दिल्ली में रहकर, अपने दोस्तों के साथ आप कितनी बावलियों में घूम चुकी हैं? चार या पांच बस.. क्या आपको पता है कि आज के समय में दिल्ली में लगभग दस बावलियां हैं। एक समय वो भी था, जब राजधानी में करीब सौ बावलियां होती थीं। अगर आज के दौर में, आपको सही अर्थों में इतिहास का पता लगाना है, तो दिल्ली अतीत से जुड़े कई शानदार किस्सों, कहानियों का खजाना है, जिसे शहर के लगभग हर कोने में देखा जा सकता है। दिल्ली ने अपनी मिट्टी पर न जाने कितनी राजधानियों को बनते-बिगड़ते देखा है और भारत के इतिहास पर की कई गजब कहानियों को इसने खुद में समेटा है।
इसी तरह से, बावली या स्टेप वेल, जो हजारों साल पहले बनाए गए थे, हमारा खजाना है और उस दौरा के अद्भुत इंजीनियरिंग कौशल का प्रदर्शन करता है। उस दौर में बावलियों में पानी संरक्षित किया जाता था। मगर आज कुछ में पानी सूख गया है, तो कुछ को बंद कर दिया गया है। आइए जानते हैं, दिल्ली की इन अनूठी बावलियों की कहानी।
निजामुद्दीन की बावली
हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के अहाते में यही बावली बनवाने का काम 14वीं सदी में शुरू हुआ था। इसका पानी अपनी चमत्कारिक शक्तियों को लेकर बड़ा प्रसिद्ध है। माना जाता है कि इसके पानी से कई रोग ठीक हो जाते हैं। इस बावली के पीछे एक दिलचस्प कहानी भी है। इसे जिस दौरान निजामुद्दीन औलिया बनवा रहे थे, उसी समय सुल्तान ग्यासुद्दीन तुगलक तुगलकाबाद का किला बना रहे थे और उन्होंने कारीगरों को कहीं और काम करने के लिए भी मना किया था। मगर कारीगरों ने रात में इसे पूरा करने की बागडोर संभाली और बावली तैयार हो गई।
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फिरोज शाह कोटला की बावली
सुल्तान फिरोज शाह ने किला कोटाल-ए-फिरोज शाही में एक बावली बनाई थी, जिसे उसी नाम से जाना गया। यह बावली एक पिरामिड के आकार वाली इमारत है। विक्रमजीत सिंह रूपराय की किताब ‘टॉप टेन बावलियां’ के अनुसार, यह दिल्ली में गोलाकार वाली एकमात्र बावली है। इसकी विशेषता यह है कि यह दिल्ली की अन्य बावलियों से अलग है। इसमें कुंआ इस तरह बनाया गया है कि उसने जलाशय का आकार ले लिया। इस बावली से जुड़ी भी अनेक दिलचस्प कहानियां आपको सुनने को मिलेंगी। कई कहानियों के मुताबिक इस बावली में जिन्न होने की बात भी सामने आई, जिसकी हालांकि पुष्टि नहीं हो पाई है।
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गंधक की बावली
कहा जाता है कि यह दिल्ली की सबसे पुरानी बावली है। मेहरौली स्थित अधम खां के मकबरे से लगभग 100 मीटर दक्षिण में है गंधक की बावली। इल्तुतमिश के शासन काल 1211-1236 के दौरान इसे बनाया गया था। इस बावली में गंधक की महक होने के कारण इस बावली का नाम ‘गंधक की बावली’ पड़ा। उस दौर में इसके पानी को बस पीने और खाने में उपयोग में लिया जाता था।
अग्रसेन की बावली
दिल्ली के दिल कहे जाने वाले कनॉट प्लेस के हैली रोड में 60 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा एक कुआं है, जिसे अग्रसेन बावली कहा जाता है। माना जाता है कि 15वीं शताब्दी में एक राजा, राजा अग्रसेन ने इसका निर्माण किया था। हालांकि इससे जुड़े ऐसी ऐतिहासिक जानकारी नहीं है। लेकिन आगे चलकर इसे अग्रवाल समुदाय द्वारा इसका जीर्णोद्धार कराया, जिसके बाद इसे 'अग्रसेन की बावली' के नाम से जाना जाने लगा।इसकी संरचना अनोखी है। इसे शहर के लिए पानी की आपूर्ति के लिए और लोगों के आराम के लिए बनाया गया था।
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Image credit : Art & Culture, Google
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