हिंदू धर्म में सभी व्रत एवं त्योहारों का विशेष महत्व है। हर एक व्रत में अलग तरीकों से पूजन किया जाता है और सभी ईश्वरों का भिन्न -भिन्न तरीकों से आह्वान किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि किसी भी तिथि में ईश्वर का पूजन फलदायी होता है और मनोकामनाओं की पूर्ति भी करता है। ऐसे ही शुभ महीनों में से एक है चैत्र का पावन महीना। इस पूरे महीने में विभिन्न व्रत और त्योहार होते हैं जिनका अलग महत्व है। चैत्र के महीने में होने वाले त्योहारों में से एक प्रमुख त्यौहार है रामनवमी।
इस दिन को भगवान श्री राम के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है और पूरे विधि विधान के साथ श्री राम की पूजा की जाती है। यह पर्व चैत्र नवरात्र के तुरंत बाद यानी कि नवमी तिथि को होता है और इसका हिंदू धर्म में विशेष महत्व बताया गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, राम नवमी के दिन ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का जन्म राजा दशरथ के घर पर हुआ था और तभी ये ये पर्व राम जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। आइए जाने माने ज्योतिर्विद पं रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें जानें इस साल कब मनाया जाएगा रामनवमी का त्योहार और इसका क्या महत्व है।
हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तिथि को रामनवमी मनाई जाती है। राम नवमी हमेशा चैत्र नवरात्रि (जानें चैत्र नवरात्रि की तिथि) के आठ दिनों के बाद नवमी तिथि को होता है। इस साल चैत्र नवरात्रि 02 अप्रैल से शुरू होकर 9 अप्रैल तक चलेगी और रामनवमी की तिथि 10 अप्रैल, रविवार के दिन पड़ेगी।
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राम नवमी के दिन को मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन श्री राम ने पृथ्वी पर अवतरण लिया था। भगवान श्री राम ने अपना चौदह वर्ष का वनवास किया और इस दौरान उन्होंने रावण का वध भी किया। रावण का वध करने के कारण ही वो दुनिया में और ज्यादा पूजनीय हुए, क्योंकि उन्होंने बुराई पर अच्छाई की जीत का सन्देश दिया। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति प्रभु श्री रामकी पूजा और व्रत करता है उसे समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। किसी भी समस्या से जूझ रहे भक्तों को प्रभु श्री राम की पूजा का फल अवश्य मिलता है और उनकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति भी होती है।
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प्राचीन समय की बात है अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानियां थीं। लेकिन उनमें से किसी भी रानी के कोई संतान नहीं थी। एक बार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा अपने कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ से बताई। महर्षि वशिष्ठ ने विचार कर ऋषि श्रृंगी को अपने दरबार में आमंत्रित किया। ऋषि श्रृंगी ने राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने की विधि बताई। ऋषि श्रृंगी के कथनानुसार राजा दशरथ ने यज्ञ का आयोजन किया और जब यज्ञ में पूर्णाहुति दी जा रही थी उस समय अग्नि कुण्ड से अग्नि देव मनुष्य के रूप में प्रकट हुए तथा अग्नि देव ने राजा दशरथ को खीर से भरा एक कटोरा प्रदान किया। उसके बाद ऋषि श्रृंगी ने बताया हे राजन, अग्नि देव द्वारा प्रदान की गयी खीर को अपनी सभी रानियों को प्रसाद रूप में देने से उन्हें जल्द ही संतान की प्राप्ति होगी। राजा दशरथ ने वह खीर अपनी तीनो रानियों कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा को खिला दी। उस खीर को ग्रहण करने के लगभग 9 महीने के बाद माता कौशल्या के गर्भ से प्रभु श्री राम का जन्म हुआ। उस दिन चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी इसलिए तभी ये इस तिथि को रामनवमी के रूप में मनाया जाने लगा।
इस प्रकार रामनवमी पूरे देश में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है और इस दिन प्रभु श्री राम की पूजा का विधान है। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व ज्योतिष से जुड़े इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
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