टोक्यो ओलंपिक्स की शुरुआत में महज़ कुछ घंटे ही बचे हैं। कोरोना काल के दौरान 23 जुलाई 2021 को शुरू होकर 8 अगस्त तक चलने वाला इस बार का ये ओलंपिक्स वास्तव में कुछ ख़ास है। आपको बता दें कि पिछले साल कोरोना महामारी की वजह से ओलंपिक्स को स्थगित कर दिया गया था और इस साल इसका आयोजन जापान में किया जा रहा है।
इस बार ओलंपिक्स में हिस्सा लेने वाले खिलाडियों की कुल संख्या 127 है जिसमें से अलग-अलग खेलों में हिस्सा लेने वाली महिलाओं की संख्या 56 है। ऐसी ही महिलाओं के हुनर को दिखाते हुए डिस्कस थ्रोअर यानी कि चक्का फेंक खेल में ओलंपिक्स के लिए क्वालीफाई होने वाली सीमा पूनिया न सिर्फ महिलाओं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए मिसाल हैं। जानें ओलंपिक्स में चौथी बार हिस्सा लेने वाली सीमा पूनिया कौन हैं और इनसे जुड़ी कुछ बातें।
सीमा पूनिया का प्रारंभिक जीवन
सीमा पूनिया का जन्म 27 जुलाई,1983 को हरियाणा के सोनीपत जिले के खेवड़ा गांव में हुआ था। वह सोनीपत के सरकारी कॉलेज में पढ़ती थीं। उन्होंने खेल की शुरुआत 11 साल की उम्र में कर दी थी। शुरुआत में वो लॉन्ग-जंप और हर्डलर खेल में रूचि रखती थीं लेकिन बाद में उन्होंने डिस्कस थ्रो को अपना लक्ष्य बनाया। हालांकि सीमा एक ग्रामीण पृष्ठभूमि से थीं लेकिन वो बचपन से ही खेलों की दुनिया का हिस्सा बनना चाहती थीं, क्योंकि उनके दोनों भाई आनंदपाल सिंह (कुश्ती) और अमित पाल सिंह (हॉकी) के खेल में पहले से ही शामिल थे।
2000 में सैंटियागो में विश्व जूनियर चैंपियनशिप में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता और उन्हें 'मिलेनियम चाइल्ड' की उपाधि दी गयी। लेकिन सूडो एफेड्रिन एक ड्रग टेस्टिंग में पॉज़िटिव रिपोर्ट आने के बाद उनका ये पदक छीन लिया गया था।सीमा भारत की ओर से ओलंपिक में हिस्सा लेने वाली दूसरी डिस्कस थ्रोअर हैं। उनका अभी तक का सबसे अच्छा थ्रो 63.72 मीटर यानी कि 209.1 फीट है, जो उन्होंने राष्ट्रीय वरिष्ठ अंतर-राज्य एथलेटिक चैंपियनशिप 2021 में हासिल किया है।
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सीमा पूनिया की उपलब्धियां
- सीमा ने मूल रूप से 2000 विश्व जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था, लेकिन ड्रग टेस्ट की रिपोर्ट पॉज़िटिव आने की वजह से उन्होंने इस पदक को खो दिया था।
- ये उनके करियर का अंत नहीं था बल्कि उन्होंने 2002 में अगली विश्व जूनियर चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता।
- उन्होंने 2003 के राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीता और उन्हें 26 जून 2006 को हरियाणा राज्य सरकार द्वारा भीम पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- सीमा ने 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता और वह 2012 के लंदन ओलंपिक में 13वें स्थान पर रहीं। 2014 में, उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक और एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
- 37 वर्षीय सीमा पूनिया ने 2018 में कॉमनवेल्थ गेम्स खेलों में सिल्वर और 2018 जकार्ता एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीता।
सीमा पूनिया चौथी बार हो रही हैं ओलंपिक में शामिल
सीमा पूनिया का 2004, 2012 और2016 के बाद यह चौथा ओलंपिक है और वो इस बार डिस्कस थ्रोइंग में ओलंपिक के लिये क्वालीफाई करने वाली दूसरी भारतीय महिला हैं। इससे पहले राष्ट्रीय रिकॉर्डधारी कमलप्रीत कौर ने 66.59 मीटर का थ्रो फेंक कर टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया था। जहां एक तरफ सीमा को कुछ विवादों की वजह से स्वर्ण पदक गंवाना पड़ा था, वहीं अपनी कड़ी मेहनत और लगन से वो इस बार ओलंपिक्स की दौड़ में शामिल होकर भारत की विजय का झंडा फहराने के लिए तैयार हैं।
अपनी कड़ी मेहनत और कुछ कर गुजरने का जज्बा वास्तव में सीमा पूनिया को औरों से अलग बनाताहै, जो वास्तव में हम सभी के लिए एक मिसाल है।
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