आजदी के इतने सालों बाद भी भारतियों के दिलों में उन सेनानियों के लिए इज्जत कम नहीं हुई है जिन्होंने भारत को आजाद करवाने में अहम भूमिका निभाई थी। आज भी स्वतंत्रता दिवस पर लोग एकत्रित हो कर इस आजाद जीवन के लिए उन स्वतंत्रता सेनानियों का शुक्रिया अदा करते हैं।
भारत की आजादी के लिए अपने क्षेत्रों, मतभेदों को भुला कर सभी वर्ग चाहे वह अमीर हों या गरीब, महिलाएं हों या पुरुष, बच्चे हों या फिर बुज़ुर्ग सभी एकजुट हुए और अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। उन साहसी लोगों या स्वतंत्रता सेनानियों से जुड़ी सम्मान, साहस और देशभक्ति की कहानियां आज भी हमारी आंखों को नम कर देती हैं। इतिहास गवाह है कि महिलाओं ने समय-समय पर अपनी बहादुरी और साहस का प्रयोग कर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चली हैं। आइए नजर डालते हैं उन महिला स्वतंत्रता सेनानियों पर जिन्होंने भारत की आजदी के लिए पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की जंग लड़ी।
सरोजिनी नायडू कई महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं। जब कई राज्यों में महिलाएं उत्पीड़न का शिकार हो रही थीं, उस समय सरोजिनी नायडू उन चुनिंदा महिलाओं में से एक थीं जिन्होंने नेतृत्व को अपने हाथों में लिया। नायडू INC की पहली प्रेज़िडेंट बनीं और उत्तर प्रदेश की गवर्नर के पद पर रहीं। उनकी कविताएं आज भी हमें प्रेरणा देती हैं।
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'अगर आप किसी लड़के को शिक्षित करते हैं तो आप अकेले एक शख्स को शिक्षित कर रहे हैं, लेकिन अगर आप एक लड़की को शिक्षा देते हैं तो पूरे परिवार को शिक्षित करते हैं।' यह वो विचार हैं जिन्हें सावित्रिभाई फुले विश्वास करती थीं। महिला उत्पीड़न और लड़कियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित रखने के चलन को देखते हुए फुले ने विरोध और अपमानित होने के बावजूद लड़कियों को आधारभूत शिक्षा देने का बीड़ा उठाया।
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अपने भाई जवाहरलाल नेहरू की ही तरह विजयलक्ष्मी भी देश के लिए काफी भावुक थीं। बरसों तक देश की सेवा करने के बाद वे संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंब्ली की पहली महिला प्रेज़िडेंट बनीं। लेखक, डिप्लोमैट, राजनेता के रूप में उनका हर काम युवा महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है।
आपने शायद ही किसी ऐसे भारतीय के बारे में सुना होगा जो झांसी की रानी के बहादुरी भरे कारनामे सुनते-सुनते न बड़ा हुआ हो। झांसी की रानी सन 1857 के विद्रोह में शामिल रहने वाली प्रमुख शख्सियत थीं। उनकी बहादुरी के चलते आज उन्हें वीरता का प्रतीक माना जाता है और उनके नाम का इस्तेमाल बहादुरी के पर्यायवाची की तरह किया जाता है।
बेगम हजरत महल 1857 के विद्रोह के सबसे प्रतिष्ठित चेहरों में से एक हैं। वे पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं जिन्होंने अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ ग्रामीणों को एकजुट कर आवाज़ उठाई। उन्होंने लखनऊ पर कब्ज़ा किया और अपने बेटे को अवध का राजा घोषित किया। हालांकि, जब लखनऊ पर दोबारा अंग्रेजों ने कब्ज़ा किया तो उन्हें जबरन नेपाल भेज दिया गया।
कांग्रेस पार्टी की सक्रिय सदस्य रह चुकीं अरुणा आसफ अली न सिर्फ देख की स्वतंत्रता के लिए लड़ीं बल्कि तिहार जेल के राजनैतिक कैदियों के अधिकारों की लड़ाई भी उन्होंने ही लड़ी। कैदियों के हित के लिए उन्होंने भूख हड़ताल की, नतीजा भी सकारात्मक रहा लेकिन उन्हें कालकोठरी की सजा सुनाई गई।
सुचेता कृपलानि में देशभक्ति का इतना जज़्बा था कि वे किसी भारतीय राज्य की मुख्यमंत्री बनने वाली पहली महिला बनीं। भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल रहने वाली सुचेता गांधीजी के करीबियों में से एक थीं। उस दौरान वे कई भारतीय महिलाओं के लिए रोल मॉडल रहीं और स्वतंत्रता संग्राह में हिस्सा लेने के लिए उन्हें प्रेरित करने में सफल रहीं।
इसमें कोई शक नहीं कि भीकाजी कामा भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में सबसे बहादुर महिला थीं। वह भारतीय होम रूल सोसायटी स्थापित करने वाले प्रवर्तकों में से एक थीं। उन्होंने कई क्रांतिकारी साहित्य लिखे। यहां तक कि मिस्त्र में लिंग समानता पर उन्होंने कई भाषण भी दिए।
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