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kushmanda devi temple history and how to reach

अद्भुत है मां कुष्मांडा देवी का यह मंदिर, दर्शन मात्र से पूरी होती है मुराद

इस लेख में कुष्मांडा देवी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि सिर्फ दर्शन मात्र से सभी भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है।  
Editorial
Updated:- 2023-03-12, 21:22 IST

हिन्दू धर्म में चैत्र नवरात्र एक बेहद ही पवित्र और प्रसिद्ध त्यौहार है। देश के लगभग हर राज्य में चैत्र नवरात्र को बड़े ही धूम धाम के साथ मनाया जाता है। इस पावन त्यौहार के मौके पर हर दिन मां दुर्गा के अलग-अलग रूप की पूजा होती है।

चैत्र नवरात्र के चौथे दिन मां दुर्गा के 'कुष्मांडा' रूप की पूजा होती है और भक्त दर्शन के लिए प्रसिद्ध कुष्मांडा मंदिर में सुबह से लाइन में खड़े रहते हैं। ऐसे में अगर आपसे यह पूछा जाए कि भारत के किस स्थान पर कुष्मांडा मां का फेमस मंदिर है तो फिर आपका क्या जवाब होगा?

इस लेख में हम आपको भारत में मौजूद उस कुष्मांडा मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां सबसे अधिक भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं। आइए जानते हैं।

कुष्मांडा मंदिर कहां है?

kushmanda devi temple

कुष्मांडा मंदिर की पौराणिक कथा और कहानी जानने से पहले यह जान लेते हैं यह मंदिर भारत के किस राज्य और शहर में मौजूद है। यह पवित्र और फेमस मंदिर भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक यानी उत्तर प्रदेश में है।

जी हां, मां कुष्मांडा मंदिर यह पवित्र मंदिर उत्तर प्रदेश के सागर-कानपुर के बीच घाटमपुर में स्थित है। कहा जाता है कि यहां कुष्मांडा देवी लेटी हुई मुद्रा में हैं।

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कुष्मांडा मंदिर का इतिहास

कुष्मांडा मंदिर के इतिहास के बारे में जिक्र होता है तो यह कहा जाता है कि यह काफी प्राचीन मंदिर है। कई लोगों का मानना है कि लगभग 1783 में फारसी भाषा में लिखी गई पांडुलिपि में इस मंदिर का जिक्र था।

कई लोगों का मानना है कि लिखी गई पांडुलिपि जिसका नाम 'ऐश अफ्जा' था और उसमें माता कुष्मांडा और माता भद्रकाली के स्वरूपों का वर्णन किया गया है। कानपुर के प्राचीन लेखकों द्वारा भी इस मंदिर का जिक्र किया गया था।(इन मंदिरों में जाते ही निकल जाती है चीख)

कुष्मांडा मंदिर की पौराणिक कथा

about kushmanda devi temple

कुष्मांडा मंदिर की पौराणिक कथा बेहद ही दिलचस्प है। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि एक चरवाहा मंदिर के आसपास गाय चराने के लिए जाता था। गाय झाड़ियों के पास खड़ी होकर हर रोज अपना दूध गीरा दिया करती थी।

जब यह मालूम किया गया तो एक दिन चरवाहा को सपने में मां दिखाई दी और झाड़ियों के खुदाई करने को कहा। जब खुदाई हुई तो मां कुष्मांडा की प्रतिमा मिली और उस स्थान पर छोटा सा मंदिर का निर्माण किया गया। इसके अलावा कई लोगों का मानना है कि लगभग 1988 के आसपास से इस मंदिर में अखंड ज्योति निरंतर प्रज्ज्वलित हो रही है।

मंदिर का पानी है रहस्यमयी

जी हां, इस मंदिर का पानी लाखों भक्तों के लिए रहस्यमयी बना हुआ है। मान्यता है कि मंदिर में अर्पित किया जाने वाला पानी कई दुखों का निवारण करता है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर में अर्पित किए हुए पानी को आंखों में लगाते हैं तो आंखों को रोशनी बढ़ जाती है। आपको बता दें कि नवरात्र के दिनों में यहां मेला भी लगता है।(गुरुद्वारों में रहने और खाने की है फ्री व्यवस्था)

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कुष्मांडा मंदिर कैसे पहुंचें

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कुष्मांडा मंदिर पहुंचना बहुत आसान है। इसके लिए देश के किसी भी कोने से कानपुर पहुंच सकते हैं। कानपुर पहुंचने के बाद कैब या टैक्सी लेकर मंदिर तक पहुंच सकते हैं। इसके अलावा कानपुर से घाटमपुर स्टेशन उतरकर भी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

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