National Doctor’s Day 2020: इन 5 महिला डॉक्टरों ने भारतीय चिकित्सा क्षेत्र में नई मिसाल कायम की

डॉक्‍टर डे के मौके पर आज हम ऐसे कुछ डॉक्‍टरों के बारे में जानते है, जिन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में अपने योगदान से एक नई मिसाल कायम की।

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पुराने समय में डॉक्टर को मसीहा के रूप में देखा जाता था और माना जाता था कि भगवान ने लोगों की जान बचाने के लिए इन्‍हें भेजा है। जी हां जब भी आप किसी बीमारी से घिरी होती हैं तो ऐसे में जुबान पर सबसे पहला नाम डॉक्टर का ही आता है। लेकिन हमारे देश में कुछ समय पहले एक अधिकांश व्‍यवसायों में पुरुषों का वर्चस्‍व था, जब त‍क कि कुछ नामों ने दुनिया को अन्‍यथा सोचने के लिए मजबूर नहीं किया। पुरुष प्रधानता से अप्रभावित, महिला डॉक्टरों के प्रयासों से भारतीय चिकित्सा को आज के समय में जेंडर-न्यूट्रल इंडस्ट्री बनने में मदद मिली। कुछ ऐसी ही महिला डॉक्टरों की कहानी, जिन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में अपने योगदान से एक नई मिसाल कायम की। आइए आज डॉक्‍टर डे के मौके पर ऐसे ही कुछ डॉक्‍टरों के बारे में जानें।

डॉक्‍टर कादम्बिनी गांगुली

ब्रिटिश राज के दौरान एक उदार परिवार में जन्मी गांगुली देश की पहली महिला स्नातकों में से एक थीं। लड़खड़ाती रूढ़ियों और शादी और परिवार के पालन-पोषण के दायरे में आने से इनकार करके उन्होंने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। 1886 में अपनी डिग्री अर्जित करते हुए वह दूसरी महिला भारतीय डॉक्टर बनीं, जिन्होंने पश्चिमी चिकित्सा पद्धति का अभ्यास किया। ऐसे समय में जहां एक महिला का डॉक्टर होना लगभग असंभव था, गांगुली ने विदेश की यात्रा की और एलआरसीपी, एलआरसीएस और जीएफपीएस डिग्री अपने नाम के साथ संलग्न करने के बाद ही घर लौटीं। अपने पुरुष समकक्षों और वरिष्ठों के बीच एक बेहतर प्रतिष्ठा को देखते हुए, उन्हें लेडी डफरिन हॉस्पिटल, कोलकाता के साथ एक नौकरी की पेशकश की गई, जिसके बाद उन्होंने अपना अभ्यास शुरू किया। कादम्बिनी गांगुली भारत की पहली महिला स्नातक और पहली महिला फ़िजीशियन थीं। यही नहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में सबसे पहले भाषण देने वाली महिला का गौरव भी कादम्बिनी गांगुली को ही मिला था। कादम्बिनी गांगुली पहली दक्षिण एशियाई महिला थीं, जिन्होंने यूरोपियन मेडिसिन में ट्रेनिंग ली थी।

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डॉक्‍टर एसआई पद्मावती

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डॉक्‍टर शिवरामकृष्ण अय्यर पद्मावती भारत की पहली महिला कार्डियोलॉजिस्ट हैं। 96 साल की उम्र में भी वह उतनी ही एक्टिव हैं और अपने रोगियों का इलाज कर रही हैं जैसे कि 60 साल पहले किया करती थीं। बर्मा में जन्मी, पद्मावती ने अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई रंगून मेडिकल कॉलेज से की, जिसके बाद वह 1949 में लंदन चली गईं। यहां पर उन्होंने रॉयल कॉलेज ऑफ़ फिजिशियन, लंदन से एक FRCP प्राप्त किया। उसके बाद रॉयल कॉलेज ऑफ़ फिजिशियन, एडिनबर्ग से FRCPE किया। कार्डियोलॉजी में रुचि बढ़ने से पहले उन्होंने लंदन के कई फेमस हॉस्पिटल में चिकित्सा का अभ्यास शुरू किया था। इस विषय पर आगे पढ़ाई करते हुए, उन्होंने महसूस किया कि भारत में कार्डियोलॉजी को वह महत्व नहीं मिला, जितना की मिलना चाहिए था। अपनी मातृभूमि पर लौटकर, उन्‍होंने न केवल देश का पहला कार्डियोलॉजी क्लिनिक खोला, बल्कि भारतीय मेडिकल कॉलेज में पहला कार्डियोलॉजी विभाग भी बनाया और हार्ट डिजीज के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए भारत की पहली हृदय नींव की स्थापना की। पद्म विभूषण (1992) को पाने वाली पद्मावती अभी भी राष्ट्रीय हृदय संस्थान, दिल्ली के निदेशक और अखिल भारतीय हृदय फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष हैं। इसके अलावा वह निवारक कार्डियोलॉजी में छात्रों को प्रशिक्षित करने में विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ भी सहयोग करती हैं।

