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शाहजहां ने ऐसी मिठाई बनाने का हुक्म सुनाया था, जो दिखे ताजमहल जितनी सफेद, जानिए उस फेमस मिठाई का नाम

मिठाइयां आप बड़े चाव से खाती होंगी। आपकी फेवरेट मिठाइयों के पीछे एक ऐसा दिलचस्प इतिहास है, जिसके बारे में जानकर आपको काफी मजा आएगा। 
Editorial
Updated:- 2020-04-18, 14:22 IST

भारत में हर शुभ अवसर पर मिठाइयां खाने की परंपरा चली आ रही है। मिठाई का स्वाद हर जगह रिश्तों में भी मिठास घोल देता है। मिठाई के बिना देश का कोई भी उत्सव पूरा नहीं होता। माना जाता है कि देवताओं को भी मिठाई बहुत प्रिय है। उदाहरण के लिए गणेश जी को मोदक पसंद है तो हनुमान जी को लड्डू, शिव जी को ठंडाई पसंद है तो भगवान कृष्ण को पेड़ा। कुछ मिठाइयां सदियों पुरानी हैं तो कुछ के प्रचलन के पीछे मजेदार कहानियां हैं। आइए आज हम ऐसी ही कुछ दिलचस्प कहानियों के बारे में जानते हैं-

गुलाब जामुन

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तीज-त्योहार और फंक्शन्स में जब गुलाब जामुन सामने आता है तो महिलाएं झटपट चट कर जाती है। लेकिन क्या आप जानती हैं कि गुलाब-जामुन का भी अपना एक इतिहास है। शायद आप हैरान हों, लेकिन पर्शिया (वर्तमान में ईरान) से आई यह मिठाई दरअसल एक अरेबिक डैजर्ट लुकमत-अल-कादी से उपजी है। इसका अर्थ है 'जज की बाइट'। यह डैजर्ट मुगल काल में काफी ज्यादा प्रचलित हुआ करता था और बाद में इसे गुलाब जामुन का नाम दे दिया गया। इसमें पर्शियाई शब्द गुल (फूल), अब (पानी) और जामुन (भारतीय फल, जिसका आकार और लुक इस मिठाई जैसा ही होता है।)

रसगुल्ला

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चाश्नी वाली यह स्वीट डिश बंगाल का प्रसिद्ध डैजर्ट है। बंगाली त्योहार और उत्सव में रसगुल्ले का होना महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे छेना या घर के बने पनीर से बनाया जाता है। इसका मूल नाम 'खीर मोहना' है और इसका मूल उड़ीसा से माना जाता है। यह भी माना जाता है कि यह मिठाई सदियों पुरानी है और भगवान में इसे काफी चाव से खाया करते थे। दंतकथाओं के अनुसार भगवान जगन्नाथ जब रथयात्रा के लिए जा रहे थे, तब लक्ष्मी उनके साथ नहीं आई थीं। लक्ष्मी जी उनसे नाराज थीं और उन्हें मनाने के लिए भगवान जगन्नाथ ने उन्हें रसगुल्ला खिलाया था। तभी से रथयात्रा के नौवें दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए उन्हें रसगुल्ला भेंट किया जाता है। इस दिन लक्ष्मी जी को मिठाई चढ़ाने के बाद ही भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा को मंदिर में प्रवेश मिलता है। 

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आगरा का पेठा

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आगरा सिर्फ ताजमहल और अपने पागलखाने के लिए ही दुनियाभर में चर्चित नहीं है, यहां का पेठा भी खासा लोकप्रिय है। पेठा मुगल साम्राज्य के समय से ही काफी पसंद किया जाता रहा है। दरअसल शाहजहां ने हुक्म सुनाया था कि एक ऐसी मिठाई बनाई  जाए तो इतनी सफेद दिखे, जितना कि ताजमहल दिखता है। इसके बाद इस मिठाई को बनाने के लिए 500 लोग लगा दिए गए थे। यह भी माना जाता है कि पेठा ताजमहल जितना ही पुराना है, क्योंकि यह ताजमहल बनाने वाले 21,000 मजदूरों के लिए बनाया गया था ताकि उनमें इंस्टेंट एनर्जी आ जाए। पेठा को भगवान की मिठाई भी कहा जाता है क्योंकि यह दुनिया की सबसे पवित्र स्वीटमीट मानी जाती है। कद्दू, चीनी और पानी से मिलकर यह लजीज मिठाई तैयार की जाती है।  

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शाही टुकड़ा

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इस डैजर्ट का उदय भी मुगल काल से ही माना जाता है। क्रिस्पी, वेल्वेट वाला शाही टुकड़ा डीप फ्राई ब्रेड्स से बनता है। यह अस्तित्व में कैसा आया, इसके पीछे एक मजेदार कहानी है। माना जाता है कि एक राजा और उसका सिपाही नील नदी के किनारे खाने की तलाश में थे। गांव वाले यह सुनकर बहुत रोमांचित हो गए और वे अपने स्थानीय कुक उम्म अली को साथ लेकर आ गए, जिसे राजा के लिए खाना तैयार करना था। चूंकि उनके पास बहुत ज्यादा सामान नहीं था, उन्होंने कुछ बासी ब्रेड ली और उन्हें नट्स, क्रीम, चीनी और दूध वाली गाढ़ी ग्रेवी में डिप कर दिया। राजा और उसका सिपाही दोनों को जोरों की भूख लगी थी, सो उन्हें यह डिश काफी ज्यादा पसंद आई। इससे उन्हें इंस्टेंट एनर्जी मिल गई। क्योंकि यह शाही परिवार के लिए बनाई गई थी, इसीलिए इसका नाम शाही टुकड़ा पड़ गया। 

 

मैसूर पाक

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इस मिठाई में चना दाल, घी और चीनी मुख्य रूप से पड़ते हैं। यह मिठाई 17-18वीं सदी के समय की दक्षिण भारतीय डिश मानी जाती है। इसे त्योहारों और उत्सवों में विशेष रूप से बनाया जाता है। माना जाता है कि राजा कृष्ण वड्यार के समय में शाही घराने के खानसामा काकासूरा मदप्पा ने पहली बार यह मिठाई बनाई थी। इस मिठाई की कहानी कुछ इस तरह है- राजा लंच करने के लिए तैयार थे, लेकिन उनकी थाली में एक कोना खाली था। इसे भरने के लिए खानसामा ने चने, घी और चीनी से यह मिठाई बना दी और ठंडी होने के लिए रख दी। जब राजा ने अपना खाना खत्म कर लिया, तब उनके लिए यह मिठाई पूरी तरह से तैयार थी। राजा के मिठाई मुंह में रखते ही यह घुल गई और उन्हें काफी टेस्टी लगी। उन्होंने एक और पीस मिठाई मांगी और इसका नाम पूछा। मदप्पा घबराए हुए थे और उन्होंने इसका नाम मैसूर पाका बता दिया और तभी से यह मिठाई एक शाही डैजर्ट के तौर पर प्रचलित हो गई। इसकी प्रसिद्धि आज भी बरकरार है।  

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