मानसिक तनाव या चिंता एक ऐसी चीज़ है जो इंसान को किसी भी उम्र में परेशान कर सकती है। मेंटल हेल्थ के बारे में सोचना और आगे बढ़ना बहुत जरूरी है और ऐसे समय में इंसान को अपनों की जरूरत महसूस होती है। सबसे बड़ी समस्या ये होती है कि टीनएज जिसे सबसे नाजुक उम्र कहा जाता है वो उम्र बहुत ज्यादा रिस्की होती है मानसिक तनाव को लेकर। इस समय में कोविड-19 पैंडेमिक की वजह से समस्या और बढ़ गई है।
इस माहौल में हर उम्र के इंसान के साथ मानसिक तनाव जैसी स्थिति बन रही है और अब टीनएजर्स की समस्या और बढ़ गई है। टीनएजर्स और प्रीटीन यानि 10-19 साल के बच्चे हमारी जनसंख्या का 21 प्रतिशत हिस्सा हैं और आंकड़े कहते हैं ग्लोबल जनसंख्या में मेंटल हेल्थ समस्याओं में 16% हिस्सा इसी एज ग्रुप का होता है। भारत में ये आंकड़ा 6-12 प्रतिशत हिस्सा होता है।
टीनएज में करीब 50% लोगों को 14 साल की उम्र में किसी न किसी तरह की मानसिक बीमारी होती है। इसके बाद सबसे परेशानी भरी स्थिति 24 साल की उम्र से शुरू होती है। इस समस्या के बारे में ठीक से जानने के लिए हमने कन्टिनुआ किड्स की डायरेक्टर, को-फाउंडर, डेवलपमेंटल और बिहेवियरल पीडिएट्रिशियन डॉक्टर हिमानी नरूला से बात की।
उन्होंने हमें बच्चों की मानसिक सेहत को लेकर बहुत कुछ बताया और ये भी बताया कि किस तरह से टीनएजर्स को लेकर किस तरह की सावधानियां बरतनी चाहिए।
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डॉक्टर हिमानी के मुताबित रिस्क फैक्टर्स कई तरह के हो सकते हैं जैसे पारिवारिक कारण जहां डिप्रेशन, सुसाइड आदि की हिस्ट्री हो। साइकोलॉजिकल फैक्टर्स जहां आवेग में आकर कोई फैसला लिया गया हो या फिर टीनएजर को रिस्क लेने की आदत हो, इसके अलावा, परफेक्शन के साथ काम करने की इच्छा, सेल्फ एस्टीम का कम होना, खुद को ही दोषी मानना और बचपन का कोई असॉल्ट जैसे फिजिकल या सेक्शुअल एब्यूज आदि टीनएजर्स में मानसिक रोगों का कारण बन सकता है।
इनके अलावा, बच्चों पर सामाजिक व्यवहार का भी असर पड़ता है जैसे पारिवारिक कलह, पढ़ाई में ठीक तरह से काम न करना, माता-पिता में से किसी एक या दोनों का नहीं रहना, माता-पिता का बच्चों पर ज्यादा ध्यान न जाना, स्कूल में कोई परेशानी, वित्तीय समस्याएं आदि सब कुछ इसका कारण बन सकता है और ये टीनएजर्स के दिमाग पर काफी गहरा असर डाल सकता है।
कोविड-19 के कारण पहले से ही चिंताजनक स्थिति में और भी ज्यादा परेशानी हो गई है जहां न सिर्फ वित्तीय समस्याएं बल्कि सोशल आइसोलेशन और अपने बड़े-बूढ़े और दोस्तों से कम मेल-जोल काफी तकलीफदेह हो गया है। फिजिकल एक्टिविटीज भी कम हो गई हैं और ये रिस्क को बढ़ा रहा है। इसकी वजह से बच्चों का रूटीन बिगड़ा है, स्क्रीन टाइम बढ़ा है, स्कूलों की जरूरत खत्म हुई है, रिस्क ज्यादा बढ़ गए हैं और पारिवारिक कलह भी बढ़ गई है।
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अगर आप इनमें से कोई लक्षण देख रहे हैं तो ये माना जा सकता है कि आपके बच्चे को मानसिक समस्या हो रही है और किसी प्रोफेशनल की मदद लेनी चाहिए-
सोने और जागने के समय और अवधि पर अचानक कोई बदलाव आना।
ये सभी चीज़ें अगर लगातार हो रही हैं तो आपको सतर्क हो जाना चाहिए कि आपके बच्चे के नॉर्मल मूड स्विंग्स नहीं बल्कि ये बहुत गंभीर समस्या है। इस नाजुक उम्र में हमें उनकी मदद करनी चाहिए।
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