कोलेस्ट्रॉल शरीर के सुचारु रूप से काम करने के लिए जरूरी होता है। हमारे शरीर की हर कोशिका को जीवित रहने के लिए कोलेस्ट्रॉल जरूरी होता है। कोलेस्ट्रॉल मोम जैसा चिकना पदार्थ होता है, जो ब्लड प्लाज्मा द्वारा शरीर के विभिन्न हिस्सों में पहुंचता है। कोलेस्ट्रॉल दो तरह का होता है, एलडीएल (लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन) और एचडीएल (हाई डेन्सिटी लिपोप्रोटीन)।
एलडीएल को आमतौर पर बुरा कोलेस्ट्रॉल कहा जाता है। एलडीएल की मात्रा अगर ज्यादा होती है तो यह कोशिकाओं में हानिकारक रूप में जमा होने लगता है। धीरे-धीरे समय बीतने के साथ एलडीएल धमनियों को संकरा कर देता है, जिससे ब्लड सर्कुलेशन सुचारु रूप से नहीं हो पाता। मानव रक्त में एलडीएल की मात्र आमतौर पर 70 प्रतिशत होती है। कोरोनरी हार्ट डिजीज और स्ट्रोक जैसी घातक बीमारियां होने की यह एक बड़ी वजह है। वहीं दूसरी तरफ एचडीएल को अच्छा कोलेस्ट्रॉल माना जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार एचडीएल कोरोनरी हार्ट डिजीज और स्ट्रोक को रोकने में अहम भूमिका निभाता है। एचडीएल कोलेस्ट्रॉल को कोशिकाओं से दूर वापस लीवर में ले जाता है। लीवर में जाने पर या तो यह टूट जाता है या शरीर से बाहर जाने वाले अवशिष्ट पदार्थों के साथ बाहर निकल जाता है।
एक नई स्टडी में यह बात सामने आई है कि कोलेस्ट्राल की मात्रा शरीर में कंट्रोल में रहती है तो अल्जाइमर होने की आशंका कम हो जाती है। शोधकर्ताओं ने स्मरणशक्ति में कमी आने और हार्ट डिजीज के बीच आनुवंशिक संबंधों का पता लगाया है। इस शोध में 15 लाख लोगों के डीएनए की जांच के बाद पता लगाया गया है कि हार्ट डिजीज होने यानी कि ट्राइग्लिसराइड और कोलेस्ट्राल स्तर (एचडीएल, एलडीएल और कुल कोलेस्ट्राल) बढ़ने से अल्जाइमर होने की आशंका होती है। हालांकि ऐसे जीन, जो बॉडी मास इंडेक्स और टाइप-2 डायबिटीज का खतरा बढ़ाते हैं, उनका संबंध अल्जाइमर का खतरा बढ़ाने में नहीं पाया गया।
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वाशिंगटन यूनिवसिर्टी के स्कूल ऑफ मेडिसिन के सहायक प्रोफेसर सेलेस्टे एम. कार्च का कहना था, "जो जीन लिपिड मेटाबॉलिज्म को प्रभावित करता है, उसका संबंध अल्जाइमर रोग बढ़ाने के कारक के रूप में सामने आया है।" स्कूल ऑफ मेडिसिन के सहायक प्रोफेसर राहुल एस. देसिकन ने कहा कि इस तरह सही जीन और प्रोटीन को अगर टार्गेट किया जाए और कोलेस्ट्राल एवं ट्राइग्लिसराइड को कंट्रोल में रखा जाए तो कुछ लोगों में अल्जाइमर्स के खतरे को कम किया जा सकता है। शोध में यह पाया गया कि डीएनए का जो हिस्सा हृदय रोग का खतरा बढ़ाता है, वही अल्जाइमर रोग का खतरा बढ़ाने के लिए भी जिम्मेदार है। यह शोध एक्टा न्यूरोपैथोलोजिका में प्रकाशित हुआ है।
पिएं चाय : चाय में पाया जाने वाला कैटेचिन कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करता है। ट्रडीशनल ब्लैक टी की तुलना में ग्रीन टी में इसकी मात्रा अधिक होती है।
खाएं ओट्स : 6 हफ्ते तक नाश्ते में रोजाना ओट्स खाने से कोलेस्ट्रॉल का स्तर 5.3 प्रतिशत कम हो जाता है और आपको दिल की बीमारी होने का खतरा नहीं रहता।
नाशपाती रखेगा हेल्दी : ताजा नाशपाती में पेक्टिन प्रचुर मात्रा में होती है। यह कोलेस्ट्रॉल को इकट्ठा कर शरीर से बाहर निकाल देता है। इसके अलावा केला, संतरा और सेब में भी पेक्टिन पाया जाता है और इन फलों को नियमित रूप से खाना आपके लिए फायदेमंद है।
तो नेचुरल तरीके से अपने कोलेस्ट्रोल को कंट्रोल करके आप अल्जाइमर जैसी डिजीज से खुद को सुरक्षित रख सकती हैं और पूरी तरह से हेल्दी रह सकती हैं।
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