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कैसे बना था हिन्दू पंचांग?

आज हम आपको हिन्दू पचांग कब और कैसे बना, इसे बारे में बताने जा रहे हैं।   
Editorial
Updated:- 2022-12-31, 08:00 IST

Hindu Calendar: हिन्दू धर्म में पंचांग का अत्यधिक महत्व बताया गया है। पंचांग का सरल अर्थ होता है कैलेंडर। हिन्दू कैलेंडर के आधार पर ही समय और ग्रह-नक्षत्रों की गणना संभव मानी जाती है। हिन्दू पंचांग न सिर्फ तिथि, मुहूर्त, ग्रहण आदि को दर्शाता है बल्कि इसी के आधार पर व्यक्ति की कुंडली भी बनती है।

हमारे ज्योतिष एक्सपर्ट डॉ राधाकांत वत्स ने हमें हिन्दू पचांग से जुड़ी बेहद रोचक बातें बताईं। साथ ही, हिन्दू पंचांग कब और कैसे बना इस बारे में भी बहुत कुछ बताया। हमारे एक्सपर्ट ने हम से पंचांग के पांच अंगों के बारे में दिलचस्प जानकारी साझा की जिसे आज हम आपको बताने जा रहे हैं।

हिन्दू पंचांग 5 अंगों से मिलकर बना है। इसी कारण से इसे पंचांग कहा जाता है। इन पांच अंगों में तिथि (हिंदी तिथियों का महत्व), वार, नक्षत्र, योग और करण शामिल हैं।

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तिथि: ज्योतिष में सूर्य की चाल को तिथि बताया गया है। यानी कि जब सूर्य 12 अंश (12 डिग्री) तक की दूरी पूरी कर लेता है तब एक तिथि पूर्ण हो जाती है। दिलचस्प बात यह है कि इंग्लिश डेट्स की तरह हिंदी तिथियों में मात्र 24 घंटे नहीं होते हैं। बल्कि सूर्य की गति के अनुसार कभी हिंदी तिथि 24 घंटे से कम होती है तो कभी 24 घंटे से भी ज्यादा की होती है।

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वार: यहां वार का मतलब है 'डे'। जैसे कि सोमवार, रविवार, शुक्रवार आदि। सप्तऋषियों ने 7 शुभ ग्रहों के आधार पर 7 वार बनाए और एक वार का स्वामी हर एक ग्रह को बना दिया। इसी कारण से शनिवार को शनि ग्रह, रविवार को सूर्य ग्रह, मंगलवार को मंगल ग्रह आदि की पूजा की जाती है। यहां तक कि ग्रहों के नाम पर ही वारों के नाम भी रखे गए हैं। इनमें राहु और केतु शामिल नहीं हैं।

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नक्षत्र: नक्षत्र उन तारों को कहा जाता है जो आकाश से टूटकर नहीं गिरते हैं। असल में दक्ष प्रजापति की जिन 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा (चंद्रमा के श्राप की कथा) से होने की बात कही जाती है वह 27 पुत्रियां कोई मनुष्य नहीं बल्कि नक्षत्र ही हैं। इसी कारण से हिन्दू धर्म में किसी के भी जन्म के समय सबसे पहले नक्षत्र की गणना की जाती है। नक्षत्र के आधार पर ही कुंडली में नाम का अक्षर बताया जाता है।

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योग और करण: ज्योतिष में 27 प्रकार के योग होते हैं। सूर्य और चंद्रमा के बीच की दूरी से पैदा होने वाली परिस्थितियों को योग कहा जाता है। वहीं, करण की बात करें तो करण तिथि के आधे भाग को कहते हैं। यानी कि जिस तरह एक महीना दो पक्ष में बटा होता है ठीक उसी प्रकार एक तिथि दो करणों में बटी होती है।

तो ऐसी हुई थी हिन्दू पंचांग की उत्पत्ति। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर जरूर शेयर करें और इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ। आपका इस बारे में क्या ख्याल है? हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

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