दिल्ली में ऐसी कई ऐतिहासिक इमारतें और रहस्यमयी वस्तुएं मौजूद हैं जो हम सभी को अतीत काल से जुड़ने का मौका देती हैं। यह शहर अपने भीतर ऐसी कई चीजों को समेटे हुए है, जो इस भागदौड़ भरी दुनिया से परे हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं कनॉट प्लेस में स्थित प्राचीन बावड़ी अग्रसेन की बावली के बारे में। लाल बलुआ पत्थर से बना यह स्थल बेहद ही खूबसूरत है और आप जितना इसके अदंर जाएंगे उतना ही बाहरी दुनिया से दूर हो जाएंगे। ऐसे ही कई रहस्यमयों से जुड़े इस स्थल के बारे में आज हम आपको कुछ रोचक तथ्य बताएंगे, जिन्हें शायद आप न जानते हों।
महाराज अग्रसेन राम के पुत्र कुश के वंशज है और उनका जन्म भगवान राम के बाद 35वीं पीढ़ी में हुआ था। महाराजा अग्रसेन व्यापारियों के शहर अग्रोहा के राजा थे, जिन्होनें उत्तर भारत में अग्रोहा शहर की स्थापना की थी। उन्हें शांति का दूत माना जाता था और वह अंहिसा के सख्त विरोधी थे। इसके अलावा महाराजा अग्रसेन यज्ञों के दौरान जानवरों की बली चढ़ाने के भी खिलाफ थे। उनके इसी महान विचारों के चलते साल 1976 में भारत सरकार द्वारा महाराजा अग्रसेन को सम्मान देने के लिए डाक टिकट भी जारी किया गया था।
दिल्ली की सबसे प्रसिद्ध बावली अग्रसेन की बावली को दूर-दूर से लोग देखने आते हैं। इस बावली को 14वीं शताब्दी के दौरान महाराजा अग्रसेन ने बनवाया था। ऐतिहासिक रिकॉर्ड के अनुसार अग्रसेन की बावली को दोबारा अग्रवाल समुदाय ने पुरानी बावड़ी के ऊपर बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि ये महाराज अग्रसेन के वंशज हैं। लाल बलुआ पत्थर से बनी यह बावली आर्किटेक्चर का एक बेहतरीन नमूना है। यह बावली 60 मीटर लंबी और जमीन पर 15 मीटर चौड़ी है। इसके साथ ही इस बावली में प्रवेश करने के लिए 3 दरवाजे हैं। इतिहासकारों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस बावली की शैली लोदी और तुगलक काल की ओर संकेत करते हैं।
दिल्ली की सबसे प्रसिद्ध अग्रसेन की बावली आर्किटेक्चर का एक बेहद ही शानदार नमूना है। बता दें कि इसमें तीन मंजिल हैं , जिसमें 108 सीढ़ियां हैं जो कुएं तक जाती हैं। क्योंकि देश भर में कई बावलियां मौजूद हैं, जिसकी वजह से अग्रसेन की बावली भी अन्य बावलियों से मिलती-जुलती है। इसके अलावा अग्रसेन की बावली में एक छोटी मस्जिद भी मौजूद है। यहमस्जिददेखने में काफी सुंदर है और बावली के अंदर मौजूद होने के कारण यह कई बार विवादों में भी घिर चुकी है।
इसके अलावा ऐसा कहा जाता है कि इस बावली के अंदर मौजूद काला पानी से लोग हिपनोटाइज हो जाते थे और वह सुसाइड कर लेते थे। हालांकि, इस बात के अभी तक कोई प्रमाण नहीं मिले हैं और अब इस बावली के अंदर मौजूद कुआं पूरी तरह से सूख चुका है।
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ऐसा कहा जाता है कि यह दिल्ली की सबसी डरावनी जगहों में से एक है। अग्रसेन की बावली में चमगादड़ और कबूतरों ने अपना डेरा डाला हुआ है। आस पास रहने वाले लोगों का कहना है कि वहां से अजीबो-गरीब आवाजें आती हैं और उन्होनें कई बार यहां भूतों को भी देखा है। हर कोई व्यक्ति इस जगह के बारे में अपनी अलग-अलग राय देता है। 108 सीढ़ियों वाली यह बावली तब अधिक डरावनी लगती है जब आप नीचे कुएं के पास पहुंच जाते हैं और फिर आपको आसमान नहीं दिखता है। इसके साथ ही आपके सिर के ऊपर केवल चमगादड़ और कबूतरों मंडराते हुए नजर आते हैं।
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पहले की समय में बावड़ियों को पानी की आपूर्ति के लिए बनवाया जाता था। अक्सर गांव के लोग इन्हीं बावड़ियों से पानी भरकर ले जाया करते थे। लेकिन सिर्फ पानी की आपूर्ति के लिए ही नहीं बल्कि जब पुराने समय में बारिश नहीं होती थी और गर्मी अधिक बढ़ जाती थी तो लोग बावड़ी के अंदर ही विश्राम करते थे। ऐसा इसलिए क्योंकि पानी और गहराई के कारण यह बावड़ियां ठंडी रहती थी।
कुछ समय से यह जगह बॉलीवुड के फिल्म डायरेक्टर्स के लिए बेहद खास बन चुकी है। ऐसा इसलिए क्योंकि अग्रसेन की बावली में कई बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग की गई है। बता दें कि पीके से लेकर सुल्तान तक कई फिल्मों की शूटिंग यहीं हुई थी। इस बावली के आर्किटेक्चर के कारण यह बॉलीवुड के फिल्म डायरेक्टर्स की लिस्ट में शुमार है।
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