‘ताज महल’ के बाद आगरा की मशहूर जगहों में से एक है जामा मस्जिद, दोनों को ही शाहजहां ने बनवाया था। कहा जाता है कि शाहजहां ने ताज को अपनी बेगम मुमताज की याद में और जामा मस्जिद को अपनी बेटी जहांआरा के लिए बनवया था।
जामा मस्जिद लाल पत्थर से बनी हुई है और इसे संगमरम से बनाया गया है। ताजमहल के बाद आगरा में यह भी एक देखने लायक स्थल है। ऐसा कहा जाता है कि इस मस्जिद में एक साथ 10 हजार लोग नमाज पढ़ सकते हैं और जब तक जामा मस्जिद में नमाज अदा करते रहेंगे तब तक जहांआरा की रूह को कयामत तक 70 गुना शबाब मिलता रहेगा।
जामा मस्जिद का निर्माण 1648 में हुआ था। यह मस्जिद भारत की विशाल मस्जिदों से एक है। साधारण डिजाइन से बने इस मस्जिद का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से किया गया है और इसे सफेद संगमरमर से सजाया गया है। मस्जिद की दीवार में प्रयुक्त टाइल्स को ज्यामितीय आकृति से सजाया गया है। मस्जिद 130 फुट लम्बी एवं 100 फुट चौड़ी है। जामा मस्जिद में लकड़ी एवं ईंट का भी प्रयोग किया गया है। ऊंची नींव पर बनी इस मस्जिद में प्रवेश के लिए पांच वक्राकार दरवाजे हैं। इसमें लाल बलुआ पत्थर से बने तीन विशाल गुबंद भी हैं। इसकी दीवार और छत पर नीले रंग के पेंट का प्रयोग किया गया है।
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जामा मस्जिद के बीच का प्रागंण इतना विशाल है कि यहां एक समय में 10 हजार लोग एक साथ नमाज पढ़ सकते हैं। इसके परिसर में महान सूफी संत शेख सलीम चिश्ती का मकबरा भी है। इतिहासकारों का कहना है कि राजवंश के महानतम और सबसे प्रसिद्ध मुगल सम्राट सम्राट अकबर का कोई वारिस नहीं था। उन्होंने सूफी संत से आशीषों की मांग की और संत के दिव्य अनुग्रह के माध्यम से एक पुत्र के साथ आशीष प्राप्त की। उन्होंने संत के नाम के बाद अपने बेटे सलीम का नाम रखा जिसके बाद अकबर सम्राट बने और प्रसिद्ध सम्राट जहांगीर के नाम से जाना जाता था। सच्ची आभार और सम्मान का प्रतीक होने के नाते, सम्राट अकबर ने सूफी संत और मस्जिद के सम्मान में एक शानदार शहर को समर्पित किया। सम्राट ने अपनी मृत्यु के बाद लाल बलुआ पत्थर से बना संत का एक शाही कब्र भी बनाया।
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बाद में सम्राट शाहजहां ने सफेद संगमरमर के साथ संत की दूसरी मकबरे बनाई। इस मस्जिद के नीचे तहखाने में जहांआरा की कब्र बनी हुई है। जिसका 20 वें रमजान पर उर्स मुबारक होता है। जादातर रोजेदार जहांरा की कब्र पर ही रोजा इफ्तार करते हैं।
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