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bansi narayan temple rakshabandhan significance and history

इस मंदिर का द्वार 365 दिन में सिर्फ रक्षाबंधन पर ही खुलता है, जानें वजह

भारत में एक ऐसा अनोखा मंदिर है जिसका द्वार सिर्फ रक्षाबंधन के दिन ही खुलता है। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में।
Editorial
Updated:- 2022-08-09, 17:21 IST

हिंदुस्तान की संस्कृति और अध्यात्म की चर्चा सिर्फ एक राज्य, शहर या जिले में नहीं बल्कि विश्व के कई देशों में ही है। अरुणाचल प्रदेश से लेकर गुजरात और जम्मू-कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक ऐसे लाखों प्राचीन मंदिर हैं जिनके बारे में हम और आप सुनते रहते हैं। इन मंदिरों की कहानी भी बेहद दिलचस्प होती हैं।

उत्तराखंड में भी एक ऐसा मंदिर है जिसकी कहानी आजकल बहुत चर्चा में है। मंदिर को लेकर बोला जा रहा है कि मंदिर का द्वार साल में सिर्फ एक बार ही खुलता है और वो भी रक्षाबंधन के दिन। लेख में हम आपको मंदिर का इतिहास और क्यों राखी के दिन ही खुलता है? आदि सवालों का जवाब देने जा रहे हैं। आइए जानते हैं।

वंशी नारायण जी का मंदिर

bansi narayan temple history in uttrakhand

जी हां, जिस मंदिर के बारे में हम आपसे जिक्र कर रहे हैं उसका नाम है वंशी नारायण मंदिर। समुद्रतल से लगभग 12 हज़ार से भी अधिक फीट की ऊंचाई पर मौजूद यह मंदिर उत्तराखंड की चमोली जिले में है। कहा जाता है कि जब भी राखी का दिन करीब होता है तो मंदिर के आसपास की जगहों की सफाई शुरू हो जाती है ताकि भक्त अच्छे से दर्शन कर सकें।(भारत के प्राचीन मंदिर)

इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि रक्षाबंधन के दिन सूर्योदय के साथ खुलता है और सूर्यास्त होते ही मंदिर के कपाट अगले 365 दिन के लिए बंद कर दिए जाते हैं। लेकिन जैसे ही मंदिर का द्वार खुलता है वैसे ही महिलाएं भगवान को राखी बंधना शुरू कर देती हैं और बड़े धूम-धाम के साथ पूजा भी करती हैं।

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वंशी नारायण से जुड़ी पौराणिक कथा

Why Bansi Narayan Temple Open Only In Raksha Bandhan

इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा है कि जब पाताल लोक से भगवान विष्णु धरती पर प्रकट हुए थे तो इसी स्थान पर हुए थे। पाताल लोक से धरती पर आने के पीछे भी एक पौराणिक कथा है।

ऐसी मान्यता है कि राजा बलि के अहंकार को नष्ट करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन का रूप धारण किया था और बलि के अहंकार को नष्ट करके पाताल लोक भेज दिया। जब बलि का अहंकार नष्ट हुआ तब उन्होंने नारायण से प्रार्थना की कि आप मेरे सामने ही रहे। इसके बाद विष्णु जी बलि का द्वारपाल बन गए।

जब बहुत दिनों तक विष्णु जी मां लक्ष्मी के पास नहीं पहुंचे तो लक्ष्मी जी पाताल लोग पहुंच गई और बलि की कलाई पर राखी बांधकर उन्हें विष्णु जी को मांग और लौटकर अपने लोक में पहुंच गए। तब से इस जगह को वंशी नारायण के रूप में पूजा जाने लगा।

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मंदिर से जुड़ी अन्य कहानी

Bansi Narayan Temple

वंशी नारायण मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसे छठी सदी में बनाया गया था। एक अन्य लोक मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान नारद जी ने 364 दिन भगवान विष्णु की पूजा करते और एक दिन के लिए चले जाते थे ताकि लोग पूजा कर सकें।

स्थानीय लोग श्रावन पूर्णिमा पर भगवान नारायण का श्रृंगार भी करते हैं। रक्षाबंधन के दिन गांव के प्रत्येक घर से भगवान नारायण के लिए मक्खन आता है।(मंदिर में कई वर्षों से चढ़ रहा है अनोखा चढ़ावा)

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Image Credit:(@channelmountain,wegarhwali)

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