अमृता शेरगिल साल 1913 में 30 जनवरी को बुडापेस्ट में पैदा हुई थीं। उनके पिता भारतीय मूल के थे और मां हंगरी की। अमृता ने शुरुआती पढ़ाई आर्ट्स में की थी और इस दौरान वह पैरिस में थीं। लेकिन बाद में अमृता भारत लौट आईं क्योंकि उनका मानना था कि बतौर पेंटर उनका भविष्य भारत में है। अमृता शुरुआत से ही विद्रोही थीं और उन्होंने अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जी। अमृता का रहने का अंदाज अलहदा था और उनकी प्रेम कहानियां अक्सर सुर्खियों में रहती थीं।
कला की इतिहासकार यशोधरा डालमिया ने अपनी बायोग्राफी Amrita Sher-Gil: A Life में अमृता की जीती जागती तस्वीर पेश की है। अमृता साल 1941 में 28 साल की उम्र में ही चल बसी थीं। लेकिन अपने पीछे अमृता ने ऐसी टॉप क्लास पेंटिंग्स छोड़ी, जिनकी प्रशंसा आज भी की जाती है। अमृता की बेहतरीन पेंटिंग्स ने उन्हें सदी के सबसे प्रसिद्ध पेंटर्स में शुमार कर दिया। उनकी पेंटिंग्स पूर्व और पश्चिम के संगम का बेहतरीन उदाहरण है।
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अमृता शेरगिल की पंडित जवाहर लाल नेहरू से मुलाकात दिल्ली में हुई थी। इतिहासकार डालमिया के अनुसार शेरगिल को पंडित जी से मिलना काफी अच्छा लगा था। नेहरु जी को अमृता की पेंटिंग्स बहुत अच्छी लगी थीं और यहीं से इनकी दोस्ती की शुरुआत हो गई। कुछ मुलाकातों और लेटर्स के एक्सचेंज के बावजूद अमृता ने कभी नेहरू जी की तस्वीर नहीं बनाई। जब इकबाल सिंह, जो अमृता के करीबी दोस्त थे, जिनसे अमृता की मुलाकात 1937 में हुई थी, ने अमृता से पूछा था कि उन्होंने नेहरू जी की तस्वीर क्यों नहीं बनाई तो अमृता का जवाब था कि वह नेहरू जी की तस्वीर कभी नहीं बनाएंगी, क्योंकि वो बहुत ज्यादा खूबसूरत दिखते हैं।'
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डालमिया के शब्दों में 'नेहरू जी और अमृता की दोस्ती कितनी गहरी थी, इस बारे में कुछ स्पष्ट तरीके से कहा नहीं जा सकता, क्योंकि नेहरू जी की कई चिट्ठियों को अमृता के पेरेंट्स ने जला दिया था, जब बुडापेस्ट में उनकी शादी हो रही थी।'
इस पर अमृता अपने पेरेंट्स से काफी ज्यादा नाराज हुई थीं। अमृता ने अपने पिता को लिखा था, 'मैंने वहां वो चिट्ठियां इसलिए नहीं छोड़ी थीं क्योंकि वो मेरे गुजरे अतीत की गवाह थीं, मैंने उन्हें सिर्फ इसलिए छोड़ा था, क्योंकि मैं अपना विदेश जाते हुए अपना सामान बढ़ाना नहीं चाहती थी। लेकिन मुझे लगता है कि अपना बुढ़ापा मुझे उन प्यार भरी चिट्ठियों के बगैर ही बिताना पड़ेगा, जिनसे मुझे खुशी का अहसास होता।'
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