एक सवाल जो शायद आपको अंदर से झकझोर देगा उस सवाल का जवाब आप दीजिए। भारत में रास्ते पर चलती हुई लड़की कितनी सुरक्षित है? हो सकता है आर्टिकल की पहली लाइन में ये सवाल देखकर आप चौंक गए हों कि भला यहां इतने सीरियस मुद्दे पर बात क्यों हो रही है, लेकिन यकीन मानिए कुछ मामलों में बात करनी जरूरी होती है। 26 अक्टूबर को 'उड़ान' सीरियल फेम एक्ट्रेस माल्वी मल्होत्रा को उन्हीं के दोस्त ने मुंबई में चाकू मार दी। वजह ये थी कि माल्वी का फेसबुक फ्रेंड उससे शादी करना चाहता था और माल्वी ने मना कर दिया था।
बल्लभगढ़, फरीदाबाद की निकिता के साथ 27 अक्टूबर को भी कुछ ऐसा ही हुआ। निकिता को परेशान कर उसपर शादी का दबाव बनाया जा रहा था और लगातार दो सालों से निकिता परेशान थी। मना करने पर निकिता को गोली मार दी गई और उसने अस्पताल में अपनी अंतिम सांसें लीं। हाथरस वाली घटना पर पूरे देश ने आक्रोश जताया था। सभी परेशान थे और न्याय के बारे में बात कर रहे थे। उस केस का न्याय अभी नहीं हुआ, राजनीतिक मुद्दा भी गरमा गया, लेकिन नतीजा क्या हुआ?
हम सिर्फ दो दिन की घटनाओं की बात कर रहे हैं, लेकिन न जाने कितनी घटनाएं ऐसी हैं जिनके बारे में तो हमें पता भी नहीं होता है। इन सभी घटनाओं में एक बात अहम है। लड़की ने अगर मना किया तो लड़कों को काफी गुस्सा आ जाता है। इससे पहले भी ऐसी बातों के लेकर न जाने कितने लोगों ने क्या कुछ नहीं कहा है। हमेशा महिला संगठनों से लेकर राजनीति से जुड़े लोगों तक सभी इसके बारे में बात करते हैं, लेकिन फिर सब कुछ ठंडे बस्ते में चला जाता है।
कंसेंट के मायने आखिर क्यों नहीं समझता है हमारा समाज?
अगर आपको खाने में कोई चीज़ नहीं पसंद है और वो जबरन आपको खिलाई जाए तो आपको कितना बुरा लगेगा? जब हम अपनी जिंदगी की छोटी-बड़ी चीज़ों में अपनी मर्जी की बातें ही करते हैं तो फिर किसी और की मर्जी को लेकर क्यों संजीदगी नहीं दिखाई जाती? लड़की ने अगर मना किया तो उसकी जान ले ली जाती है, उसपर एसिड फेंक दिया जाता है, चाकू मार दी जाती है, बदले की भावना से उसे बदनाम किया जाता है और न जाने क्या-क्या होता रहता है, लेकिन कोई ये क्यों नहीं समझता कि ये सब कुछ गलत है और भले ही इसे लेकर कितने भी बहाने बनाए जाएं ये कभी सही हो ही नहीं सकता है।
मैरिटल रेप को लेकर लंबे समय से चर्चा होती आ रही है, लेकिन आज 2020 में भी हमारे देश में मैरिटल रेप को लेकर कोई कानून नहीं बना है। पत्नी है तो इसका मतलब ये है कि उसे पति की हर इच्छा माननी होगी। चाहें पत्नी की मर्जी हो या न हो। ये बातें घरों में दबकर रह जाती हैं और कोई कानून न होने के कारण कई बार महिलाओं को बहुत कुछ झेलना पड़ता है।
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इन आंकड़ों को देखकर शायद स्थिति की गंभीरता का अंदाज़ा हो..
