बिहार और उत्तर प्रदेश में ठेकुआ काफी मशहूर है। हर गली-मोहल्लों में इसे छठ के मौके पर बनाया जाता है, लेकिन ठेकुआ प्रेमी इसे कभी भी बनाकर खा लेते हैं। वहीं, कई लोग प्रसाद के रूप में ठेकुआ को शामिल किया जाता है।
कई लोग मैदा का ठेकुआ बनाते हैं, तो कई सूजी के साथ मैदा का इस्तेमाल करते हैं। पर रेसिपी कुछ भी हो इसका स्वाद ऐसा की बार-बार खाने की चाहत होती है। छठ पूजा का चलन बिना ठेकुआ के अधूरा माना जाता है, जिसका अर्थ होता है कि छठ पूजा के दौरान भक्त या व्रती बिना किसी मदद और खाने-पीने के अपना व्रत को पूरा करते हैं।
पर कभी आपके मन में यह सवाल आया है कि ठेकुआ पहली बार कब और किसे बनाया होगा, जिसे बनाने का चलन शुरू हो गया? अगर हां, तो इस लेख में आपके सारे सवालों के जवाब मिलेंगे। आज हम अपनी सीरीज 'किस्से पकवानों के' में ठेकुआ के इतिहास पर बात करेंगे। तो देर किस बात की आइए जानते हैं-
ठेकुआ एक प्रकार की पारंपरिक स्वीट है, जिसे छठ पूजा के दौरान खाया जाता है। यह एक प्रकार का स्वादिष्ट प्रसाद है और छठी मैया को अर्पित किया जाता है। ठेकुआ बनाने में चावल, गेहूं, मैदा, शक्कर, और तेल का उपयोग होता है।
ठेकुआ कई तरह के होते हैं और यह आपके स्थानीय संस्कृति और परंपरा पर निर्भर करता है जैसे- गुड़ ठेकुआ, चावल ठेकुआ, सूजी ठेकुआ, आटे का ठेकुआ, मैदे का ठेकुआ आदि।
ठेकुआ का इतिहास बहुत पुराना है और यह छठ पूजा की पारंपरिक प्रसाद है। इसकी मान्यता है कि छठी मैया को यह भोजन प्रस्तुत करने से व्रती के परिवार में सुख और समृद्धि की वृद्धि होती है। छठ पूजा और ठेकुआ की परंपरा बिहार राज्य के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल में भी महत्वपूर्ण है।
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ठेकुआ को छठ पूजा के दौरान पूजा आरती के समय प्रसाद के रूप में बांटा भी जाता है। बता दें कि ठेकुआ को खजुरिया या थिकरी भी कहा जाता है। हालांकि, ठेकुआ के बारे में किसी व्यक्ति या संगठन के विशिष्ट निर्माता के बारे में निश्चित रूप से जानकारी उपलब्ध नहीं है। पर कई इतिहासकारों का मानना है कि करीब 3700 साल पहले यानी ईसापूर्व 1500-1000 ऋग्वैदिक काल में ठेकुआ जैसे मिष्ठान 'अपूप' का उल्लेख मिलता है।
ठेकुआ नाम का उगम छठ पूजा की पारंपरिकता से जुड़ा हुआ है। ठेकुआ का शब्द बिहारी भाषा का है और इसका अर्थ होता है 'उठाना' या 'स्थापित करना'। छठ पूजा में छठी मैया (सूर्य देवी) की पूजा के दौरान व्रती भक्त इस भोजन को उठाते हैं और उसे व्रत के बाद पूजा आरती के समय खाते हैं। ठेकुआ का शब्द बिहारी भाषा का है और इसका अर्थ होता है 'उठाना' या 'स्थापित करना'।
छठ पूजा में छठी मैया (सूर्य देवी) की पूजा के दौरान व्रती भक्त इस भोजन को उठाते हैं और उसे व्रत के बाद पूजा आरती के समय खाते हैं। ठेकुआ का नाम छठ पूजा की विशेषता को दर्शाता है और इसे इस पूजा के परंपरागत भोजन के रूप में पहचाना जाता है।
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