पूरी दुनिया में 21 सितंबर को वर्ल्ड अल्जाइमर डे मनाया जाता है, जिससे इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक कराया जा सके। ऐसा इसलिए क्योंकि पहले यह बीमारी केवल बड़ी उम्र के लोगों तक ही सीमित थी, लेकिन सीनियर कंसलटेंट, न्यूरो-सर्जरी डॉक्टर आशीष कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि ''डाइट और लाइफस्टाइल में बदलाव के कारण आज कम उम्र के लोग भी इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं। इस बीमारी से पीड़ित को रोजमर्रा के कामकाज में परेशानी होती है, फोन मिलाने और किसी काम में ध्यान लगाने में दिक्कत आने लगती है, फैसला लेने की क्षमता कम हो जाती है, चीजें इधर उधर रखकर भूल जाते हैं, शब्द भूलने लगते हैं, जिससे नॉर्मल मेें बातचीत में रूकावट आती है, अपने घर के आसपास के रास्ते भूल जाते हैं और उनके रोजमर्रा के व्यवहार में तेजी से बदलाव आता है।''
अल्जाइमर भूलने की बीमारी है। बीमारी जब एडवांस में पहुंच जाती है, तो मरीज अपने परिजनों और रिश्तेदारों को पहचनाना तक बंद कर देता है। देश में लगभग 16 लाख लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। यह कहना है इन्द्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के न्यूरोलोजी विभाग के सीनियर कन्सलटेन्ट डॉक्टर विनीत सूरी का। उन्होंने 'विश्व अल्जाइमर दिवस' पर एक बयान में कहा कि भारत में लगभग 40 लाख लोग डिमेंशिया से पीड़ित हैं और इसमें अल्जाइमर के मामले सबसे ज्यादा हैं। तकरीबन 16 लाख मरीज अल्जाइमर से पीड़ित हैं।
उन्होंने कहा कि अक्सर लोग समझते हैं कि 'डिमेंशिया' और 'अल्जाइमर' एक ही हैं। हालांकि ये दोनों स्थितियां एक नहीं हैं, वास्तव में अल्जाइमर डिमेंशिया का एक प्रकार है। डिमेंशिया में कई बीमारियां शामिल हैं, जैसे अल्जाइमर रोग, फ्रंट टू टेम्पोरल डिमेंशिया, वैस्कुलर डिमेंशिया आदि। डिमेंशिया के मरीजों में शुरुआत में याददाश्त कमजोर होने लगती है और मरीज को रोजमर्रा के काम करने में परेशानी होने लगती है। मरीज तारीखों, रास्तों और जरूरी कामों को भूलने लगता है। वह घर या ऑफिस में काम करते समय गलत फैसले लेने लगता है।
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उन्होंने कहा कि मरीज को कुछ नई या हाल ही बातें याद रहने लगती हैं। बीमारी जब एडवांड स्थिति में पहुंच जाती है, तो मरीज अपने परिजनों और रिश्तेदारों को पहचनाना तक बंद कर देता है। उनके व्यवहार में कई तरह के बदलाव आ सकते हैं, जैसे गुस्सा या उग्र व्यवहार करना, मूड में बदलाव आना, दूसरों पर भरोसा न करना, डिप्रेशन, समाज से दूरी बनाना या बेवजह इधर-उधर घूमने की आदत।
डॉक्टर सूरी के अनुसार अल्जाइमर पूरी तरह से ठीक नहीं हो सकता, लेकिन मरीज के जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है। ऐसी कई दवाएं हैं, जिनके द्वारा मरीज के व्यवहार में सुधार लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कई प्रयासों से मरीज के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाया जा सकता है जैसे एक्सरसाइज, हेल्दी डाइट, हाई ब्लड प्रेशर कंट्रोल, डिसलिपिडिमा और डायबिटीज पर कंट्रोल और मरीज को बौद्धिक गतिविधियों में शामिल करना जैसे नई भाषा सीखने, मेंटल गेम्स या म्यूजिक में बिजी रखना।
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अगर आपके घर के किसी सदस्य, फ्रेंड या परिचित में उपरोक्त लक्षण दिखते हैं तो अपने डॉक्टर से परामर्श करें। रोग की जानकारी में ही इसका बचाव है। इस रोग को रोकना तो संभव नहीं, लेकिन कुछ सामान्य उपाय करके रोगी की परेशानी को कम जरूर किया जा सकता है।इस तरह की और जानकारी पाने के लिए हरजिंदगी से जुड़ी रहें।
Source: IANS
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