अंतिम संस्कार के कितने तरीके आपको पता हैं? दफना कर और जला कर, अधिकतर धर्मों में इन्हीं दो तरीकों का इस्तेमाल होता है, लेकिन आपको शायद पता ना हो कि दुनिया भर में मौत से जुड़े कई रिवाज हैं। कई बार हम किसी ऐसे रिवाज के बारे में सुन लेते हैं जो चौंका दे। मौत एक अटल सत्य है, लेकिन क्या कभी आपने सुना है कि मौत को सेलिब्रेट किया जाता है? नहीं-नहीं मैं तेरवीं में लाखों लोगों को खाना खिलाने की बात नहीं कर रही हूं। दुनिया के ऐसे कई धर्म और जातियां हैं जहां मौत को एक अलग ढंग से देखा जाता है।
आज हम आपको ऐसे ही पांच रीति-रिवाजों के बारे में बताने जा रहे हैं जो किसी अपने की मौत को एक अलग ढंग से देखते हैं।
1. लाश की आंखें बंद कर बैठाया जाता है पास
कहां- फिलीपीन्स
फिलीपींस में मौजूद लगभग 10% आबादी मौत के बाद एक अनोखे रिवाज को फॉलो करती है। जैसे यहां बेंगुएट (Benguet) प्रांत में रहने वाले लोग अपने करीबियों को विदा करने के लिए एक अनोखे रिवाज को फॉलो करते हैं। यहां पर लाश की आंखों पर पट्टी बांधी जाती है और उनके हाथ और पैर बांध दिए जाते हैं। मान्यताओं के अनुसार ऐसा आत्मा को शरीर से ज्यादा दूर जाने से रोकने के लिए किया जाता है।
अप्याओ (Apayao) जाति से ताल्लुक रखने वाले लोगों का अंतिम संस्कार भी काफी ज्यादा फेमस है। यहां पर मृत शख्स को चटाई से लपेटा जाता है। इस चटाई को आइकामेन (Ikamen) कहा जाता है। इसके बाद परिवार के पुरुष सदस्य इन्हें कंधे पर उठाते हैं और आगे बढ़ते हैं। इसके साथ ही उन्हें दफनाते समय उनके ताबूत में ऐसी कई चीजें रख दी जाती हैं जिन्हें परिवार वाले जरूरी समझें।
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2. अंतिम संस्कार के समय लगती है बोली
कहां- भारत जैन समुदाय
आपने कभी संतारा या सल्लेखना के बारे में सुना है? अगर आपने कभी जैन मुनियों का अंतिम संस्कार देखा है, तो शायद आपको पता हो। जैन मुनि तरुण सागर की शव यात्रा को लेकर ट्विटर पर बहुत विवाद हुआ था जहां उनकी अंतिम यात्रा को लोग क्रूर कह रहे थे। पर आपको बता दूं कि जैन मुनियों की विदाई का यही तरीका है। उनके शव को एक लकड़ी के तख्त के सहारे से बांधने का रिवाज है। उन्हें हमेशा समाधि की मुद्रा में ही विदा किया जाता है और इसे कुछ लोग पालकी भी कहते हैं।
जैन धर्म में सत्+लेखना=सल्लेखना का रिवाज है जहां जैन मुनि अपने शरीर को कमजोर कर इच्छा मृत्यु लेते हैं। अगर उन्हें लगा है कि उनकी मृत्यु जल्दी हो सकती है, तो वो खाना-पीना छोड़ देते हैं। इसके बारे में जैन धर्म ग्रंथ तत्वार्थ सूत्र में बताया गया है। इस अंतिम विदा के लिए अलग-अलग कार्यों की बोली लगती है। जैसे गुलाल कौन उछालेगा, कंधा कौन देगा, चिता को अग्नि कौन देगा, तख्त पर कौन बैठाएगा, रस्सी कौन खोलेगा आदि। इकट्ठा किए पैसों को सामाजिक कार्यों में लगाया जाता है।
3. पक्षियों को खिला दिया जाता है शरीर
कहां- दुनिया भर का पारसी समुदाय और तिब्बत
आपने पारसी समुदाय के टावर ऑफ साइलेंस के बारे में तो सुना ही होगा? पारसी समुदाय में किसी की मृत्यु होने पर उसकी लाश को इस टावर ऑफ साइलेंस में रख दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहां गिद्ध और कई तरह के पक्षी आकर इन्हें खा लेंगे। इस धर्म में शरीर को प्रकृति को सौंपने का रिवाज है। ऐसा ही कुछ-कुछ तिब्बती संस्कृति का हिस्सा भी है। यहां कुछ खास समुदाय के लोग गिद्धों को अपने करीबियों का शव खिलाते हैं। दरअसल, मृत्यु होने पर यहां लाश को पहाड़ों पर गिद्धों के लिए छोड़ दिया जाता है। लाश के पास गिद्ध आ सकें इसके लिए कुछ कट आदि लगाए जाते हैं। ऐसा रिवाज बौद्ध धर्म में दान का प्रतीक माना जाता है।
4. हवा में लटका दिए जाते हैं ताबूत
कहां- फिलीपीन्स
फिलीपींस में दुनिया के कुछ सबसे अनोखे रिवाज आपको मिल जाएंगे। अगर आप गूगल पर 'Hanging Coffins' सर्च करेंगे, तो फिलीपींस के इगोरोत (Igorot) लोगों का रिवाज सामने आएगा। यहां 2000 साल पुराना एक रिवाज है जहां मृत लोगों के ताबूत पहाड़ी से लटका दिए जाते हैं। ऐसा माना गया है कि यहां मौजूद ताबूत लगभग 2000 साल पुराने हैं। ऐसा अधिकतर समाज के प्रतिष्ठित लोगों के साथ किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जितनी ऊंचाई पर ताबूत होगा उतनी ऊंचाई पर ताबूत के अंदर मौजूद शख्स की ख्याती होगी।
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5. तीन दिन का रिवाज
कहां- कोरिया
आजकल कोरियन कल्चर बहुत प्रसिद्ध हो रहा है तो क्यों ना उनके रिवाज का जिक्र कर लिया जाए। कोरिया में मौत का मातम मनाने का रिवाज है। लोग रोते-बिलखते अपनों को याद करते हैं। वहां तीन दिनों तक शोक मनाया जाता है। आपने कई कोरियन ड्रामा में देखा होगा कि वहां लोग फ्यूनरल होम का इस्तेमाल करते हैं। कमरे को सजाकर मृतक की फोटो लगाई जाती है और उसकी सभी पसंदीदा चीजें टेबल पर सजाकर भोग लगाया जाता है।
वहां अंतिम संस्कार में शराब जरूर सर्व की जाती है। दफनाने की जगह वहां अधिकतर लोग जलाने की प्रथा निभाते हैं, लेकिन कब्रिस्तान में एक टॉम्बस्टोन जरूर लगाया जाता है। अस्थियों के साथ कुछ तस्वीरें और मृतक को याद करती हुई अन्य चीजें फ्यूनरल होम्स में एक ग्लास कैबिन में रखी जाती हैं। इन ग्लास कैबिन्स का किराया भी इन फ्यूनरल होम्स को देना होता है। वैसे यह तीन दिन तक चलता है, लेकिन इसका समय कम या ज्यादा हो सकता है। जैसे ईसाई धर्म के लोगों में रविवार को फ्यूनरल नहीं होता।
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