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तंदूरी फूड भारत में कैसे हुआ फेमस, जानिए इसका दिलचस्प इतिहास

अगर आपको चिकन टिक्का, पनीर टिक्का और नान जैसे तंदूरी फूड का स्वाद बेहतरीन लगता है तो जानिए भारत में कैसे हुई तंदूरी फूड की शुरुआत। 
Editorial
Updated:- 2020-01-14, 15:27 IST

भारत में ट्रडिशनल फूड आइटम्स का स्वाद दुनियाभर से अलग होता है, क्योंकि उन्हें खास तरीके से तैयार किया जाता है। अगर  तंदूरी फूड की बात करें तो इसका स्वाद मुंह में पानी ला देता है। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, तुर्की, अफगानिस्तान, बालकन देश, मिडल ईस्ट, मध्य एशिया, उत्तर-पश्चिमी भारत और पूर्वी पाकिस्तान में तंदूरी फूड का बहुत ज्यादा क्रेज देखने को मिलता है। इतिहासकारों का मानना है कि तंदूरी फूड खाने का प्रचलन 2000 से 3000 ईसा पूर्व के बीच शुरू हुआ। सिंधु घाटी और हड़प्पा सभ्यताओं में भी इसके प्रमाण मिलते हैं। इस सभ्यताओं से जुड़े स्थलों पर तंदूर के अवशेष मिले हैं। इस समय में आयुर्वेद की यह अवधारणा प्रचलित हुई कि हम जो भी खाना खाते हैं, वह हमारे दिमाग और शरीर को प्रभावित करता है। इसीलिए यह खाना प्राकृतिक और संतुलित होना चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार खाने में 6 तत्व होने चाहिए -नमकीन, खट्टा, मीठा, कड़वा, कसैला और एस्ट्रिंजेट। 

मुगल लाए तंदूर का नया वर्जन

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हालांकि भारत में तंदूर का नया वर्जन लाने का श्रेय मुगलों को जाता है। पहले भारत में जमीन के अंदर तंदूर बनाए जाते थे, लेकिन जहांगीर के समय में  Portable tandoor का आविष्कार हुआ। माना जाता है कि जहांगीर जहां भी जाते थे, उनके रसोइए तंदूर के साथ साथ में पहुंच जाते थे। 

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गुरुनानक देव जी ने शुरू किया सांझा चूल्हा

तंदूर को लोकप्रिय बनाने में गुरुनानक देव जी का भी अहम योगदान रहा। उन्होंने तंदूर के इस्तेमाल को काफी ज्यादा बढ़ावा दिया। जात-पात का भेदभाव मिटाने और लोगों के बीच प्रेम और सद्भाव का संदेश देने के लिए गुरुनानक जी ने 'सांझा चूल्हा' अपनाने की बात कही। यानी ऐसा चूल्हा, जिस पर आसपड़ोस के लोग साथ में खाना बनाएं और खाएं। इस नई शुरुआत से ना सिर्फ लोगों के बीच की दूरियां घटीं, बल्कि आसपड़ोस की महिलाओं को एक-दूसरे से मिलने के लिए नया मौका भी मिल गया।  

 

दिल्ली में इस तरह प्रचलित हुआ तंदूर

भारत में तंदूर 1947 से पहले बहुत ज्यादा कॉमन नहीं था। आजादी मिलने के समय में यहां बहुत से पंजाबी शरणार्थी आए और अपने साथ वे तंदूर भी लेकर आए। इसके बाद से दिल्ली में तंदूरी फूड लोकप्रिय होने लगा।

 

तंदूरी खाना सीधे आग में पकाया जाता है और लंबे वक्त तक ज्यादा तापमान में रहने की वजह से तंदूरी खाने में अलग ही तरह का स्वाद मिलता है। तंदूर के भीतर लगभग 900 डिग्री फारेनहाइट का तापमान होता है। आग पर पकाये जाने से सब्जियों और नॉन वेज आइटम्स का स्वाद और भी ज्यादा बढ़ जाता है।

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जवाहर लाल नेहरू को पसंद था तंदूरी चिकन

जवाहर लाल नेहरू की बात करें तो वह नान के साथ तंदूरी चिकन खाना पसंद करते थे। जब दुनियाभर की प्रसिद्ध शख्सीयतें उनसे मिलने पहुंचती थीं, तो वे उन्हें भी अपने फेवरेट फूड का स्वाद चखाते थे। तंदूरी फूड में चिकन टिक्का, कबाब, फिश टिक्का, पनीर टिक्का, नान, तंदूरी रोटी और कुलचा जैसे फूड आइटम्स बहुत स्वाद लगते हैं।

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मैरिनेशन से बढ़ जाता है तंदूरी फूड का स्वाद

तंदूरी स्टाइल में बने फूड आइटम्स का स्वाद बढ़ाने में मैरिनेशन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इस विधि से तैयार किए जाने वाले फूड आइटम्स को आमतौर पर दो बार मैरिनेट किया जाता है। मैरिनेट की जाने वाली लगभग सभी डिशेज में दही का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही फूड आइटम का फ्लेवर बढ़ाने के लिए हर्ब्स का भी इस्तेमाल किया जाता है। मीट और चिकन जैसे नॉन वेज आइटम्स का परफेक्ट स्वाद पाने के लिए उन्हें घंटों मैरिनेट किया जाता है। 

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