गर्मी और बरसात में त्वचा को सूरज की अल्ट्रा वॉयलेट किरणों से बचाने के लिए अगर आप चर्चित ब्रांड्स के सनस्क्रीन प्रॉडक्ट्स का इस्तेमाल करती हैं। महंगेऔर टीवी के विज्ञापनों में अक्सर नजर आने वाले सनस्क्रीन यूज करके आप सोचती हैं कि आपकी त्वचा सुरक्षित हो गई, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता। मुमकिन है कि आप अपने सनस्क्रीन से जितनी सुरक्षा की उम्मीद कर रही हों, आपको उसका आधा ही मिले। किंग्स कॉलेज लंदन के रिसर्चर्स का कहना है सूरज से सुरक्षा इस बात पर निर्भर करती है कि सनस्क्रीन का इस्तेमाल किस तरह से किया जा रहा है।
यह बात लगभग हर महिला जानती है कि अगर सनस्क्रीन की पतली लेयर लगाई जाए तो उसका पूरा बेनिफिट नहीं मिल पाता। अपनी तरह के पहले एक्सपेरिमेंट में किंग्स कॉलेज के रिसर्चर्स ने सनस्क्रीन की लेयर पतली होने पर त्वचा को होने वाले नुकसान का आंकलन किया। नतीजों में यह बात सामने आई कि एसपीएफ 50 वाली सनस्क्रीन को खास तरीके से लगाए जाने पर उससे सिर्फ 40 फीसदी सन प्रोटेक्शन मिला। इस रिसर्च से यह बात साफ हो गई है कि उपभोक्ता यूवी रेज से अपनी त्वचा को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यकता से अधिक वाली सनस्क्रीन का इस्तेमाल कर रहे हैं। रिसर्चर्स का यह भी कहना था कि ज्यादातर लोग सनस्क्रीन का इस्तेमाल उस तरह से नहीं करते, जिस तरह से उसका टेस्ट किया जाता है, इसीलिए ज्यादा एसपीएफ वाली सनस्क्रीन लगाना ही बेहतर विकल्प है।
ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ डर्मेटोलॉजिस्ट्स की नीना गोड का कहना है, 'इस रिसर्च से यह बात साफ होती है कि हमें सूरज की हानिकारक किरणों से बचाव के लिए सिर्फ सनस्क्रीन पर ही निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि हमें दूसरे सुरक्षित तरीकों जैसे कि छतरी का प्रयोग या फिर कपड़े से त्वचा को ढंकने को अपनाने के बारे में भी सोचना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि हमें पता नहीं चलता और हम सनस्क्रीन की बहुत पतली लेयर लगा रहे होते हैं।'
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