भारत में ऐसी कई प्राचीन और फेमस बावड़ी है, जो आज भी भारतीय इतिहास में काफी महत्व रखती है। भारत में इन बावड़ियों को मुख्य रूप से स्टेपवेल्स और बावली के रूप में भी प्रसिद्ध है। बावड़ियों को देखकर ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस तरह प्राचीन काल में पानी को इकट्टा करने के लिए हर राज्य और कस्बों में स्टेपवेल्स का निर्माण किया गया था। प्राचीन काल में प्रसिद्ध बावड़ीयां पानी की स्त्रोत होने के साथ-साथ वास्तुकला का भी एक अनोखा नमूना समझा जाता है।
आज के समय में भारत के लगभग सभी स्टेपवेल्स घूमने की एक बेहतरीन जगह होने के साथ-साथ पर्यटन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। राजस्थान और दिल्ली जैसे शहरों में ऐसी कई बावली है, जहां घूमने के लिए हर रोज हजारों सैलानी जाते रहते हैं। इन शहरों के हर बावली के साथ इतिहास के भी कई मिथक जुड़े हुए हैं, जिसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। अगर आप घूमने के साथ-साथ प्राचीन इतिहास के प्रेमी हैं, तो भारत के इन ऐतिहासिक और बेहद ही फेमस बावड़ियों को सफ़र से ज़रूर शामिल करना चाहिए।
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गुजरात में मौजूद रानी की वाव को इतिहास के सबसे प्राचीन और सबसे प्रसिद्ध स्टेपवेल्स माना जाता है। कहा जाता है लगभग तीस किलोमीटर लंबी सुरंग होने के साथ-साथ इस बावड़ी यह लगभग नौ सौ साल से भी अधिक प्राचीन है। कहा जाता है कि रानी उदयामति ने अपने पति और राजा भीमदेव प्रथम की स्मृति में इस बावड़ी का निर्माण करवाया था। शानदार नक्काशी और बेहतरीन वास्तुकला को देखते हुए साल 2014 में नेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थल घोषित किया था। यहां की दीवारों पर भगवान विष्णु के अवतार, राम, वामन आदि को बेहतरीन तरीके से दर्शाया गया है।(गुजरात के मुख्य धार्मिक स्थल)
अग्रसेन की बावली भारत की राजधानी दिल्ली में मौजूद सबसे प्राचीन और सबसे प्रसिद्ध बावली में से एक है। कहा जाता है कि इस बावली में लगभग एक सौ आठ सीढ़ियां है। कहा जाता है कि इस बावली का निर्माण अग्रसेन ने महाभारत काल के दौरान किया था, लेकिन इस बावली को तुगलक या लोदी वंश के साथ भी जोड़कर देखा जाता है। यहां उस समय पूरे राज्य के लिए पानी को इकट्टा करके रखा जाता था। आज के समय में दिल्ली में घूमने के लिए सबसे प्रसिद्ध और सबसे प्राचीन जगहों में से एक है अग्रसेन की बावली। कई फिल्मों की शूटिंग भी अग्रसेन की बावली में हुई है।
राजस्थान के अलवर में मौजूद नीमराना की बावली नीमराना में सबसे प्रमुख पर्यटक स्थल है। बहु-मंजिला बावली नीमराना महल के बगल में ही स्थित है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में यह बावली पानी और सिंचाई दोनों के लिए इस्तेमाल किया जाता था। राजपूत स्थापत्य कला और जल संरक्षण के लिए यह ऐतिहासिक जगहों में काफी मदद करती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह बावली नौ मंजिला बावली है। कहा जाता है कि यह बावली लगभग 335 साल से भी पुरानी है। एक अनुमान के तहत राजस्थान के अलग-अलग शहरों में लगभग तीन सौ से अधिक बावली है।
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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मौजूद शाही बाबड़ी का निर्माण अवध के नवाब आसफ-उद-दौला द्वारा कराया गया था। इसे इंडो-इस्लामिक वास्तुशिल्प का एक बेजोड़ नमूना माना जाता है शाही बाबड़ी को। कहा जाता है कि सबसे पहले इसे कुआं के रूप में खोदा गया और बाद में शहर में पानी की कमी को देखते हुए इसे बावड़ी के रूप में बना दिया गया। प्राचीन का में जल को संरक्षित किया जाता था और जल न मिलने पर इस बावड़ी से पानी निकालकर सबको दिया जाता था। कहा जाता है कि यह बावड़ी तीन मज़िला थी लेकिन, समय के साथ नष्ट होती चली गई।
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