'राधे-राधे' बृज भूमि में कदम रखते ही यह स्वर मेरे कानों में गूंजने लगे। मगर, इन स्वरों के साथ ही मन में समाए भय की आवाज भी मुझे निरंतर सता रही थी। भय था कोरोना वायरस का। जो अब पूरे विश्व में किसी महामारी की तरह फैलता जा रहा है। वैसे तो मेरा हर साल 2 से 3 बार मथुरा-वृंदावन आना हो जाता है मगर, इस बार अवसर विशेष था। कृष्ण को रंगने और कृष्ण में रंगने का विचार मैने पहले ही बना लिया था। होली का बेसब्री से इंतजार था। सारी तैयारियां भी कर ली थीं। मगर, मेरे सारे उत्साह पर तब पानी फिर गया जब देश में कोरोना वायरस ने दस्तक दी। घरवाले, दोस्त और रिश्तेदार, कोई भी नहीं बचा जिसने मुझे प्लान कैंसिल करने का विचार न दिया हो। फिर भी, खुद से अपनी सुरक्षा का वादा करके मैं 2 दिन के लिए मथुरा-वृंदावन के लिए रवाना हो गई।
मथुरा पहुंचकर स्टेशन पर टूरिस्ट की कम भीड़ और लोगों के चेहरे पर चढ़ें एन-95 मास्क को देख दिल को थोड़ी तसल्ली हुई कि यहां के लोग भी कोरोना वायरस से वाकिफ हैं और खुद को सुरक्षित रखने के पूरे प्रयास कर रहे हैं। मेरे ठहरने का इंतजाम वृंदावन में था। यहां की होली दुनिया भर में मशहूर है। देश-विदेश से लोग यहां हर वर्ष अपने प्रिय श्रीकृष्ण के साथ होली का त्योहार मनाने आते हैं। आंकाड़ों पर विश्वास किया जाए तो हर वर्ष होली महोत्सव पर लाखों श्रद्धालू देश विदेश से यहां इकट्ठा होता है। इनमें ज्यादातर श्रद्धालू दिल्ली, आगरा, जयपुर और कानपुर से आते हैं। यह सभी शहर वृंदावन से महज 2 से 4 घंटे की दूरी पर है। यह सभी बड़े शहर हैं और यहां अरबन कलचर को फॉलो किया जाता है। इस लिहाज से लोगों का कोरोना वायरस से अवेयर होना जाहिर था। मगर, वृंदावन पहुंच कर तो मैं हैरान रह गई। यहां के दुकानदारों तक ने मास्क लगा रखे थे। लोग होली का आनंद भी मास्क पहन कर ले रहे थे। भीड़ में मौजूद ज्यादतर लोगों ने चेहरे पर मास्क चढ़ाए थे।
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लोगों को इतना अवेयर देखकर मेरी जिज्ञासा और भी बढ़ती जा रही थी। मैं जानना चहती थी कि सिर्फ फैशन के लिहाज से लोगों ने ये मास्क पहने हैं या फिर इन्हें डब्लूएचओ की गाइडलाइंस भी पता हैं? यह पता लगाने के लिए मैंने एक मेडिकल शॉप में जाकर मैनें हैंड सैनिटाइजर मांगा। मैं यह सुन कर हैरान रह गई कि वृंदावन जैसे छोटे से कस्बे की वही हालत है जो दिल्ली और दूसरे बड़े शहरों की हैं। दुकानदार ने मुझ से कहा, 'मैडम, जो आ रहा है कुछ दिन से हैंड सैनिटाइजर ही मांग रहा है। पहले तो टूरिस्ट ही मांगते थे अब तो लोकल दुकानदार भी मास्क और सैनिटाइजर खरीद रहे हैं। हमारे पास तो नहीं बचा सैनिटाइजर।' हैरानी के साथ मुझे यह सुन कर खुशी भी हुई कि लोग कोरोना वायरस के गंभीरता को समझ रहे हैं।
डर के बीच वृंदावन में कुछ मजेदार एक्सपीरयिंस भी रहे। कोरोना वायरस का डर वृंदावन वासियों में कुछ इस कदर है कि चाइनीज के लुक एंड फील वाले लोगों से भी वहां के लोग खौफ खा रहे हैं। मैंने भी कुछ ऐसा देखा। दरअसल, जिस होटल में मैं लंच करने गई थीं। वहां कुछ नॉर्थ ईस्ट के लोग भी लंच करने पहुंचे थे। वह दिखने में चाइनीज ही लग रहे थे। मगर, उनकी भाषा नॉर्थ ईस्ट इंडिया की थी। यह बात होटल के लोग नहीं समझ सके और उन्हें लगा कि चाइनीज उनके होटल आ पहुंचे हैं1 मजे की बात तो यह है कि डर के मारे होटल के वेटर ने उन्हें खाना परोसने से इंकार कर दिया। जब उसे इस बात का भरोसा दिलाया गया कि वह चाइनीज नहीं बल्कि नॉर्थ ईस्ट इंडिया से हैं तब जाकर वेटर ने उन्हें खाना परोसा। हालाकि यह नॉर्थ ईस्ट से आए उनक लोगों के लिए थोड़ा इम्बैरेसिंग था मगर, वह भी कोरोना वायरस की गंभीरता और उससे फैले डर को समझ चुपचाप अपना लंच करने लगे।
