क्या आप जानते हैं भगवान राम की मृत्यु से जुड़े ये रोचक तथ्य, जानें क्या है पूरी कहानी

अगर आप प्रभु श्री राम के भक्त हैं और इस बात से अंजान हैं कि उनकी मृत्यु कैसे हुई थी, तो इस लेख में जानें श्री राम की मृत्यु से जुड़े कुछ तथ्यों के बारे में। 

 
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भगवान श्री राम को भला कौन नहीं जानता है। जब भी बात आती है रामायण की, प्रभु श्रीराम की छवि मानस पटल पर अंकित हो जाती है। श्री राम को विष्णु जी के सातवें अवतार के रूप में पूजा जाता है और पुराणों व शास्त्रों में भी उनकी महिमा का बखान होता है। त्रेता युग के पालनहारे प्रभु श्री राम को भक्त आज भी पूरे श्रद्धा भाव से पूजते हैं और उनकी भक्ति में सराबोर हो जाते हैं। प्रभु श्री राम के जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी अनसुनी कहानियां हैं जो आज भी सोचने पर मजबूर कर देती हैं।

ऐसी ही अनसुनी कहानी में से एक है श्री राम की मृत्यु से जुड़ी रोचक कथा। आप सभी के मन मस्तिष्क में भी कई बार ये प्रश्न जरूर आया होगा कि श्री राम जब भगवान् का ही अवतार थे तो उनकी मृत्यु कैसे हुई? इस बारे में हमने नई दिल्ली के जाने माने पंडित, एस्ट्रोलॉजी, कर्मकांड,पितृदोष और वास्तु विशेषज्ञ प्रशांत मिश्रा जी से बात की। उन्होंने हमें कुछ रोचक तथ्यों से अवगत कराया। आइए जानें प्रभु श्री राम की मृत्यु से जुड़ी कथाओं के बारे में।

प्रभु श्री राम का जन्म

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रामायण और अन्य पुराणों के मुताबिक, प्रभु श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व हुआ था। प्रभु श्रीराम अयोध्या के राजा दशरथ के बड़े बेटे थे। उन्हें भगवान विष्णु का अवतार कहा जाता है। यही नहीं उनके विशेष कृत्यों की वजह से उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से भी जाना जाता है। प्रभु श्रीराम से अयोध्यावासी काफी प्यार करते थे और उनके वनवास जाते ही वो अत्यंत दुखी हो गए।

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कैसे हुई प्रभु श्री राम की मृत्यु

पहली कथा

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प्रभु श्रीराम की मृत्य से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार सीता ने अपने दोनों बच्चों लव और कुश को प्रभु श्रीराम को सौंपा और धरती माता के साथ जमीन में समा गईं। सीता के जाने से प्रभु श्रीराम इतने दुखी हो गए किउन्होंने यमराज से सहमति लेकर सरयू नदी में जल समाधी ले ली।

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दूसरी कथा

भगवान श्री राम ने धरती पर 1000 वर्षों से भी ज्यादा समय तक शासन किया। अपने इस लंबे शासकाल में भगवान राम ने कई ऐसे काम किए जिन्होंने हिंदू धर्म को एक गौरवमयी इतिहास प्रदान किया। पंडित प्रशांत मिश्रा जी बताते हैं कि पद्मपुराण के अनुसार भगवान राम जब अपना अवतारकाल समाप्त करके एक ऋषि का रूप धारण करके आये तब काल यानी यमराज भी एक ऋषि के रूप में आए और उन्होंने राम जी से बात करने का आग्रह किया। तब श्री राम ने काल से कहा किकोई हमारे बीच न आए।

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उस समय प्रभु श्री राम ने भ्राता लक्ष्मण से कहा कि वो एकांत चाहते हैं और काल से वार्तालाप करना चाहते हैं, इसलिए आप दरवाज़े पर खड़े हो जाएं जिससे कोई भीतर प्रवेश न कर सके। इतनी देर में ऋषि दुर्वाशा वहां आ गए और राम जी से मिलने का आग्रह करने लगे। लक्ष्मण जी के मना करने पर भी ऋषि नहीं माने और क्रोधित होकर बात करने लगे। लक्ष्मण जी दुर्वाशा के क्रोध से बचने के लिए कमरे में प्रवेश कर गए जहां श्री राम वार्तालाप कर रहे थे। ये देखकर श्री राम भी लक्ष्मण पर कुपित हुए और उन्हें मृत्यु दंड न देकर देश निकाला दे दिया। लक्ष्मण जी के लिए वह भी मृत्यु सामान ही था,इसलिए वो सरयू नदी में समा गए और शेषनाग का रूप धारण कर लिया। भाई की जलसमाधि से आहत होकर श्रीराम ने भी जल समाधि का निर्णय लिया। वो सरयू नदी के अंदर गए और भगवान विष्णु का अवतार ले लिया। इस तरह श्रीराम ने मानव शरीर त्याग दिया और बैकुंठ धाम चले गए।

वास्तव में ये कथा भगवान श्री राम के जीवन से जुड़ी सबसे रोचक कथाओं में से एक है और ये प्रभु श्री राम के मनुष्य रूप को त्यागकर वापस विष्णु रूप में आने के बारे में बताती है। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।

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Image Credit: freepik and pintrest

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