NCRB (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो) की 2019 की क्राइम रिपोर्ट सितंबर 2020 में रिलीज हुई थी। इस रिपोर्ट के हिसाब से 2019 में 4 लाख 5 हज़ार 861 केस आए जहां महिलाओं के खिलाफ किसी न किसी तरह का क्राइम किया गया था। ये 2018 की तुलना में 7.3% ज्यादा है। इस रिपोर्ट के हिसाब से 2018 में 3,78,236 रजिस्टर्ड केस थे।
इनमें से अधिकतर केस महिलाओं पर पति या रिश्तेदारों द्वारा अत्याचार के थे (30.9%), इसके बाद महिलाओं के साथ यौश शोषण और उन्हें बदनाम करने के केस थे (21.8%), इसके अलावा किडनैपिंग के केस तीसरे नंबर पर थे (17.9%) और अंत में रेप केस थे (7.9%)। जाति, प्यार-मोहब्बत, शादी आदि के नाम पर न जाने कितने मामले सामने आते हैं। इस रिपोर्ट की डिटेल्स 1500 पन्नों में फैली हुई हैं और यही है हमारे समाज की सच्चाई। 1500 पन्नो में तो सिर्फ वो महिलाएं हैं जो सामने आने की हिम्मत कर पाईं, लेकिन इसके अलावा उनका क्या जो अपने साथ हुई घटनाएं बता ही नहीं पाईं? इनमें से अधिकतर मामलों में कंसेंट की बात सामने आती है और ये देखा जाता है कि महिला के साथ जबरदस्ती वो करने की कोशिश की जा रही है जो वो नहीं करना चाहती।
ये सिर्फ एक रिपोर्ट नहीं हमारे समाज का सच है जिसे हम अस्विकार करते हैं।
भारतीय कहावतें जिन्हें कर देना चाहिए बैन-
‘दुल्हन वही जो पिया मन भाए’, ‘साली आधी घरवाली’, ‘पति के दिल का रास्ता उसके पेट से होकर जाता है', ऐसी न जाने कितनी कहावतें आपने बचपन से सुनी होंगी, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन कहावतों में कहीं भी महिला की मर्जी नहीं छुपी है। 'बुरा न मानो होली है' से लेकर 'साली आधी घरवाली' तक यहां कहीं भी महिलाओं से इजाजत की बात नहीं की जा रही है। अगर पिया का मन है तो दुल्हन तो वही आएगी ऐसा क्यों? दुल्हन की मर्जी का कोई मोल तो होना चाहिए। इन कहावतों के होते हुए भला महिला सशक्तिकरण की बात सही से कैसे हो सकती है।
कहावतों को ही देख लिया जाए तो समझ आएगा कि बचपन से ही हमारे समाज में बच्चों को सिखाया जाता है कि महिलाओं को पुरुषों के अधीन होना पड़ता है। कहीं न कहीं ऐसी कहावतों ने हमारे दिमाग में घर कर लिया है। जहां हम कहावतों में भी महिलाओं के कंसेंट की बात नहीं कर रहे हैं तो फिर असल जिंदगी में जब ये सब होता है तो देखकर शॉक क्यों लगता है?
हाथरस का मामला हो, बल्लभगढ़ का मामला या फिर मुंबई में एक्ट्रेस पर चाकू से वार करने का मामला सभी में एक बात कॉमन है कि लड़की की मर्जी की कोई अहमियत नहीं थी।
क्या मेल ईगो है जिम्मेदार?
'मेल ईगो'.... इस शब्द की परिभाषा शायद अलग-अलग लोगों के लिए अलग होगी। मेल ईगो हर्ट हो जाए तो जनाब दुनिया खत्म हो जाती है (ऐसा होता कुछ नहीं है बस कई लोग ऐसा मान लेते हैं)। लड़की ने अगर ना कर दी तो उन्हें ऐसा लगता है कि रिजेक्शन हो गया और ये तो उन्हें बर्दाश्त ही नहीं होता। खुद भले ही 10 लड़कियों को रिजेक्ट कर एक पसंद करें, लेकिन अगर एक लड़की ने रिजेक्ट कर दिया तो ये बर्दाश्त नहीं होता।
बेइज्जती हुई तो लड़की पर हाथ भी उठाएंगे, उसे मारेंगे भी, उसपर एसिड भी फेंक देंगे, उसका शोषण भी करेंगे क्योंकि इससे मेल ईगो सैटिस्फाई होता है। हो सकता है कई लोग मेरे इस स्टेटमेंट से सहमत न हों, लेकिन अगर वो भी अपने आस-पास के माहौल को देखेंगे तो पाएंगे कि कुछ हद तक इन सब चीज़ों के लिए मेल ईगो भी जिम्मेदार है।
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रावण ने सीता की कंसेंट नहीं पूछी थी तो उसका हाल भी देख लीजिए-
रावण को हम हर साल दशहरे पर इसलिए जलाते हैं क्योंकि वो सीता की मर्जी के खिलाफ उसे उठाकर ले गया था। कहने को उसने अपनी बहन के अपमान का बदला लिया था। यहां भी मेल ईगो तो था, लेकिन साथ ही ये गलतफहमी भी थी कि महिला के अपमान का बदला किसी अन्य महिला को अगवा कर लिया जाता है। रावण को जब हम उसकी इस गलती के लिए जलाते हैं तो फिर क्यों नहीं समाज में इस बात का ध्यान रखते कि हमारे आस-पास के लोगों के साथ ये हो सकता है।
ना का मतलब ना है ये समझने में कितना समय लगेगा?
2016 में एक फिल्म आई थी 'पिंक' जिसमें 'नो मीन्स नो' के मतलब को बखूबी समझाया गया था। पर 2020 में भी हमें कंसेंट की बात करनी पड़ रही है। आखिर कब लोगों की ये समझ में आएगा कि महिलाओं की मर्जी भी जरूरी है। लड़की की ना में हां छुपी है ऐसे डायलॉग्स हमारी फिल्मों में हुआ करते थे, लेकिन ध्यान रखने वाली बात ये है कि लड़कियों की ना में उनकी ना भी होती है। आखिर क्यों ऐसे दीवाने ये मानने को तैयार नहीं होते कि लड़की ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया या फिर ना का मतलब ना है।
जिंदगी बहुत हसीन होती है और हमें हंसी-खुशी जिंदगी को जीना चाहिए। ये सीख शायद कहीं न कहीं किसी न किसी मोटिवेशनल कोट में हमारे सामने आई है, लेकिन जो सिर्फ हसीन हो वो जिंदगी नहीं हो सकती है। जियो और जीने दो वाला मुहावरा बहुत सही है और लोगों को इसपर अमल भी करना चाहिए। असली बदलाव घर से ही शुरू होता है। हम अपने बच्चों को कैसी सीख देते हैं ये भविष्य को बनाने में बहुत बड़ा योगदान देता है।
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