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मैं खुद भी पूरे इंतजाम कर के वृंदावन गई थी। हैंड सैनिटाइजर और मास्क मैंने वृंदावन की होली को आनंद उठाते वक्त मिनट भर के लिए भी खुद से दूर नहीं किए। जहां भीड़ दिखी मास्क चढ़ा लिया और जहां नौबत हाथ मुंह, नाक आंख पर लगाने की आई वहां मैंनें तुरंत ही सैनिटाइजर का इस्तेमाल किया। मैंने पॉकेट साइज सोप भी अपने पास ही रखा था और मौका मिलते ही मैं हैंड वॉश कर लेती थी। खुद को सेफ रखने के साथ ही मैंने वृंदावन में जगह-जगह मिल रहे नारियल पानी का भी खूब सेवन किया। नारियल पानी आपकी इम्यूनिटी को बूस्ट करता है। इंडिया की इन ऑफबीट जगहों पर लें रंगभरी होली का मजा
कोरोना वायरस के डर के बावजूद वृंदावन में आए कृष्ण भक्तों की भक्ती में कोई कमी नजर नहीं आई। यहां देशी के साथ कई विदेशी भी नजर आए। हालाकि इनकी संख्या इक्का-दुक्का ही थी। शायद कोरोना वायरस की वजह से इन्हें वृंदावन में एंट्री ही नहीं दी गई थी। वृंदावन के मुख्य बांकेबिहारी मंदिर में भी विदेशी नजर नहीं आ रहे थे। इसके दो कारण हो सकते हैं। पहला कोरोना वायरस का डर और दूसरा यहां हिंदू श्रद्धालुओं की भीड़ देख वह खुद ही हिम्मत नहीं जुटा पा रहे होंगे। हालाकि कुछ दिन पहले कोरोना वायरस के डर से यह खबरें जरूर आई थीं कि वृंदावन के इस्कॉन टेम्पल में किसी भी विदेशी श्रद्धालू को एंट्री नहीं दी जाएंगी मगर, सबसे ज्यादा विदेशी श्रद्धालू इस्कॉन टेम्पल में ही नजर आए। हालाकि इनमें से बहुत सारे विदेशी श्रद्धालू सालों से भारत में ही रह रहे हैं और इस्कॉन टेम्पल का ही हिस्सा बन चुके हैं। वृंदावन के इस्कॉन टेम्पल में शायद यही वजह थी देशी श्रद्धालुओं की भीड़ यहां नजर ही नहीं आईं। ऐसा ही कुछ आलम वृंदावन के प्रेम मंदिर में भी देखने को मिला। यहां भी श्रद्धालुओं की कम ही भीड़ थी। जो लोग यहां आए भी थे उनमें ज्यादातर लोग मास्क पहने ही नजर आ रहे थे।
सबसे खतरनाक वायरस में से एक Coronavirus (COVID-19) अब दुनिया भर में फैल चुका है। आंकड़ों की माने तो दुनिया के लगभग 70 से ज्यादा देश कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके हैं। 94000 से ज्यादा लोग इस वायरस के चलते अस्पताल पहुंच चुके हैं। केवल चीन में 80000 से ज्यादा लोग इस वायरस के मरीज हो चुके हैं और 3000 से ज्यादा लोगों की मौत का कारण कोरोना वायरस बन चुका है। भारत में भी अब यह संख्या 40 के करीब पहुंच चुकी है। हो चुकी है। इस वायरस को SARS वायरस की श्रेणी में इसे रखा गया है और अभी भी इसे लेकर रिसर्च चल रही है। आपको बता दें कि यह संक्रमण दिसंबर में चीन के वुहान में शुरू हुआ था। डब्लूएचओ के मुताबिक, बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ इसके लक्षण हैं। Holi Horoscope 2020: जानें राशि के अनुसार कौन सा रंग होगा आपके लिए शुभ
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