नहीं मिला था। इस कारण से उन्होंने फिर से यूपीएससी की तैयारी की और साल 2016 में उनका सपना पूरा हुआ था। इस परीक्षा में उनकी ऑल इंडिया 19वीं रैंक आई थी और श्वेता ने आखिरकार अपने मां-बाप के सपने को भी साकार कर दिया।
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एक इंटरव्यू में श्वेता ने खुद बताया था कि उनके चाचा का यह मानना है कि 'लड़कियों को पढ़-लिखकर करना क्या है, आगे वैसे भी चूल्हा-चौका ही करना है' लेकिन पहले से वह इरादे की पक्की श्वेता ने उस दिन ठाना की इन्हें कुछ करके दिखाएंगी।
कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार श्वेता का जन्म जब हुआ था तो परिवार में कोई उत्साह नहीं था क्योंकि परिवार को एक बेटे का इंतजार था।(मिलिए डॉ. रश्मि दास से जिन्होंने ऑटिज्म के बच्चों को आगे बढ़ने का दिया हौसला) श्वेता के माता-पिता ने तय कर लिया था कि वह अपनी बेटी को ही खूब पढ़ाएंगे और जब श्वेता बड़ी हुई तो उन्हें अपने माता-पिता के सपने को पूरा करने का निश्चय किया और इसके लिए खूब मेहनत की और अपने माता-पिता के सपने को पूरा किया।
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