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वाराणसी के काल भैरव मंदिर के बारे में कितना जानती है आप, जहां प्रसाद में चढ़ती है मदिरा

आइए इस लेख में जानें वाराणसी के काल भैरव मंदिर से जुड़े कुछ ऐसे रोचक तथ्य जो आपने पहले नहीं सुने होंगे।   
Editorial
Updated:- 2021-06-01, 16:53 IST

हमारा देश मुख्य रूप से मंदिरों का देश है। यहां अलग -अलग देवी देवताओं की पूजा करने का विधान है और पूरे श्रद्धा भाव से मंदिरों में भगवान् की पूजा अर्चना की जाती है। यहां अलग-अलग देवी देवताओं के न जानें कितने मंदिर बने हुए हैं जिनका धार्मिक महत्त्व भी अलग है।

हर मंदिर की कुछ न कुछ ख़ास विशेषता है। मुख्य रूप से वाराणसी को मंदिरों की नगरी के रूप में जाना जाता है। वाराणसी के प्रत्येक मंदिर की अलग विशेषता है। यहां स्थित मंदिरों में से एक प्रमुख मंदिर है काशी का काल भैरव मंदिर। इस मंदिर की सबसे ख़ास और चौंका देने वाली बात है कि यहां भैरव जी को प्रसाद स्वरुप मदिरा यानी कि शराब चढ़ाई जाती है। आइए जानें इस मंदिर से जुडी कुछ और ख़ास बातें जो आपने पहले नहीं सुनी होंगी।

काशी के हैं क्षेत्रपाल

kal bhirav temple

काल भैरव मंदिर एक हिन्दू मंदिर है जो कि भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित है। यह मंदिर वाराणसी का सबसे पुराना मंदिर है जो कि भगवान शिव के उग्र रूप यानी कि काल भैरव को पूर्णतयः समर्पित है। काल का अर्थ मृत्यु व समय होता है। ऐसा कहा जाता है भगवान शिव इस रूप को तभी धारण करते थे जब किसी की वध करना होता था। काशी भगवान शिव की अति प्रिय नगरी थी इसलिए भगवान शिव ने काल भैरव को यहां का क्षेत्रपाल यानी कोतवाल नियुक्त किया था। इसलिए कहा जाता है कि काल भैरव को काशी वासियों को दण्ड देने का भी अधिकार है। मंदिर के गर्भगृह में काल भैरव की चांदी की मूर्ति है, जो कि भैरव के वाहन कुत्ता पर विरामान है।

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कब हुआ था निर्माण

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काल भैरव मंदिर के निर्माण की सही जानकारी नहीं है। परन्तु वर्तमान मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में किया था। ऐसा माना जाता है कि उत्तर भारत पर इस्लामवादी विजय से पुराने मंदिर का नष्ट कर दिया गया था, तथा 17वीं शताब्दी में इस मंदिर का पुनः निर्माण किया गया था। मान्यता है कि काल भैरव को, भगवान शिव ने इसलिए काशी का कोतवाल नियुक्त किया था जिससे वो माता सती के पिंड कि रक्षा कर सकें। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता सती के शरीर का एक हिस्सा पिंड रूप में काशी में गिरा था, जो माता के 51 शक्ति पीठों में से एक है। जिस जगह पर शरीर का हिस्सा गिरा था, वह स्थान विशालाक्षी मंदिर के नाम से जाना जाता है।

प्रसाद में चढ़ाई जाती है मदिरा

ऐसी मान्यता है कि मंदिर में भैरव जी को प्रसाद के रूप में मदिरा चढ़ाई जाती है। जो भक्त मदिरा चढ़ाते हैं उन्हें शुभ फलों की प्राप्ति होती है और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंदिर सुबह 5 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक और शाम 4:30 बजे से रात 9:30 बजे तक खुला रहता है। नवंबर में पूर्णिमा के बाद आठ दिन एक शुभ दिन माने जाते हैं और मंदिर के अनुष्ठान देखे जा सकते हैं।

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भैरव मंदिर में क्या है ख़ास

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मंदिर का प्रवेश द्वार संकरा है और प्रवेश द्वार से भैरव देवता को देखा जा सकता है। देवता के लिए तिल का तेल और फूल खरीदना एक प्रसिद्ध गतिविधि है, लेकिन अनिवार्य नहीं है। मंदिर के बाहर फूल व अन्य सामान खरीदने की दुकानें हैं। कई अन्य मंदिरों के विपरीत, भगवान को शराब की पेशकश की जाती है। मंदिर के भीतरी गर्भगृह में प्रवेश मंदिर के पीछे की ओर है और केवल पुजारी ही प्रवेश कर सकते हैं। भैरव भगवान को उनके आकाशीय वाहन, कुत्ते के साथ देखा जाता है।

भैरव नाथ या भगवान शिव के बाल रूप को बटुक भैरव के रूप में पूजा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव की तीसरी आंख से भगवान का जन्म हुआ था। मंदिर कई शताब्दियों के लिए वाराणसी के इतिहास से जुड़ा है और मंदिर वास्तव में कब बनाया गया था, इसका कोई विवरण नहीं है। इसके अलावा मंदिर से जुड़े कई चमत्कार हैं जिन्हें लोककथाओं के रूप में सुना जा सकता है। इन सभी चमत्कारों और भगवान् भैरव की कृपा पाने के लिए आपको इस मंदिर के दर्शन एक बार जरूर करने चाहिए।

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Image Credit: shutterstock

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