Inspirational Story: गली क्रिकेट से महिला टी 20 वर्ल्ड कप तक का सफर, जानें राधा यादव के संघर्ष की कहानी

महिला टी 20 वर्ल्ड कप की स्‍टार क्रिकेट राधा यादव का नाम आज हर जुबान पर है। क्‍या आपको उनके संघर्ष की कहानी पता है? चलिए हम सुनाते हैं। 

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अंग्रेजी की एक प्रेरणादायक कहावत है 'स्‍ट्रगल एंड शाइन ' यानी संघर्ष करो सफलता पाओ। जिंदगी में हमेशा आगे बढ़ने और मेहनत करने के लिए यह कहावत हमेशा ही शक्ति प्रदान करती है। जो लोग इस कहावत को अपने जीवन में साकार रूप देते हैं वह हमेशा जीवन में सफलता देखते हैं मगर, सफता देखने वाली आंखें बहुत कम होती हैं। राधा यादव ऐसे लोगों में से ही एक हैं।

जी हां, आप सही समझे हम बात कर रहे हैं ऑस्‍ट्रेलिया में खेले जा रहे महिला टी 20 वर्ल्ड कप में भारतीय महिला क्रिकेट टीम की स्‍टार बॉलर राधा यादव की। आजकल राधा यादव का नाम हर जुबान पर है। राधा यादव ने श्रीलंका के खिलाफ खेले गए मैच में चार विकेट ले सभी को चकति कर दिया है। मगर, सफलता की इस सीढ़ी को चढ़ने के सफर में राधा ने कई बार ठोकरें खाई हैं और कई बार गिर कर खुद को संभाला है। 8 मार्च को महिला दिवस है और इस अवसर पर राधा यादव की सफलता की अनोखी और प्रेरणादायक कहानी आपको भी आगे बढ़ने का हौसला देगी।

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राधा यादव की कहानी हम उनके गुरु और कोच प्रफुल नाइक की जुबानी सुनेंगे। एक मीडिया हाउस को दिए इंटरव्‍यू में प्रफुल ने राधा के संघर्ष की कहानी का ऐसा विवरण दिया है जिसे सुन कर किसी भी पिता या गुरु की छाती गर्व से फूल जाए। गौरतलब है कि प्रफुल नाइट भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व खिलाड़ी रह चुके हैं । प्रफुल नाइक ने भारतीय क्रिकेट के महान खिलाड़ी सचिन तेंदूलकर के कोच रमाकांत आचरेकर से ही कोचिंग के गुर सीखे हैं। प्रफुल नाइक के यह गुर तब काम आए जब वर्ष 2012 में उनकी मुलाकात राधा से हुई। एक मीडिया हाउस को दिए इंटरव्‍यू में प्रफुल ने बताया, 'राधा तब मात्र 11 वर्ष की थी। मुंबई के कांदीवली इलाके की एक बिल्डिंग में मैंने उसे कुछ लड़कों के साथ क्रिकेट खेलते देखा। मेरी नजर तब राधा पर ही ठहर गई जब उसने टेनिल बॉल से विकेट लिया। हालाकि राधा के विकेट लेने के बाद भी लड़का बैट छोड़ने को तैयार नहीं था और राधा इस बात डंट गई थी कि वह आउट हो चुका है। राधा को क्रिकेट के प्रति यह लगाव और खेल को समझने की प्रतिभा ने मुझे इस बात के लिए मजबूर कर दिया था कि मैं उसे क्रिकेट सिखाउं। मगर, मैं उसके पिता की इजाजत के बिना कुछ नहीं करना चाहता था।'भारत की 8 महिला वैज्ञानिक जिन्होंने रच दिया इतिहास

