वो कहते हैं ना कि वास्तविकता हमारी कल्पना से भी विचित्र होती है और इसका जीता-जागता उदाहरण है उदिता दुहन। उदिता भारतीय हॉकी में एक उभरती हुई स्टार है और वह टोक्यो ओलंपिक में इंडियन वुमन हॉकी टीम में खेलती हुई नजर आएंगी। उनका गेम बड़े-बड़ों के छक्के छुड़ा देता है। लेकिन खुद उदिता ने कभी भी नहीं सोचा था कि वह अपने जीवन में हॉकी खेलेंगी।
भले ही उनकी रूचि बचपन से गेम्स में थी, लेकिन उन्होंने कभी भी हॉकी खेलने के बारे में नहीं सोचा था। लेकिन एक छोटी सी घटना से उनके जीवन में हॉकी आई और फिर वह उससे कुछ इस तरह जुड़ गईं कि आज वह भारतीय हॉकी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिप्रेजेंट करती हैं। उदिता के जीवन की कहानी बेहद ही दिलचस्प है और हम सभी को यह सीख देती है कि जरूरी नहीं है कि आपके साथ हमेशा वैसा ही हो, जैसा आपने सोचा हो।
लेकिन आपको जो मिला है, आप उसे किस तरह बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल कर पाते हैं, यह आपके जीवन को एक दिशा प्रदान करता है। तो चलिए आज हम आपको उदिता दुहन के जीवन की इंस्पायरिंग स्टोरी के बारे में बता रहे हैं-
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हॉकी नहीं हैंडबॉल थी पहली पसंद
उदिता को आज भले ही लोग एक बेहतरीन हॉकी प्लेयर के रूप में जानते हैं, लेकिन उनके लिए हॉकी कभी भी उनकी पहली च्वॉइस नहीं थी। यह सच है कि उदिता को बचपन से ही गेम्स खेलने का शौक था, लेकिन बचपन में वह हैंडबॉल खेला करती थीं। दरअसल, उनके पिता भी हैंडबॉल खेलते थे और उन्हें देखकर ही उनके मन में भी हैंडबॉल खेलने की इच्छा जागी थी। वह अपने गेम के कोच के मार्गदर्शन में अन्य लड़कियों के साथ अपने स्कूल में हैंडबॉल खेलने लगी। लेकिन एक बार ऐसा हुआ कि उदिता के हैंडबॉल कोच लगातार तीन दिनों तक नहीं आए, लेकिन इस दौरान भी कोई खेल खेलना चाहती थीं और इसलिए उन्हें एक विकल्प के रूप में हॉकी को चुना। लेकिन उनके इस विकल्प ने उदिता के जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। वह हॉकी में सच में बेहद अच्छी थी। उसके बाद उदिता ने गेंद को छोड़ दिया और स्टिक उठाई और उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा।
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मां को मानती हैं भगवान
उदिता के जीवन में उनकी मां सबसे महत्वपूर्ण इंसान हैं। दरअसल, साल 2015 में उदिता के पिता ने इस दुनिया को छोड़ दिया, लेकिन उस समय उनकी मां ने उदिता को टूटने नहीं दिया। वह उनकी सबसे बड़ी हिम्मत और सहारा बनीं। उनकी मां ने हमारे पिता की जगह ली और हमेशा उदिता के लिए खड़ी रहीं। उनकी हिम्मत ने ही उदिता के भीतर एक साहस का संचार किया और वह अपने खेल पर ध्यान लगा पाईं।
पहले भी की है जीत हासिल
स्कूल के दिनों से हॉकी खेलते हुए उदिता ने कई घरेलू टूर्नामेंटों में बेहद प्रभावशाली प्रदर्शन दिखाया। जिसके बाद उन्हें 2015 में जूनियर नेशनल कैंप के लिए चुना गया था। फिर, साल 2016 में उन्होंने जूनियर टीम के लिए डेब्यू किया। बाद में 2016 में चौथे अंडर-18 एशिया कप में टीम को लीड किया और इस टीम ने कांस्य पदक जीतकर भारत का नाम रोशन किया। सीनियर टीम के हिस्से के रूप में वह एशियाई खेलों और विश्व कप में खेल चुकी हैं और दोनों टूर्नामेंटों में बहुमूल्य योगदान दिया है।
सीनियर्स का करती हैं सम्मान
उदिता हमेशा ही अपने सीनियर्स का सम्मान करती हैं। वह बताती हैं कि रानी और वंदना के साथ ट्रेनिंग ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। इतना ही नहीं, टीम के मेंबर्स के बीच बहुत अच्छा तालमेल है। वे बहुत अनुभवी खिलाड़ी हैं और उन्होंने टीम के साथ हमेशा उदिता का समर्थन किया है। उदिता खुद को बेहद खुशकिस्मत मानती हैं कि टीम में उनके जैसे सीनियर्स हैं।
लॉकडाउन का उठाया पूरा फायदा
जहां लॉकडाउन बहुत से लोगों के लिए परेशानी का सबब बना, वहीं उदिता ने इसका पूरा फायदा उठाया। दरअसल, पिछले साल वह बेंगलुरु में अपनी टीम के साथ स्पोर्ट्स अॅथारिटी ऑफ इंडिया कैंपस में रहीं। जहां उन्होंने अपने पिछले खेलों के बहुत सारे फुटेज देखे और इस दौरान उन्होंने उन कुछ प्रमुख क्षेत्रों को नोट किया जहां वह खुद को बेहतर बना सकती हैं। उन्हें उम्मीद है कि इसका फायदा उन्हें टोक्यो ओलंपिक में जरूर मिलेगा।
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