आम कोर्ट और लोक अदालत में क्या है फर्क, जानें किसने की थी शुरुआत

समाज में होने वाली दिक्कतों को अलग-अलग तरीके से सुलझाया जाता है। जमीन, वैवाहिक जीवन और अन्य मामलों की सुनवाई के लिए अदालत का सहारा लिया जाता है। 

 
difference between Lok Adalat and ordinary court

सुप्रीम कोर्ट की स्थापना को पूरे 75 साल होने वाले हैं। इस मौके पर शीर्ष अदालत में 5 दिन लोक अदालत का आयोजन किया जा रहा है। बता दें कि लोक अदालत दोनों पक्षों को सुनकर समझौता कराने का एक मंच है। आज तक के इतिहास में सुप्रीम कोर्ट पांच दिन की विशेष लोक अदालत का आयोजन कर रहा है। लेकिन क्या आपको लोक अदालत और आम अदालत के बीच का फर्क पता है। इस लेख में आज हम आपको बताने जा रहे हैं, कि ये एक दूसरे से कितना अलग हैं और किसने इसकी शुरुआत की थी।

क्या होता है आम कोर्ट?

What Is meaning of Lok Adalat

बता दें कि लोक अदालत और ऑर्डिनरी कोर्ट में सबसे बड़ा अंतर यह है कि आम कोर्ट में केस लड़ने के लिए शुल्क देय होता है। लेकिन लोक अदालत में फीस में छूट मिलती है। अगर आम अदालत से जुड़ा कोई भी मामला लोक अदालत में भेजा जाता है और उसका फैसला हो जाता है, तो शिकायत के दौरान जमा की गई अदालती फीस पक्षकारों को वापस कर दी जाती है।

क्या होती है लोक अदालत?

Can Lok Adalat give punishment

लोक अदालत कोर्ट में लंबे समय तक पड़े विवादों को समझौता करके निपटाने का एक तरीका है। यह एक ऐसी जगह है जहां पर अदालत में लंबित विवादों और मुकदमेबाजी से पहले के चरण के मामलों को दोनों पक्षों की रजामंदी से सुलझाया जाता है। ‘नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी एक्ट 1987’ के तहत लोक अदालत को वैधानिक दर्जा मिला था। इस नियम के अनुसार राज्य अपनी इच्छा से लोक अदालतों को आयोजित कर सकते हैं।

लोक अदालत में वैवाहिक, पारिवारिक विवाद, आपराधिक मामले, भूमि अधिग्रहण, श्रम विवाद, कामगारों के मुआवजे, बैंक वसूली से संबंधित मामले आदि की सुनवाई की जाती है। हालांकि, नॉन कंपाउंडेबल क्राइम लोक अदालत के दायरे से बाहर आते हैं।

लोक अदालत की स्थापना करने का विचार सबसे पहले भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी. एन. भगवती द्वारा दिया गया था। बता दें कि सबसे पहली लोक अदालत का आयोजन साल 1982 में गुजरात में किया गया था।

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Image Credit-Freepik

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