हर व्यक्ति की ईश्वर के प्रति अपनी एक अलग आस्था होती है और वे अपने ही तरीके से उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। अधिकतर लोग मंदिर में दर्शन करते हैं और भगवान को तरह-तरह का भोग-प्रसाद लगाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी किसी से सुना है कि भक्तों ने अपने ईश्वर से चिट्ठी लिखकर अपनी इच्छापूर्ति की मनोकामना की हो।
जी हां, लेकिन कर्नाटक के प्रसिद्ध हसनंबा मंदिर में ऐसा ही होता है। यह मंदिर कई मायनों में बेहद ही विशेष है। सबसे पहले तो यह मंदिर साल में केवल सप्ताह के लिए खुलता है, वहीं दूसरी ओर यहां पर आने वाले सभी भक्त चिट्ठी लिखकर भगवान को अर्जी देते हैं। इस मंदिर की विशिष्टता के कारण देशभर के कोने-कोने से भक्तगण यहां पर दर्शन हेतु आते हैं। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको हसनंबा मंदिर की विशेषताओ के बारे में बता रहे हैं।
हसनंबा मंदिर यह साल में केवल एक बार दिवाली के दिन खुलता है। इस मंदिर में देवी हसनंबा की पूजा की जाती है। इस दौरान विशेष हसनंबा जात्रा महोत्सव भी मनाया जाता है। इस मंदिर के आखिरी दो दिनों में विशेष अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है। इस समय इसे आम श्रृद्धालुओं के लिए बंद कर दिया जाता है।
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अभिलेखों के अनुसार, इस खास मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि हसनंबा मंदिर होयसल वंश के राजाओं द्वारा 12वीं शताब्दी द्वारा बनवाया गया था। वहीं, मुख्य द्वार पर जो गोपुरम स्थित है, वह 12वीं शताब्दी के बाद का है। इसकी पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है। (वाराणसी के काल भैरव मंदिर के बारे)
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इस मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि जब यह मंदिर खुलता है तो लोग ईश्वर से प्रार्थना करने और उन तक अपने मन की बात पहुंचाने के लिए चिट्ठियों का सहारा लेते हैं। आम श्रद्धालुओं की यह मान्यता है कि ईश्वर को चिट्ठी लिखने से वे जल्द ही उनकी मनोकामना पूरी करते हैं।
कर्नाटक का यह हसनंबा मंदिर अपने विशिष्ट चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है। दरअसल, जब इस मंदिर के कपाट फिर से बंद किए जाते हैं, तब यहां पर प्रसाद चढ़ाने के साथ-साथ दीपक व फूल भी अर्पित किए जाते हैं। जब एक साल बाद मंदिर के कपाट खोले जाते हैं, तब यह दीपक जलता हुआ ही पाया जाता है। साथ ही साथ, माता को अर्पित किए गए फूल भी ऐसे ही ताजे रहते हैं।
इस मंदिर से जुड़ी किंवदंतियों के अनुसार, एक बार सात मातृकाएं ब्राह्मी, महेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इंद्राणी और चामुण्डी पृथ्वी की यात्रा कर रही थीं, तो वे यहां आईं और यहां की सुंदरता देखकर मंत्रमुग्ध हो गईं। ऐसे में उन्होंने यहीं पर बसने का फैसला किया। जबकि वराही और चामुंडी ने देवीगेरे होंडा, वैष्णवी, कौमारी और माहेश्वरी में तीन कुओं के पास रहने का फैसला किया। इस तरह इस स्थल को बेहद ही पवित्र माना जाता है।
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Image Credit- wikimedia
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