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आपको बता दें कि राधा यादव के पिता तब एक सब्‍जी बेचने वाले थे। देखा जाए तो कोई काम छोटा नहीं होता मगर, आमदनी कम होने के कारण राधा के पिता ने प्रफुल नाइक को यह कह कर मना कर दिया था कि वह बेटी को पढ़ा नहीं सकते तो खेल कहा से सिखा पाएंगे। मगर, प्रफुल ने भी हार नहीं मानी। उन्‍होंने राधा के पिता से कहा कि खेल प्रतिभा से सीखा जाता है और प्रतिभा पैसों की मोहताज नहीं होती। प्रफुल ने राधा के पिता को यह भी कहा कि अगर राधा क्रिकेट खेलने लगती तो रेलवे में उसकी नौकरी पक्‍की हो जाएगी। इतना ही नहीं प्रफुल ने यह तक राधा के पिता से कह दिया कि राधा क्रिकेट में नाम नहीं भी कमा पाई तब भी उसे सराकी नौकरी मिल जाएगी।सादगी और समर्पण से भरी है सुधा मूर्ति की कहानी

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काफी ना नुकुर के बाद राधा यादव के पिता यह सोच कर मान गए कि कुछ नहीं तो उनकी बेटी को एक स्‍थाई नौकरी ही मिल जाएगी। यह सोचकर राधा यादव के पिता ने बेटी की पूरी जिम्‍मेदारी प्रफुल नाइक को सौंप दी। प्रफुल ने भी राधा को ट्रेनिंग शुरु कर दी। दिक्‍कत तो तब आई जब प्रफुल जॉब से रिटायर हो गए और उन्‍होंने बेटी के साथ बड़ोदा में शिफ्ट होने का फैसला लिया। राधा और राधा के पिता दोनों ही बात से दुखी थे कि अब आगे की ट्रनिंग कैसे पूरी होगी। तब राधा के पिता ने प्रफुल से कहा कि वह अपने साथ राधा को भी ले जाएं।

प्रफुल भी इस बात से तैयार तो हो गए मगर, उन्‍हें इस बात का डर था कि बड़ौदा क्रिकेट संघ उन्‍हें इस बात की अनुमति देगा या नहीं। मगर, प्रफुल ने कोशिश करके राधा को बड़ौदा क्रिकेट संघ में शामिल करा दिया और खुद उनके लोकल गार्जियन बन गए। बड़ौदा शिफ्ट होना राधा के जीवन का टर्निंग प्‍वॉइंट था। यहां पहुंच कर राधा ने बड़ौदा की अंडर 10 टीम में जगह बना ली। इतना ही नहीं वह इस टीम की कैप्‍टन भी रहीं।15 साल की उम्र में बेघर, जेब में थे सिर्फ 300 रुपए.. अब चलाती हैं 7.5 करोड़ की कंपनी

बेस्‍ट बात तो यह है कि राधा जब गली क्रिकेट खेला करती थीं तब वह तेज गेंदबाज थीं और ट्रेनिंग के बाद वह बहुत अच्‍छी स्पिनर बन चुकी हैं। आपको बता दें कि राधा ने अपने करियर की शुरुआत वर्ष 13 फरवरी 2018 में महिला टी20 इंटरनैशनल क्रिकेट से की थी। अक्‍टूबर 2018 में उनका नाम आईसीसी महिला वर्ल्‍ड टी20 टूर्नामेंट की टीम में शामिल किया गया था। तब से राधा यादव ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा है।

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आपको बता दें कि राधा यादव के पिता अब सब्जि तो नहीं बेचते। बेटी की सफलता के साथ ही उनके घर की आर्थिक स्थिति में भी काफी सुधार हुआ है और राधा के पिता ने मुंबई में ही 'राधा जर्नल स्‍टोर ' खोल लिया है। उम्‍मीद है कि आपको राधा यादव के संघर्ष की कहानी बहुत पसंद आई होगी।चेन्नई की सेलर Nethra Kumanan को मिला वर्ल्ड कप मेडल, पहली बार किसी भारतीय महिला को मिला है ये खिताब

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