पद्मश्री विजेता दीपा मलिक और करगिल में जंग लड़ चुके उनके पति कर्नल विक्रम सिंह के घर में जब देविका ने जन्म लिया तभी से उन्हें जिंदगी के लिए जंग लड़नी पड़ी। पैदा होते ही वह Neonatal Jaundice की शिकार हो गई थीं। देविका प्रीमेच्योर बेबी थीं और उस रात जिन 7 बच्चों को क्रिटिकल केयर यूनिट में रखा गया था, उनमें से वह भी एक थी। इनमें से जीवित बचने वाले 2 बच्चों में से एक वह भी थीं। उनकी परेशानियां आगे भी जारी रहीं। जब उन्होंने चलने की शुरुआत भर की थी, तभी उन्हें एक बिजी सड़क पर मोटरसाइकिल वाले ने टक्कर मार दी थी। यह टक्कर इतनी भयानक थी कि इसकी वजह से उनके दिमाग के दाएं हिस्से में भयानक चोट पहुंची। इसकी वजह से उनका बायां शरीर पैरालाइज हो गया। इससे उबरने के लिए उन्हें एक्सटेंसिव ऑक्यूपेशनल और फिजियोथैरेपी दी गई। हालांकि इससे उन्हें बॉडी फंक्शन्स को 60 फीसदी तक नॉर्मल बनाने में मदद मिली, लेकिन उनकी मुश्किलें भी बदस्तूर जारी रहीं। अपनी इस डिसेबिलिटी के बावजूद देविका मलिक ने एक अंतरराष्ट्रीय पैरा एथलीट बनने में सफलता हासिल की। देविका मलिक ने HerZindagi से एक्सक्लूसिव बातचीत में अपने इंस्पिरेशनल सफर के बारे में बताया।
5 सालों में उन्होंने 8 राष्ट्रीय और तीन अंतरराष्ट्रीय पैरा एथलीट मेडल जीते। सिर्फ यही नहीं, देविका मलिक ने दिव्यांगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए लगातार सराहनीय प्रयास भी किए। लेकिन इसकी शुरुआत हुई उनकी बेहतरीन पेरेंटिंग से। इस बारे में देविका ने बताया, 'बचपन में मुझे डिसेबिलिटी थी, इसके बावजूद पेरेंट्स ने मुझे आगे बढ़ने का हौसला दिया। हाथ और पैर में प्रॉब्लम होने के बावजूद उन्होंने मुझे आउटडोर स्पोर्ट्स में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। 7 साल की उम्र से मेरे पेरेंट्स ने मेरी पब्लिक स्पीकिंग की शुरुआत कराई। मुझे स्पीच देने के लिए भेजा जाता था, ताकि मेरी सेल्फ एस्टीम में प्रॉब्लम ना आए और मैं भी बाकी बच्चों के साथ कॉन्फिडेंट महसूस करूं। इससे बचपन में मैं काफी एक्टिव रही। मैं स्कूल के नाटकों में हिस्सा लेती थी। मां ने मुझे खेलों में हिस्सा लेने के लिए भी इंस्पायर किया। उन्हें पता था कि मैं लास्ट रहूंगी लेकिन फिर भी वे मेरा हौसला बढ़ाते थे। जहां बाकी बच्चे खेलकूद में बिजी रहते थे, मैं अपना बाकी का वक्त फिजियोथेरेपी और एक्सरसाइज में देती थी।'
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साल 2014 में देविका ने Wheeling Happiness Foundation की स्थापना की। यह संस्था दिव्यांगों को खेलकूद से जुड़े साजो-सामान मुहैया कराने में मदद करती है और उन्हें इमोशनल और फाइनेंशियल सपोर्ट भी देती है। यह संस्था रोटरी क्लब, लायंस क्लब, स्माइल ट्रेन और शाहरुख खान के Meer Foundation के सपोर्ट से कई लोगों को मदद पहुंचा चुकी है। इस बारे में देविका ने बताया, 'मेरी मां दीपा मलिक को 20 साल का अनुभव है। उन्हीं से मैंने जाना कि भारत में दिव्यांग होने की क्या चुनौतियां हैं। चूंकि मेरे पापा का बैकग्राउंड आर्मी का है और हमारे पास संसाधन भी थे, इसीलिए मुझे बेहतर परवरिश मिली। लेकिन गांव की महिलाओं के पास इस तरह के संसाधन नहीं होते। तभी मेरे मन में विचार आया कि इस तरह की मुश्किल से गुजरने वालों की मदद करनी चाहिए।'
