भारत में ताजमहल, लाल किला, कुतुब मीनार और इंडिया गेट जैसी कई ऐतिहासिक इमारतें हैं, जो हमारी संस्कृति और वास्तुकला की पहचान हैं। ये स्मारक सैकड़ों सालों से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इनका ऐतिहासिक और राष्ट्रीय महत्व बहुत ज्यादा है। भारत में ज्यादातर ऐतिहासिक इमारतें केंद्र सरकार के अधीन होती है और इनका रखरखाव और संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और संस्कृति मंत्रालय द्वारा किया जाता है। हालांकि, कुछ ऐतिहासिक स्मारक राज्य सरकारों, धार्मिक ट्रस्टों या निजी संस्थानों के अधीन भी आ सकते हैं।
भारत में स्थित ऐतिहासिक स्मारकों की सुरक्षा के लिए एक सख्त कानून लागू है, जिसे प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1958 (AMASR अधिनियम) कहा जाता है। AMASR अधिनियम के तहत, राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों पर केंद्र सरकार का कंट्रोल होता है। इनके संरक्षण और रखरखाव का काम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा किया जाता है। ताज महल, लाल किला जैसे राष्ट्रीय स्मारकों को न तो बेचा जा सकता है और न ही किसी निजी संस्थान को हस्तांतरित किया जा सकता है।
हाल के कुछ सालों में सरकार ने कुछ ऐतिहासिक स्मारकों के रखरखाव के लिए निजी कंपनियों की मदद ली है। एडॉप्ट ए हेरिटेज नामक योजना के तहत, कुछ कंपनियों को इन स्थलों के रखरखाव और उनमें सुविधाएं विकसित करने की अनुमति दी गई है। हालांकि, स्मारकों का स्वामित्व पूरी तरह से सरकार के पास ही रहता है।
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भारत में ऐतिहासिक स्मारकों को बेचने को लेकर सख्त कानून बनाए गए हैं और कानूनी प्रावधानों के तहत सरकार इन स्मारकों को नहीं बेच सकती है।
इस अधिनियम के तहत, किसी भी राष्ट्रीय महत्व वाले स्मारक को बेचने, स्थानांतरित करने या बदलने पर प्रतिबंध है।
बिना सरकारी अनुमति के स्मारकों में कोई व्यावसायिक गतिविधि या संरचनात्मक बदलाव नहीं किया जा सकता। सरकार के पास इन स्मारकों की सुरक्षा के लिए अगल-बगल की जमीन का अधिग्रहण करने का अधिकार होता है।
इस सिद्धांत के मुताबिक, ऐतिहासिक स्मारक और सांस्कृतिक धरोहरें जनता की संपत्ति हैं और सरकार केवल इनकी देखभाल करने वाली ट्रस्टी होती है।
सरकार को इन स्थलों को जनता के इस्तेमाल के लिए सुरक्षित रखना होता है। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में सार्वजनिक ट्रस्ट सिद्धांत को सही ठहराते हुए सुनिश्चित किया है कि ऐतिहासिक स्थलों को जनता के लिए खुला और संरक्षित रखना सरकार की जिम्मेदारी है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 49 के तहत, सरकार की यह जिम्मेदारी है कि भारत की ऐतिहासिक स्मारकों और धरोहरों को सुरक्षित रखा जाए। सरकार को सुनिश्चित करना होता है कि स्मारकों को नष्ट, खराब या बेचा न जाएं। यह प्रावधान सरकार को इन धरोहरों के संरक्षण के लिए कड़े कदम उठाने का अधिकार देता है।
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ताजमहल, लाल किला और कई अन्य स्मारक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध हैं। UNESCO के नियमों के अनुसार, बिना अंतरराष्ट्रीय अनुमति के इन स्थलों को बेचा नहीं जा सकता और न ही इनके स्वरूप में बदलाव किया जा सकता है। अगर सरकार इन स्मारकों को बेचने की कोशिश करती है, तो यह अंतरराष्ट्रीय विवाद खड़ा कर सकता है और इनकी विश्व धरोहर की मान्यता भी खतरे में पड़ सकती है।
भारत सरकार ऐतिहासिक स्मारकों को बेच नहीं सकती है, लेकिन उनके रखरखाव, संरक्षण और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए निजी कंपनियों को कुछ शर्तों के तहत लीज यानी पट्टे पर दे सकती है।
साल 2017 में सरकार ने विरासत को अपनाएं:अपनी धरोहर, अपनी पहचान योजना की शुरुआत की थी। इस योजना के तहत, सरकार आमतौर पर निजी कंपनियों को ऐतिहासिक स्थलों की देखरेख और संरक्षण का जिम्मा दे सकती है। आमतौर पर लीज की अवधि 5 से 10 साल तक की होती है। स्मारकों के संरक्षण का अधिकार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के पास होता है।
कुछ ऐतिहासिक धरोहरों को बेहतर प्रबंधन और पर्यटन विकास के लिए PPP (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल के तहत दिया जाता है। इस मॉडल के तहत, निजी कंपनियां टिकटिंग, सुरक्षा, रोशनी और आगंतुक सुविधाओं का प्रबंधन कर सकती हैं।
कुछ ऐतिहासिक महल और किले, जो ASI के अधीन नहीं आते हैं, उन्हें हेरिटेज होटलों में बदला गया है। सरकार एक तय अवधि के लिए होटल कंपनियों को पट्टे पर देती है, जिससे इमारत का रखरखाव होता है और जनता के लिए इसे खुला रखा जाता है। ऐतिहासिक स्मारकों में किसी भी तरह के बदलाव के लिए ASI और संस्कृति मंत्रालय की मंजूरी जरूरी होती है।
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