परिवार में दो-तीन बच्चे हों तो उनमें छोटी-छोटी बातों पर नोक-झोंक होना बहुत स्वाभाविक है। जब बच्चे खेलकूद रहे होते हैं तो मम्मी को अक्सर सुनने को मिल जाता है- 'ये देखो, इसमें मुझे मुंह चिढ़ाया', 'ये देखो, इसने मेरा खिलौना तोड़ दिया', कभी-कभी नौबत मारामारी तक भी पहुंच जाती है और भाई-बहन की लड़ाई में बच्चे चोटिल भी हो जाते हैं। लेकिन बच्चों का झगड़ा पेरेंट्स के लिए मुसीबत बन जाता है, क्योंकि अक्सर झगड़ा करने के बाद बच्चे उसका निपटारा करने के लिए मम्मी-पापा के पास ही पहुंचते हैं। अगर पेरेंट्स एक बच्चे के व्यवहार को सही कह दें और दूसरे को गलत, तो उसमें भी उनके लिए मुश्किल है, क्योंकि इससे एक बच्चे का दिल टूट सकता है। घर परिवार में बच्चों के बीच झगड़ा ना हो और वे शांति से रहें, इसके लिए पेरेंट्स को कुछ खास बातों का खयाल रखना चाहिए-
अक्सर बच्चों के बीच झगड़ा होने पर मां-बाप उनके साथ समान व्यवहार पर ध्यान नहीं दे पाते। कई बार किसी बच्चे को गलती के लिए ज्यादा डांट पड़ जाती है तो कई बार दूसरे बच्चे की शैतानी इग्नोर हो जाती है। इससे बच्चों के बीच असंतोष बढ़ता है और वे मम्मी-पापा से भी गुस्सा हो जाते हैं। अगर आप चाहते हैं कि बच्चे कम से कम झगड़ा करें तो उनके साथ बैलेंस तरीके से पेश आएं। किसी बच्चे को डांटने या उसकी गलती निकालने से पहले दोनों से पूरी बात पूछें। इस दौरान इस बात का भी ध्यान रखें कि बच्चे अपनी प्रॉब्लम खुद हैंडल कर लें और किसी सॉल्यूशन तक पहुंच सकें।
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बच्चे जितनी जल्दी गुस्सा होते हैं, उतनी जल्दी उनका मूड अच्छा भी हो जाता है। ऐसे में इस बात का ध्यान रखें कि बच्चों के झगड़े में आप अपना आपा मत खोएं। अगर बच्चे किसी बात पर फाइट कर रहे हैं तो उन्हें खुद उसका निपटारा करने दें। अगर बात बहुत ज्यादा ना बढ़ रही हो तो उसमें पड़ने से बचें। अगर किसी सामान्य बात पर बच्चे एक-दूसरे से बहस कर रहे हैं तो उन्हें दूसरे कमरे में जाने को कह सकती हैं। वहीं बच्चों को अलग-अलग जगह पर अपना काम करने को कहने से भी उन्हें रिलैक्स होने का वक्त मिल जाता है। इससे आप नेचुरल तरीके से बच्चों को कूल डाउन होने का वक्त दे सकती हैं और बिना उनके झगड़े में पड़े घर में शांति बनाए रख सकती हैं।
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बड़ों की तरह बच्चों के लिए व्यवहार के नियम बनाएं कि उन्हें कैसे एक-दूसरे के साथ पेश आना चाहिए। चाहें कितना भी गुस्सा क्यों ना आए, बच्चों को एक-दूसरे को कैसे रेसपेक्ट देनी है। अगर बच्चे गुस्से में एक-दूसरे से ऊंची आवाज में बात करें तो भी उन्हें एक-दूसरे पर हाथ उठाने के लिए पूरी तरह से मनाही होनी चाहिए। अगर आप पहले से ही यह नियम बनाकर रखेंगी तो बच्चे अपनी लिमिट में रहेंगे और सभी पॉजिबल सॉल्यूशन्स पर काम करेंगे।
बच्चों को बचपन से ही यह सिखाएं कि किसी परेशानी के आने पर उन्हें उससे कैसे डील करना है। आप बच्चों को एक ही सिचुएशन को अलग-अलग तरह से देखने के लिए प्रेरित कर सकते हैं और उसका हल निकालने के लिए उसे बेहतर ऑप्शन दे सकते हैं। इससे बच्चे को अपना नजरिया बदलने में मदद मिलती है और उसका गुस्सा भी पहले की तुलना में कम हो जाता है।
कई बार बच्चों के इंट्रस्ट अलग होते हैं। किसी बच्चे को डांस और आउटडोर एक्टिविटीज में मजा आता है तो वहीं दूसरे बच्चे को इंडोर गेम्स और क्रिएटिव चीजों में मन लगता है। देखने में आता है कि अगर पेरेंट्स के इंट्रस्ट किसी बच्चे से मैच करते हैं तो वे उसकी तारीफ करने लगते हैं, वहीं अगर दूसरे बच्चे की पसंद उनसे मेल नहीं खाती तो वे उसकी हॉबीज को लेकर ज्यादा चर्चा नहीं करते और उसे अपनी हॉबीज में अच्छा करने के लिए भी प्रेरित नहीं करते। ऐसा करने से बच्चों के बीच कॉम्प्लेक्स विकसित हो सकता है। जहां एक बच्चा बहुत ज्यादा मोटिवेटेड फील करेगा, वहीं दूसरा हीन भावना का शिकार हो सकता है। ऐसे में इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे के इंट्रस्ट चाहें आपसे मेल खाते हों या नहीं, आपको दोनों पर ही उचित ध्यान देने और उनकी सराहना करने की जरूरत है।
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