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देविका मलिक के लिए एनजीओ बनाना एक नई शुरुआत थी, लेकिन इससे पहले उन्होंने कॉरपोरेट कंसल्टिंग फर्म में भी काम किया था। कैसे हुई एनजीओ की शुरुआत, इस बारे में देविका ने बताया, 'उन दिनों मैं एथलीट के तौर पर कंपीट कर रही थी। धीरे-धीरे मुझे वर्क एक्सपीरियंस हासिल हो गया। मैंने प्रजेंटेशन बनाना भी सीखा। चूंकि मेरी मम्मी ने बहुत रिकॉर्ड बनाए हैं, इसीलिए उन्हें रोजाना 5-10 कॉल आते थे। लोग उनसे पूछते थे कि वह कैसे कामयाब हुईं और उनकी तरह दिव्यांग होने पर कैसे चैलेंजेस का सामना किया जाए। मां के साथ मैं भी लोगों की काउंसिलिंग करती थी। मैंने साइकोलॉजी पढ़ी है और इसीलिए मैं उन्हें पॉजिटिव होने के लिए इंस्पायर करती थी। वहीं से मुझे खयाल आया कि दिव्यांगों के जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में प्रयास करने की जरूरत है। तभी मैंने एनजीओ Wheeling Happiness की शुरुआत की। मैंने ये भी सोचा कि एनजीओ की मदद से ज्यादा जरूरतमंदों को सपोर्ट किया जा सकेगा। मेरी मां ने मुझे सपोर्ट किया। उन्होंने मेरे साथ काम की शुरुआत की'
देविका मलिक ने अपने एनजीओ के जरिए बहुत से जरूरतमंदों की मदद की है। देविका बताती हैं, 'अभी हाल ही में हमने एक बच्ची की मदद की, जो यूपी के एक छोटे से गांव से है। एक एक्सिडेंट में उसके पिता की मौत हो गई और वह घायल हो गई और एक पैर पूरी तरह से बेकार हो गया। यह बच्ची 5वीं तक मां के साथ उसके स्कूल जाती थी, लेकिन इसके बाद उसकी पढ़ाई का कोई आसरा नहीं रहा। उसने हमने मदद मांगी। इस बच्ची को हमने ओपन स्कूलिंग के जरिए 10 करवाई और आगे की पढ़ाई का भी इंतजाम कराया। इसके बाद इस बच्ची के लिए व्हील चेयर की सुविधा के साथ इसे लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में दाखिला दिलाया। अब वह पूरे आत्मविश्वास के साथ जर्नलिस्म में ग्रेजुएशन पढ़ाई कर रही है। इसी तरह पिछले साल हमने पिछले साल हमने विदिशा बालियान को ट्रेनिंग दी थी। उसने मुझसे कहा था कि दीदी आप जैसे माइक के सामने बोलती हैं, मैं भी बोलना चाहती हूं। उसकी 5 महीने तैयारी कराई गई। उसके लिए पैजेंट ट्रेनर, डिजाइनर सबकी व्यवस्था की गई। इसी ट्रेनिंग का नतीजा था कि विदिशा ने मिस डेफ वर्ल्ड 2019 में पार्टिसिपेट किया और जीता भी। अब विदिशा टेड टॉक्स में जाती है और जोश टॉक में इंस्पिरेशनल स्पीच देती हैं।'
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देविका मलिक ने कॉमनवेल्थ और यूनाइटेड नेशन्स जैसे बड़े प्लेटफार्म्स पर भारत का प्रतिनिधित्व भी किया है। अपने अथक प्रयासों के लिए उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से सम्मानित किया गया है। सिर्फ यही नहीं, ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की तरफ से बकिंघम पैलेस में उन्हें यंग लीडर अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। देविका Commonwealth Heads of Government Meeting में ब्रिटिश रॉयल फैमिली और 53 कॉमनवेल्थ देशों के प्रमुखों को संबोधित कर चुकी हैं। इस समारोह में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे। एक एंटरप्रेन्योर के तौर पर देविका के प्रयासों की नीति आयोग ने भी साल 2018 में सराहना की थी। देविका मलिक बताती हैं कि आज तक उन्होंने जो कुछ भी हासिल किया है, वह उनकी बेहतरीन परवरिश का नतीजा है। वह गर्व से कहती हैं, 'मां ने मुझे हमेशा सिखाया है कि अपने सामने आने वाली चुनौतियों का सामना कैसे किया जाए। मेरा मानना है कि मुश्किल स्थितियों का सामना करना बहुत हद तक इंसान के नजरिए पर निर्भर करता है।'
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