हमारे देश में पुरुषवादी समाज होने के चलते बहुत से काम सिर्फ पुरुषों के जिम्मे ही रहे हैं। विवाह संपन्न कराना भी इन्हीं में से एक है। इसीलिए आमतौर पर यही सुना जाता है की शादी के रीति-रिवाज पुजारियों द्वारा ही संपन्न कराए जाते हैं। इसी सोच में बदलाव लाने की ठानी सुषमा हरेली ने, जो पेशे से वकील हैं। सुषमा ने इस बात पर जोर दिया की वह अपनी शादी महिला पुजारी से संपन्न कराएंगी। साथ ही शादी में म्यूजिक भी महिला म्यूजिशियंस की तरफ से हो।
शादी में महिला पुजारी और महिला म्यूजीशियन्स की व्यवस्था करना परिवार वालों को काफी मुश्किल था। खुद सुषमा और उनके पति, दोनों ने मिलकर इस बारे में रिसर्च की और इसके बाद उन्होंने मैसूर मूल की वैदिक स्कॉलर ब्रह्मरंबा महेश्वरी से संपर्क साधा, जिन्होंने इनकी शादी कराने के लिए राजी हो गईं। लेकिन परिवार वाले महिलाओं वाला म्यूजिक बैंड नहीं खोज सके, जो पारंपरिक nagaswaram और मृदंगम बजा सकते हों।
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यह शादी चेन्नई के दक्षिण चित्रा में संपन्न हुई। दुल्हन सुषमा हरिणी तेलुगु हैं और उनके पति विग्नेश राघवन तमिल मूल के हैं। ब्रह्मरंबा महेश्वरी के इनकी शादी संपन्न कराने पर दुल्हन के पिता सुरेश रेड्डी काफी खुश हुए। उन्होंने मीडिया को दिए इंटरव्यू में कहा, 'ब्रह्मरंबा महेश्वरी ने विवाह विधि-पूर्वक संपन्न कराया। उन्होंने न सिर्फ सभी श्लोक और मंत्रों पढ़े, बल्कि साथ ही साथ उनका अर्थ अंग्रेजी में भी बताया।'
दुल्हन के पिता ने आगे बताया, 'हालांकि शुरू में इसके लिए परिवार के लोग राजी नहीं थे, क्योंकि महिला पुजारियों द्वारा शादी कराए जाने की बात हमने सुनी नहीं थी, लेकिन यह हम सभी के एक अच्छा मौका रहा। परिवार और करीबी दोस्तों में से जो भी लोग शादी में शरीक हुए, उन्होंने मिस महेश्वरी की योग्यता की सराहना की।'
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इस बारे में दुल्हन सुषमा का कहना था,
'आमतौर पर शादियां पुजारी(पुरुष) ही कराते हैं और मैं इस सोच में बदलाव लाना चाहती थी और अपने घरवालों के साथ आम लोगों को भी इस बात का अहसास कराना चाहती थी कि ऐसा मुमकिन हो सकता है। महिला पुजारी भी देश में है और हमें उनका उत्साहवर्धन करने की जरूरत है।'
महिला पुजारी द्वारा विवाह संपन्न कराना अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है। इस कदम से ना सिर्फ महिलाओं के मान-सम्मान में बढ़ोत्तरी होगी, बल्कि महिला सशक्तीकरण की मुहिम को भी बढ़ावा मिलेगा। महिलाओं को अपनी तरफ से इस तरह के सराहनीय प्रयास करने की जरूरत है, क्योंकि इसी तरह के छोटे-छोटे कदमों से महिलाओं का आत्मसम्मान बरकरार रखा जा सकता है और उन्हें वह मान-सम्मान दिलाया जा सकता है, जिसकी वे हकदार हैं।
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