पुराने जमाने की इमारतों को देखकर लगता है कि उन्हें बनाने वाले कारीगर कितने वैज्ञानिक और रचनात्मक रहे होंगे। भारत में कई ऐतिहासिक इमारतें हैं, जिनकी कारीगरी को देखने देश-विदेश से लोग आते हैं। चाहें वो ताजमहल हो, कुतुबमीनार हो या लाल किला हो, इन ऐतिहासिक इमारतों को बने दशक बीत गए हैं, लेकिन इन पर आज भी भूकंप या किसी प्राकृतिक आपदा का कोई असर नहीं होता है। आजकल आर्किटेक्ट इन इमारतों पर रिसर्च कर रहे हैं और पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर इन ऐतिहासिक इमारतों को बनाने में कौन-सी सामग्रियों और तकनीकों का इस्तेमाल किया गया, जिसकी वजह से ये इमारतें आज भी मजबूती से खड़ी हुई हैं।
कई बार हमारे मन में सवाल आता है कि बिना सीमेंट के ताजमहल, लाल किला और कुतुबमीनार कैसे बना होगा? दरअसल, साल 1824 में इंग्लैंड के वैज्ञानिक जोसेफ एस्पिडन( Joseph Aspdin) ने पोर्टलैंड में सीमेंट का अविष्कार किया था। वहीं, भारत में सीमेंट का पहला कारखाना 1904 में गुजरात के पोरबंदर में शुरू किया गया था, लेकिन उसी साल चेन्नई में भी सीमेंट के कारखाने को स्थापित किया गया और वहां पर सीपियों पर आधारित सीमेंट बनाने की कोशिश की गई। हालांकि, यह सफल नहीं हो सका।
इसके बाद, साल 1912-13 में पोरबंदर में एक सफल सीमेंट कारखाने की स्थापना की गई। फिर, साल 1914 में मध्य प्रदेश के कटनी में सीमेंट एंड इंडस्टिूयल कंपनी ने सीमेंट का उत्पादन शुरू किया है। हालांकि सीमेंट के आविष्कार से पहले ही 1632 में ताजमहल बनना शुरू हो गया था और 1653 में बनकर तैयार भी हो गया था। वहीं, 1199 में कुतुबमीनार और 1638 में लाल किले का भी निर्माण हो चुका था। उस समय इन ऐतिहासिक इमारतों को बनाने में पत्थरों और ट्रेडिशनल सामग्रियों का इस्तेमाल किया गया था।
खासबात यह है कि राजपूत और मुगल शासक अपने महलों और किलों के निर्माण में पत्थरों का इस्तेमाल किया करते थे। लेकिन सवाल उठता है कि इन पत्थरों को जोड़ने के लिए कौन-सा मसाला मिलाया गया होगा, जो आज सीमेंट से भी ज्यादा टिकाऊ है।
पुराने जमाने में ऐतिहासिक इमारतों के निर्माण के दौरान, पत्थरों को जोड़ने के लिए एक खास तरह का मसाला तैयार किया जाता था, जिसे चूना मोर्टार कहा जाता था। इस मसाले को बनाने के लिए चूने के पाउडर, जानवरों की हड्डियों का चूरा, उड़द की दाल का पेस्ट, बेलगिरी का पानी, दही, गोंद, चिकनी मिट्टी और बताशों का इस्तेमाल किया जाता था। यह मसाला समय के साथ अपनी पकड़ को और मजबूत बनाता था।
Agraindia वेबसाइट के मुताबिक, ताजमहल के निर्माण के लिए राजस्थान के मकराना माइन्स से संगरमरमर मंगवाए गए थे।
दुनिया के 7वें अजूबे को बनाने के लिए ईटों, मीठा चूना पत्थर, खरपरेल, गोंद, लाल मिट्टी और कांच का इस्तेमाल किया गया था। वहीं, पत्थरों को जोड़ने के लिए गुड़, बताशे, बेलगिरी का पानी, उड़द की दाल, दही, जूट और कंकड़ को चूने के मोर्टार के साथ मिलाकर मसाला तैयार किया गया था। वहीं, ताजमहल के कीमती पत्थरों को Pietra Dura Technique का इस्तेमाल करके जड़ा गया था। इस ऐतिहासिक इमारत के भार को सहन करने के लिए कुओं और मेहराबों से नींव को मजबूत किया गया था।
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कुतुबमीनार का निर्माण क़ुतुब-उद-दीन ऐबक ने शुरू करवाया था और मीनार को पूरा इल्तुतमिश ने करवाया था। यह ऐतिहासिक इमारत लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से बनी हुई है। कुतुबमीनार की तीन मंज़िलें लाल बलुआ पत्थर से और आखिरी की 2 मंज़िलें संगमरमर और बलुआ पत्थर से बनी हुई हैं।
दिल्ली के लाल किले का निर्माण चूने के गारे के साथ लाल बलुआ पत्थर का इस्तेमाल करके हुआ था। इन ऐतिहासिक इमारतों पर शिल्पकारों ने हाथों से नक्काशी की थी, जो आज कारीगरी की मिसाल हैं।
जहां आज ऊंची इमारतों के निर्माण के लिए सीमेंट और आधुनिक चीजों का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन भूंकप या कोई प्राकृतिक आपदा आते ही यह इमारतें मलबे में तब्दील हो जाती हैं। अगर हम आज भी प्राचीन कारीगरों की तरह नैचुरल संसाधनों का इस्तेमाल करने लगे, तो शायद हम टिकाऊ और मजबूत इमारतों का निर्माण कर पाएं।
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