हिंदुओं में सभी व्रत और त्योहारों का अलग महत्व है और प्रत्येक व्रत में अलग ढंग से पूजन करने का विधान है। इन्हीं व्रत त्योहारों में से एक है प्रदोष का व्रत। यह व्रत हर महीने के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को पड़ता है और इसमें विधि विधान के साथ शिव पूजन करने का विधान है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन पूरी श्रद्धा भाव से शिव जी की पूजा अर्चना करता है और भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु व्रत उपवास करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उसे समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
प्रत्येक महीने में दो प्रदोष व्रत होते हैं और पूरे साल में 24 प्रदोष व्रत पड़ते हैं। इसके अलावा यदि किसी साल मलमास होता है तब प्रदोष व्रत की संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। हर महीने में पड़ने वाले प्रदोष व्रत का अपना अलग महत्व है। आइए आइए जाने माने ज्योतिर्विद पं रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें चैत्र के महीने यानी कि अप्रैल के महीने में कब पड़ेगा प्रदोष का व्रत और इसका क्या महत्व है।
अप्रैल प्रदोष व्रत की तिथि
- हिंदू कैलेंडर के अनुसार, इस साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि आरंभ -14 अप्रैल, गुरुवार को प्रातः:04 बजकर 49 मिनट पर
- चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि समापन -15 अप्रैल, शुक्रवार प्रात: 03 बजकर 55 मिनट तक रहेगी।
- दोनों दिनों में से प्रदोष काल 14 अप्रैल को प्राप्त हो रहा है इसलिए इसी दिन प्रदोष का व्रत रखा जाएगा।
प्रदोष व्रत पूजा का मुहूर्त
प्रदोष व्रत की पूजा हमेशा प्रदोष काल में की जाती है। प्रदोष काल शिव पूजन के लिए वह समय होता है जो संध्या काल से दो घंटे पहले का समय होता है। इस समय में किया गया शिव पूजन भगवान शिव को विशेष रूप से स्वीकार्य होता है। 14 अप्रैल को प्रदोष व्रत रखने वालों को शिव जी की पूजा के लिए दो घंटे से अधिक का शुभ समय प्राप्त होगा और इस दिन प्रदोष पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 06 बजकर 46 मिनट से रात 09 बजे तक रहेगा। यदि आप इस मुहूर्त में शिव जी का पूजन माता पार्वती समेत करेंगी तो यह विशेष रूप से फलदायी होगा और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होगी।
प्रदोष व्रत का महत्व
हिन्दुओं में प्रदोष व्रत मुख्य रूप से भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु रखा जाता है। इस व्रत को रखने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और ये व्रत समस्त पापों से मुक्ति पाने का मार्ग प्रशस्त करता है। ज्योतिष के अनुसार इस व्रत को करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है और संतान का स्वास्थ्य ठीक बना रहता है। प्रदोष का व्रत करने से मनुष्य को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा (भगवान शिव को भूलकर भी न चढ़ाएं ये चीज़ें) दृष्टि प्राप्त होती है और यह हजारों पुण्यों के बराबर का फल देता है। ऐसी मान्यता है कि प्रदोष व्रत में श्रद्धा पूर्वक भगवान शिव और माता पार्वती समेत पूजन करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। ऐसी मान्यता है कि जो स्त्रियां संतान प्राप्ति की इच्छा रखती हैं उनके लिए भी यह व्रत विशेष रूप से फलदायी होता है। उन्हें पूरी श्रद्धा भाव से ये व्रत करना चाहिए।
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प्रदोष व्रत पूजन विधि
- प्रदोष व्रत के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर साफ़ वस्त्रों को धारण करें।
- घर के मंदिर की अच्छी तरह से सफाई करें और सभी भगवानों को स्नान कराएं।
- मुख्य रूप से भगवान् शिव और माता पार्वती को स्नान करें और शिवलिंग पर चंदन लगाएं।
- शिव चालीसा का पाठ करें और शिव जी का परिवार समेत पूजन करें।
- प्रदोष काल में दोबारा स्नान करके साफ़ वस्त्र धारण करें और शिवलिंग पर चंदन लगाने के साथ धूप प्रज्ज्वलित करें।
- प्रदोष काल की कथा पढ़ें और शिव जी का माता पार्वती समेत पूजन करें।
- पूजा के समय भगवान शिव से अपनी मनोकामना पूर्ति की पार्थना करें और पूजा में हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा प्रार्थना करें। .
- शिव जी को खीर का भोग लगाएं और स्वयं भी भोग ग्रहण करें।
- यदि आप प्रदोष व्रत करते हैं तो आप दिनभर फलाहार का पालन करें।
- इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इस प्रकार प्रदोष का व्रत विशेष रूप से फलदायी होता है और इस व्रत को करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
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