समय के साथ-साथ विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है, लेकिन लगभग हर दौर में विज्ञान को आगे बढ़ाने में किसी न किसी महिला वैज्ञानिक का भी हाथ रहा है। जहां तक सबसे मश्हूर महिला वैज्ञानिक की बात सामने आती है वहां सबसे पहले मैडम क्यूरी का नाम आता है जिन्होंने रेडियम की खोज की थी, लेकिन ऐसा नहीं है कि भारत में महिला वैज्ञानिकों की कमी रही है। 28 फरवरी को नेशनल साइंस डे मनाया जाता है और इस दिन हम आपको बताने जा रहे हैं भारत की ऐसी महिला वैज्ञानिकों के बारे में जिन्होंने अपने काम से इतिहास रच दिया।
पिछले साल ही ISRO में काम करने वाली मंगलयान के प्रोजेक्ट पर काम करने वाली रितु करिधाल का नाम काफी चर्चा में आया था। वो भी विज्ञान के क्षेत्र में काफी आगे हैं। लेकिन वो अकेली नहीं हैं, तो चलिए बात करते हैं आज उन महिला वैज्ञानिकों की जिन्होंने अपने काम से भारत का नाम ऊंचा कर दिया।
भारत की पहली महिला फिजीशियन थीं आनंदीबाई गोपालराव जोशी। ये वो महिला थीं जो उस दौर में जब महिलाओं को पढ़ाया नहीं जाता था तब अमेरिका से मेडिसिन की डिग्री हासिल करके आई थीं। उनकी शादी 9 साल की उम्र में ही कर दी गई थी। उनके पति उनसे 20 साल बड़े थे और आनंदीबाई उनकी दूसरी पत्नी थीं। आनंदीबाई 14 साल की उम्र में मां बन गई थीं, लेकिन उनका बेटा कम उम्र में ही दवाओं की कमी के कारण मर गया था। इसी वजह से उन्होंने दवाइयों पर रिसर्च करने की सोची। आनंदीबाई के पति ने उन्हें विदेश जाकर मेडिसिन पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
उन्होंने वुमन्स मेडिकल कॉलेज पेंसिलवेनिया से पढ़ाई की थी। ये दुनिया का पहला मेडिकल कॉलेज था जो खास तौर पर महिलाओं के लिए था।
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भारत में पद्मश्री से सम्मानित होने वाली ये पहली महिला वैज्ञानिक थीं। उन्हें 1977 में पद्मश्री दिया गया था। जानकी को बॉटेनिकल सर्वे ऑफ इंडिया के डायरेक्टर के पद पर भी रखा गया था। 1900 के दशक में उन्होंने बॉटनी चुनी जो उस दौर में महिलाओं के लिए एक अनोखा सब्जेक्ट माना जाता था। इसके बाद उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज से बॉटनी में हॉनर्स की डिग्री हासिल की। cytogenetics में उन्होंने रिसर्च शुरू की। इसके बाद गन्ने और बैंगन की अलग-अलग प्रजातियों पर काम किया और इसके लिए उन्हें सम्मानित किया गया।
कमला जी वो पहली भारतीय महिला वैज्ञानिक थीं जिन्होंने PhD की डिग्री हासिल की थी। उन्होंने IISc में रिसर्च फेलोशिप के लिए अप्लाई किया था, लेकिन उन्हें सिर्फ इसलिए रिजेक्ट कर दिया गया क्योंकि वो एक महिला थीं। वो प्रोफेसर सी वी रमन की पहली महिला स्टूडेंट थीं। उनकी परफॉर्मेंस के चलते सी वी रमन ने उन्हें और आगे रिसर्च करने की इजाजत दे दी थी। उन्होंने ये खोज की थी कि हर प्लांट टिशू में ‘cytochrome C’ नाम का एन्जाइम होता है। रिजेक्ट होने के बाद भी अपनी रिसर्च के लिए आगे बढ़ने वाली कमला महिला सशक्तिकरण के मामले में भी एक मिसाल थीं।
केमेस्ट्री में अपने काम के लिए बहुत प्रसिद्ध रहीं असीमा कलकत्ता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज से 1936 में केमेस्ट्री सब्जेक्ट में ग्रैजुएट हुई थीं। एंटी-एपिलिप्टिक (मिरगी के दौरे), और एंटी-मलेरिया ड्रग्स का डेवलपमेंट इन्होंने ही किया था। इसके अलावा, कैंसर से जुड़ी एक रिसर्च में भी ये शामिल थीं।
कर्नाटका की पहली महिला इंजीनियर राजेश्वरी को सरकार की तरफ से विदेश में पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप मिली थी। ये 1946 की बात है। यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन में उन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में मास्टर्स की डिग्री की और उसके बाद उन्होंने डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की। भारत वापस आने के बाद उन्होंने IISc में इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में बतौर फैकल्टी मेंबर हिस्सा लिया और उसके बाद अपने पति के साथ माइक्रोवेव रिसर्च लैबोरेटरी खोली।
जहां तक महिला वैज्ञानिकों की बात है तो एस्ट्रोनॉट कल्पना चावला का नाम बहुत ऊपर लिया जाता है। कोलंबिया स्पेस शटल से अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की वो पहली महिला वैज्ञानिक थीं। 1982 में अमेरिका जाकर एरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स की डिग्री लेने वाली कल्पना ने 1986 में दूसरी मास्टर्स की डिग्री ली और फिर 1988 में एरोस्पेस इंजीनियरिंग में PhD भी की। 1 फरवरी 2003 को कोलंबिया शटल डिजास्टर में मरने वाले क्रू मेंबर्स में से एक कल्पना चावला भी थीं।
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ह्यूमन इन विटरो फर्टिलाइजेशन एंड एम्ब्रियो ट्रांसफर (‘Human In Vitro Fertilisation and Embryo Transfer’) यानी आसान भाषा में टेस्ट ट्यूब बेबी के क्षेत्र में रिसर्च करने वाली डॉक्टर इंदिरा हिंदुजा भारत की जानी मानी गायनिकोलॉजिस्ट हैं। वो इन्फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट भी हैं। उनकी तकनीक Gamete intrafallopian transfer (GIFT) की वजह से भारत का पहला GIFT बच्चा हुआ था। इसके अलावा, उन्होंने भारत की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी को डिलिवर करने में मदद भी की थी।
ओशिएनोग्राफर (oceanographer) यानी समुद्र पर रिसर्च करने वाली डॉक्टर अदिति पंत भारत की पहली महिला थीं जो एंटार्कटिका में 1983 में भारतीय दल के साथ जियोलॉजी और ओशिएनोग्राफी पर रिसर्च करने गई थीं। उन्हें अमेरिकी स्कॉलरशिप भी मिली थी कि वो हवाई में मरीन साइंस की डिग्री लं। इसके बाद लंदन के वेस्ट फील्ड कॉलेज से उन्होंने PhD की।
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