Marital Rape पर Delhi High Court के 2 जजों की अलग राय: एक ने कहा क्राइम तो दूसरे ने कहा सेक्स के लिए इंकार नहीं सकती पत्नी

11 मई को दिल्ली हाईकोर्ट में मैरिटल रेप से जुड़े मामलों की सुनवाई हुई, जिसमें दोनों जजों ने अलग-अलग फैसला सुनाया है।

delhi high court

मैरिटल रेप(Marital Rape) भारत में अपराध है या नहीं इस बात पर अभी तक बहस जारी है। ऐसे में बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले पर सुनवाई हुई, जहां हाईकोर्ट के 2 जजों ने इस मामले में अलग-अलग फैसला सुनाया। जहां एक न्यायाधीश ने वैवाहिक बलात्कार को दुष्कर्म और अपराध बताया, तो वहीं दूसरे जस्टिस ने विपक्ष में अपनी राय दी। ऐसे में यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में जाएगा, इतना ही नहीं दोनों जजों की पीठ ने याचिकाकर्ता को अपील करने की छूट दी है। साथ ही आगे के लिए यह मामला बड़ी बेंच को सौंपा गया है।

ऐसे में आज के आर्टिकल के माध्यम से जानते हैं मैरिटल रेप के इस फैसले से जुड़ी सभी जानकारियां-

महिला का अपने शरीर पर है पूरा अधिकार-

delhi high court split verdict on marital rape

एक महिला का जीवन उसका खुद का जीवन है। ऐसे में अपने जीवन से जुड़े फैसले वह स्वयं ले सकती है, एक महिला का अपने शरीर पर पूरा हक है। बता दें कि साल 2015 में एक गैर सरकारी संगठन आईआईटी फाउंडेशन ने मैरिटल रेप से जुड़ी याचिका दायर की थी , जिसके जरिए संगठन ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग की थी।

दुनिया के कई देश ऐसे हैं जहां मैरिटल रेप से जुड़े कानून बनाए गए हैं, लेकिन भारत में इसे अभी तक अपराध की श्रेणी में नहीं गिना जाता है। जिस कारण मौजूदा कानून के मुताबिक मैरिटल रेप अपराध नहीं है।

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सेक्स के लिए मजबूर करना पत्नी के अधिकारों का है हनन-

marital rape law

जस्टिस राजीव शकधर ने इस मामले में महिलाओं ने पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि ‘पति या अलग रह रहे पति द्वारा 18 वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी के साथ उसकी मर्जी के बिना यौन संबंध बनाना महिला के अधिकारों का हनन होगा।’

बिल्कुल अलग है जस्टिस सी.हरिशंकर राय-

delhi high court verdict

बता दें कि जहां एक जज ने मैरिटल रेप को अपराध बताया, तो वहीं जस्टिस सी. हरि शंकर इस बात के विपक्ष में नजर आए। अपने फैसले में उन्होंने कहा ‘कि ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14,19(1) और 21 का उल्लंघन नहीं करते हैं। अदालत लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित विधायिका के दृष्टिकोण के लिए अपने व्यक्तिपरक मूल्य निर्णय को प्रतिस्थापित नहीं कर सकती हैं। उन्होंने विधायिका की आवाज को लोगों की आवाज बोलते हुए कहा कि 'यदि याचिकाकर्ताओं को लगता है एक पति अपनी पत्नी की यौन शोषण के लिए मजबूर करता है तो उसे संसद का दरवाजा खटखटाना चाहिए।'

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इन याचिकाओं पर आया फैसला-

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दिल्ली हाईकोर्ट ने गैर सरकारी संगठन आईआईटी फाउंडेशन, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेंस एसोसिएशन, एक पुरुष और एक महिला द्वारा दायर जनहित याचिकाओं का निपटारा करते हुए खंडित फैसला सुनाया है। इनमें से एक याचिका ऐसी थी, जिसमें कानून को बनाए रखने की मांग की गई है।

अब आगे मैरिटल रेप के मामले में क्या फैसला सामने निकलकर आता है, यह तो सुप्रीम कोर्ट अपील करने के बाद ही पता चलेगा। आपको हमारा यह आर्टिकल अगर पसंद आया हो तो इसे लाइक और शेयर करें, साथ ही ऐसी जानकारियों के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।

Image credit- freepik

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