डॉक्‍टर भक्ति यादव

भक्ति यादव का जन्म 3 अप्रैल 1926 को उज्जैन के पास महिदपुर में हुआ। 1937 में जब लड़कियों का पढ़ना बुरा माना जाता था, तब भक्ति ने पढ़ने की इच्छा जाहिर की। उनकी इस जिद के चलते उनके पिता ने उन्हें पढ़ने के लिए स्कूल भेजा। स्कूली पढ़ाई के बाद उन्होंने कॉलेज में दाखिला लिया। एमजीएम मेडिकल कॉलेज में वह एमबीबीएस कोर्स के पहले बैच की पहली महिला छात्रा थीं। 1952 में उन्हें एमबीबीएस की डिग्री हासिल हुई। उन्होंने कई जगह नौकरी की और बाद में घर पर ही नार्सिंग होम खोलकर मरीजों को चेकअप शुरू किया। संपन्न परिवार के मरीजों से भी वह नाममात्र की फीस लेती थीं और गरीब मरीजों का इलाज तो फ्री में किया करती थीं। वर्ष 2011 में उन्हें निःशुल्क चिकित्सा सेवा के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया, जिसके कुछ समय बाद 91 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया।

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डॉक्‍टर इंदिरा हिंदुजा

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इंदिरा हिंदुजा ने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से स्त्री रोग विज्ञान में एमडी की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगा दिया। हजारों लोगों का इलाज किया, लेकिन इतिहास रचने वाले तारीख यानि 6 अगस्त 1986 को आज भी याद किया जाता है। केईएम हॉस्पिटल में उन्होंने देश को पहली टेस्ट ट्यूब बेबी की सौगात दी थी। आज भले ही टेस्ट ट्यूब बेबी बहुत आम बात हो, लेकिन उस दौर में यह काफी दुर्लभ था। इस क्षेत्र में उनके प्रयासों के लिए, उन्हें 2011 में सरकार द्वारा प्रतिष्ठित पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। इंदिरा हिंदुजा का जन्‍म शिकारपुर (पाकिस्तान) में हुआ था। विभाजन के बाद वह परिवार के साथ भारत आ गईं थीं।

डॉक्‍टर कामिनी ए राव

डॉक्‍टर कामिनी ए राव भारत में सहायक रिप्रोडक्‍शन के क्षेत्र में अग्रणी हैं। उन्‍हेंरिप्रोडक्‍शनएंडोक्रिनोलॉजी, ओवेरियन की बनावट और सहायक रिप्रोडक्‍शनप्रौद्योगिकी में विशेषज्ञता थीं। उनके योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया, जो भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है। डॉक्‍टर कामिनी ए राव को भारत के पहले SIFT शिशु के जन्म का श्रेय दिया जाता है। डॉक्‍टर कामिनी ए राव मिलन में मेडिकल डायरेक्‍टर हैं जो कि रिप्रोडक्‍शन मेडिकल सेंटर हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बिशप कॉटन गर्ल्स हाई स्कूल, बेंगलुरु से हुई और उन्होंने चिकित्सा का अध्ययन सेंट जॉन मेडिकल कॉलेज, बंगलौर, और वनिविलास, बंगलौर से किया।

डॉक्‍टर कामिनी व्यावसायिक रूप से प्रोफेसर किप्रोस निकोलेडज़ के मार्गदर्शन में हैरिस बर्थराइट रिसर्च सैंटर फॉर फीटल मैडिसन, किंग्ज कॉलेज के स्कूल ऑफ मेडिसिन, लंदन, ब्रिटेन से भ्रूण इनवेसिव चिकित्सा में प्रशिक्षित हैं और उन्होंने लेजर सर्जरी में ट्रेनिंग साऊथ क्लीवलैंड हॉस्पिटल, मिडिल्सब्रो, ब्रिटेन से प्रोफसर रे गैरी के मार्गदर्शन में की।

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